मोदी सरकार ने अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए नोटबंदी की थी, इसी तरह किसानों की समस्याओं को जन जन तक पहुंचाने के लिए किसानों ने 'गांव बंद' किया. और अब विधानसभा चुनाव की देहरी पर खड़े मध्यप्रदेश के किसानों ने जनप्रतिनिधों पर दबाव बनाने के लिए 'वोट बंद' का ऐलान किया है.
उदासीन जनप्रतिनिधियों के खिलाफ थोक में वोट
वोट बंद का मतलब चुनाव बहिष्कार करना नहीं होगा और न ही ईवीएम में नोटा विकल्प दबाना होगा. क्योंकि इससे चुनाव लड़ने वाले विधायक पर कोई असर नहीं पड़ता. किसानों की रणनीति है कि जिन जनप्रतिनिधियों ने उनकी मांगों पर तवज्जो नहीं दी है उनको वोट देना बंद किया जाए. और संगठित तरीके से उनके खिलाफ थोक में वोट पड़े जिसकी वजह से पूरा चुनावी समिकरण बदल जाए.
गैर राजनीतिक किसान संगठन, आम किसान यूनियन के सदस्य केदार सिरोही का aajtak.in से बातचीत में कहना है कि 'मध्य प्रदेश के मालवा ,निमाड़ और महाकौशल की 110 विधानसभा में किसान वोट बंद करेंगे. इसके लिए प्रत्येक विधानसभा पर 20 गांव चुने जा रहे हैं जहां की जनता किसानों के साथ एकमुश्त वोट करेगी. किसानों की इस कदम से पूरा चुनावी समीकरण बदलने की तैयारी है'.इसे पढ़ें: किसानों के आंदोलन में नेताओं या नेतागीरी का क्या काम, पर नेता हैं कि मानते नहीं...
किसानो की मांगे क्या है ?
गांव बंद का हुआ था व्यापक असर
केंद्र सरकार की किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ किसानों ने पिछले महीने 1 जून से 10 दिवसीय आंदोलन गांव बंद शुरु किया था. इस आंदोलन को लेकर किसानो की मांगे-अपनी उपज के लिए लाभकारी दाम, स्वामीनाथ आयोग की सिफारिशें लागू करने और कृषि ऋण माफ करने की थी. देश के कई राज्यों में इस आंदोलन का व्यापक असर हुआ जिससे आपूर्ति में कमी के चलते सब्जियों और अन्य खाद्य पदार्थों के भाव बढ़ गये थे.