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खरगौन : शिवराज जी गौर कीजिए, कैसे पढ़ाई करें ये बेटियां

बेटियों को पढ़ाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जोर है. लेकिन मध्य प्रदेश के खरगोन से दूसरी ही तस्वीर सामने आ रही है. यहां के 7 गांवों की लड़कियां पढ़ना चाहती हैं लेकिन उन्हें दसवीं के बाद स्कूल नहीं होने की वजह से पढ़ाई छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.

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दूरी की वजह से कई बार बदल रहे हैं स्कूल
दूरी की वजह से कई बार बदल रहे हैं स्कूल

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बेटियों को पढ़ाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जोर है. लेकिन मध्य प्रदेश के खरगोन से दूसरी ही तस्वीर सामने आ रही है. यहां के 7 गांवों की लड़कियां पढ़ना चाहती हैं लेकिन उन्हें दसवीं के बाद स्कूल नहीं होने की वजह से पढ़ाई छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.

टैंपो पर लद के स्कूल जाते हैं बच्चे
खरगोन जिला हेडक्वार्टर से महज 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है डोंगरगांव. यहां के बच्चों को खरगोन शहर में पढ़ने जाना पढता है. बस सेवा नियमित नहीं होने की वजह से बच्चों को पढ़ने के लिए हर दिन टैंपो पर लद कर खरगोन जाना पड़ता है. खचाखच भरे टैम्पो में लड़के तो पीछे स्टैंड पर भी खड़े होकर चले जाते हैं. लेकिन लड़कियां ऐसा नहीं कर सकतीं.

12वीं तक की शिक्षा के बदलते हैं चार स्कूल
डोंगरगांव की ये हालत है कि यहां बच्चों को 12 वीं तक की शिक्षा के लिए चार स्कूल बदलने पड़ते हैं. ऐसा करना उनकी मजबूरी है. इस गांव में 5वीं तक ही स्कूल है. 5वीं के बाद बच्चों को 8वीं तक पढ़ने के लिए डेढ़ किलोमीटर दूर छोटी ठीबगांव का रुख करना पड़ता है. इसके बाद 9वीं और 10वीं के लिए रोज 3 किलोमीटर पैदल चल कर खेड़ी बुजुर्ग जाना पड़ता है. यहां तक तो किसी तरह बच्चे सह लेते हैं. लेकिन असली दिक्कत 10वीं के बाद पढ़ाई जारी रखने के लिए होती है.

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बच्चे पहले डोंगरगांव से साइकिल से छोटी ठीबगांव तक जाते हैं. फिर साइकिल वहां खड़ी कर टैंपो, ट्रक आदि से खरगोन पहुंचते हैं. टैम्पो सवारियों को इस तरह भर लेते हैं कि हर वक्त हादसे का खतरा बना रहता है. इन गांवों से होकर दोपहर को सिर्फ एक बस गुजरती है. ऐसे हालात में डोंगरगांव के साथ-साथ खेड़ी, ठीबगांव, अवकच्छ, बीड, नागरदा और रामपुरा गांवों की सैकड़ों बच्चों ने स्कूल जाना छोड़ दिया. इनमें से अधिकतर लड़कियां हैं, जिन्हें मजबूरी में पढ़ाई छोड़कर चूल्हा-चौका या मवेशियों को चराने जैसे काम करने पड़ रहे हैं.

मध्य प्रदेश सरकार की ओर से हर 3 किलोमीटर पर स्कूल के दावे किए जाते हैं. लेकिन खरगोन के गांवों की जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बता रही है. अब ये मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को देखना होगा कि कैसे पढ़ेंगी यहां की बेटियां.

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