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मध्य प्रदेश के पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा पेड न्यूज मामले में बरी

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि उन्हें सुनवाई के दौरान इस बारे में पर्याप्त सबूत नहीं मिले कि 2008 के मध्यप्रदेश विधानसभा चुनावों के दौरान समाचार पत्रों में प्रकाशित खबरें पेड न्यूज थीं. 10 अक्टूबर 2017 को कोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित किया था. कोर्ट ने अब 7 महीने बाद इस पर फैसला दिया है.

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नरोत्तम मिश्रा को दिल्ली हाई कोर्ट से बड़ी राहत
नरोत्तम मिश्रा को दिल्ली हाई कोर्ट से बड़ी राहत

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दिल्ली हाईकोर्ट ने मध्यप्रदेश बीजेपी के नेता और मंत्री नरोत्तम मिश्रा को पेड न्यूज़ के मामले मे राहत देते हुए बरी कर दिया है. दिल्ली हाई कोर्ट ने चुनाव आयोग के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें मिश्रा को 2008 के विधानसभा चुनाव में अयोग्य घोषित किया गया था.

इसके अलावा कोर्ट ने सिंगल बेंच के 14 जुलाई 2017 के उस आदेश को भी खारिज कर दिया है जिसमें चुनाव आयोग के फैसले को बरकरार रखा गया था.

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि उन्हें सुनवाई के दौरान इस बारे में पर्याप्त सबूत नहीं मिले कि 2008 के मध्यप्रदेश विधानसभा चुनावों के दौरान समाचार पत्रों में प्रकाशित खबरें पेड न्यूज थीं. 10 अक्टूबर 2017 को कोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित किया था. कोर्ट ने अब 7 महीने बाद इस मामले में फैसला दिया है.

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याचिका लगाने वाले शिकायतकर्ता और वकील विवेक तन्खा ने अपनी दलीलों में यह कहा था कि यह देश का सबसे बड़ा पेड न्यूज का मामला है.

जांच कमेटी ने मिश्रा के समर्थन में प्रकाशित 48 लेख में से 42 पेड न्यूज पाए थे. वकील ने कहा कि न्यूज प्रकाशित होने का समय, उनकी भाषा, तारीख, हेडलाइन सब यह साबित करती हैं कि प्रकाशित न्यूज पेड न्यूज थीं. हालांकि समाचार पत्रों ने खुद यह मानते हुए कहा कि उन्होंने अपनी मर्जी से यह खबरें प्रकाशित की थी, ऐसे में मिश्रा के खिलाफ पेड न्यूज का मामला बनता ही नहीं है.

पेड न्यूज वो होती है जिसे प्रकाशित करने के लिए पैसे दिए गए हो. पैसे कोई भी दे सकता है चाहे राजनीतिक दल हो या फिर उम्मीदवार का कोई समर्थक. हाईकोर्ट आने से पहले नरोत्तम मिश्रा की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने निर्वाचन आयोग के फैसले पर रोक लगा दी थी.

आयोग ने नरोत्तम मिश्रा को 2008 के विधानसभा चुनाव में पेड न्यूज के मामले में अयोग्य घोषित किया था. जिसके चलते नरोत्तम राष्ट्रपति चुनाव में वोट भी नहीं डाल पाए थे. सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के फैसले पर रोक लगाने के साथ ही दिल्ली हाई कोर्ट को मामले की जल्द सुनवाई के निर्देश दिए थे. इसके बाद इस निर्देश को दिल्ली हाईकोर्ट की डबल बेंच में चुनौती दी गई थी.

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