मध्य प्रदेश में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव 2018 के बाद आज मतगणना पूरी हो चुकी है. प्रदेश की खुरई विधानसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के भूपेंद्र सिंह और कांग्रेस के अरुणोदय चौबे के बीच सीधा मुकाबला है. नतीजों में भूपेंद्र सिंह ने जीत दर्ज कर बीजेपी का कब्जा कायम रखा है.
इससे पहले विधानसभा की क्या थी तस्वीर
मध्य प्रदेश विधानसभा की 230 सीटों में से 35 सीट अनुसूचित जाति जबकि 47 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. 148 गैर-आरक्षित सीटें हैं. 2013 में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने 165 सीटों पर जीत हासिल कर राज्य में लगातार तीसरी बार सरकार बनाई थी, जबकि कांग्रेस को 58 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था. वहीं बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने 4 जबकि 3 सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी.
खुरई में क्या थे 2013 और 2008 के नतीजे
सागर जिले की खुरई विधानसभा सीट पर 2013 में भूपेंद्र सिंह ने कांग्रेस के अरुणोदय चौबे को पराजित किया था. भूपेंद्र सिंह और अरुणोदय चौबे में पिछले दो चुनावों से मुकाबला होता चला आ रहा है. 2008 में अरुणोदय चौबे चुनाव जीत गए थे. इसके बाद 2013 में भूपेंद्र सिंह ने चौबे को शिकस्त दी.
कितने लोगों ने किया मताधिकार का प्रयोग
चुनाव आयोग के मुताबिक 2018 में मध्य प्रदेश में कुल 5,03,94,086 मतदाता हैं जिनमें महिला मतदाताओं की संख्या 2,40,76,693 और पुरुष मतदाताओं की संख्या 2,62,56,157 रही. पुरुष मतदाताओं का वोटिंग प्रतिशत 75.98 रहा तो वहीं महिला मतदाताओं का वोटिंग प्रतिशत 74.03 रहा. इस बार मध्य प्रदेश में 75.05 फीसदी मतदान हुआ. 2013 में 72.07 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था.
वोटिंग में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी
चुनाव आयोग के मुताबिक इस बार मध्य प्रदेश में 75.05 फीसदी मतदान हुआ. जबकि 2013 में 72.07 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था. इस बार महिलाओं का मतदान प्रतिशत पिछले चुनाव के मुकाबले करीब 4 फीसदी बढ़कर 74.03 प्रतिशत रहा. 2013 में महिलाओं का मतदान प्रतिशत 70.11 रहा था.
इसके पहले कैसा रहा है वोटिंग का प्रतिशत
1990 में स्व. सुंदरलाल पटवा के नेतृत्व में बीजेपी मैदान में उतरी और 4.36 फीसदी वोट बढ़ गए. तत्कालीन कांग्रेस की सरकार को हार का सामना करना पड़ा था. इसके बाद 1993 में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस चुनाव में उतरी तो 6.03 प्रतिशत मतदान बढ़ा और बीजेपी की पटवा सरकार हार गई थी.
वहीं, 1998 में वोटिंग प्रतिशत 60.22 रहा था जो 1993 के बराबर ही था. उस वक्त दिग्विजय सिंह की सरकार बनी. लेकिन 2003 में उमा के नेतृत्व में बीजेपी सामने आई और दिग्विजय सिंह की 10 साल की सरकार सत्ता से बाहर हो गई. उस वक्त भी 7.03 प्रतिशत वोट बढ़े थे.