मध्य प्रदेश की 28 विधानसभा सीटों पर 3 नवंबर को होने वाले उपचुनाव का प्रचार शोर रविवार को शाम पांच बजे थम गया है. इन 28 सीटों पर कुल 355 प्रत्याशी किस्मत आजमा रहे हैं, जहां ज्यादातर सीटों पर कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला माना जा रहा है. हालांकि, बसपा सहित अन्य और निर्दलीय भी चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे हैं. यह उपचुनाव एमपी की शिवराज सरकार के भविष्य को तय करेगा तो पूर्व सीएम कमलनाथ की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है.
एमपी के उपचुनाव प्रचार में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पूरी ताकत झोंक दी है. एक-एक सीट पर कम से कम दो से तीन बार रैलियां की है. शिवराज सिंह चौहान अपने सात महीने के कार्यकाल की उपलब्धियों के नाम पर वोट मांग रहे थे जबकि सिंधिया अपनी प्रतिष्ठा से चुनाव जोड़कर उन्होंने मतदाताओं से बीजेपी को वोट देने की अपील कर रहे थे, क्योंकि सिंधिया के मजबूत दुर्ग माने जाने वाले ग्वालियर क्षेत्र की 16 सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं और सभी उनके समर्थक मैदान में उतरे हैं.
वहीं, मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और पूर्व सीएम कमलनाथ का सियासी भविष्य भी दांव पर लगा है. ऐसे में उन्होंने चुनावी प्रचार में पूरी ताकत झोंक दिया था और डबरा सीट पर रैली को संबोधित करते हुई बीजेपी उम्मीदवार इमरती देवी को 'आइटम' कहने को विपक्ष ने बड़ा मुद्दा बना दिया था. इसके अलावा कमलनाथ ने प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ 'माफिया और मिलावट खोर' शब्दों का हर रैली में इस्तेमाल भी किया था. 'टिकाऊ-बिकाऊ' का मुद्दा छाये रहने के साथ-साथ किसानों की कर्जमाफी का मुद्दा भी खूब उछाला. दिग्विजय सिंह से लेकर सचिन पायलट तक ने उपचुनाव के प्रचार में ताकत झोंकी थी.
मध्य प्रदेश ही नहीं बल्कि देश के इतिहास में पहली बार किसी राज्य में एक साथ 28 सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं. एमपी की 29 विधानसभा सीटें रिक्त है, जिनमें से 28 सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं. उपचुनाव कांग्रेस के 25 विधायकों के इस्तीफा देने और 3 विधायकों के निधन से रिक्त हुई सीटों पर हो रहे हैं. ऐसे में बीजेपी ने कांग्रेस के आए सभी 25 विधायकों के टिकट देकर चुनावी मैदान में उतारा है, जिनमें से शिवराज सरकार के 14 मंत्री भी हैं.
एमपी की कुल 230 विधासभा सीटों हैं, जिनमें से 29 सीटें रिक्त है. इनमें से 28 सीटों पर चुनाव हो रहा हैं, जिसके लिहाज से कुल 229 सीटों के आधार पर बहुमत का आंकड़ा 115 चाहिए. ऐसे में बीजेपी को बहुमत का नंबर जुटाने के लिए महज आठ सीटें जीतने की जरूरत है जबकि कांग्रेस को सभी 28 सीटें जीतनी होंगी. मौजूदा समय में बीजेपी के 107 विधायक हैं, जबकि काग्रेस के 87, चार निर्दलीय, दो बसपा और एक सपा का विधायक है.
28 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव
मध्य प्रदेश की जिन 28 सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं, जिनमें से ग्वालियर-चंबल इलाके की 16 सीटें है. इनमें मुरैना, मेहगांव, ग्वालियर पूर्व, ग्वालियर, डबरा, बमोरी, अशोक नगर, अम्बाह, पोहारी, भांडेर, सुमावली, करेरा, मुंगावली, गोहद, दिमनी और जौरा सीट शामिल है. वहीं, मालवा-निमाड़ क्षेत्र की सुवासरा, मान्धाता, सांवेरस आगर, बदनावर, हाटपिपल्या और नेपानगर सीट है. इसके अलावा सांची, मलहरा, अनूपपुर, ब्यावरा और सुरखी सीट है. इसमें से जौरा, आगर और ब्यावरा सीट के 3 विधायकों के निधन के चलते उपचुनाव हो रहे हैं.
6 सीटों पर कांटे की टक्कर रही
मध्य प्रदेश की जिन 28 सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं, उनसे आधा दर्जन सीटें ऐसी हैं जहां पर 2018 के चुनाव में जीत हार की मार्जिन काफी कम थी. इनमें सांवेर सीट पर तुलसीराम सिलावट 2,945 वोट के अंतर से जीते थे. मुंगावली 2136 वोटों से ही जीती थीं, कृष्णा पाल ने नजदीक से टक्कर दी. मान्धाता के विधायक नारायण पटेल खण्डवा ब्लॉक से कांग्रेस के एकलौते विधायक थे जिन्हें भाजपा के नरेंद्र सिंह तोमर ने टक्कर दी और जीत का अंतर सिर्फ 1,236 वोट था. वही नेपानगर से भी भाजपा काफ़ी हद तक जीत के नज़दीक थी, कांग्रेस की सुमित्रा कसडकर सिर्फ 1264 वोटों से जीतीं. सुवासरा से कांग्रेस विधायक रहे हरदीप सिंह डंग महज 350 वोट से जीते थे.