मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में महज डेढ़ महीने का समय बचा हुआ है. ऐसे में शिवराज सिंह चौहान सरकार के दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री स्वामी नामदेव त्यागी उर्फ कम्प्यूटर बाबा ने सोमवार को इस्तीफा दे दिया. कम्प्यूटर बाबा को करीब छह महीने पहले प्रदेश सरकार ने राज्यमंत्री का दर्जा दिया था. उनके इस्तीफे के साथ सवाल उठने लगे हैं कि क्या एक बार फिर वो 'नर्मदा घोटाले' को लेकर सरकार के खिलाफ उतरेंगे?
बता दें कि कंप्यूटर बाबा शिवराज सरकार द्वारा नर्मदा बचाने के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर निकाली गई यात्रा और नर्मदा किनारे कराए गए पौधरोपण की पोल खोलने के लिए अभियान चलाने की तैयारी कर चुके थे. शिवराज सरकार को नर्मदा यात्रा और पौधरोपण का फर्जीवाड़ा उजागर करने की चेतावनी भी दी थी. इसी के तहत 'नर्मदा घोटाला रथ यात्रा' 1 अप्रैल से 45 दिवसीय यात्रा पर निलकने वाले थे.
वो इंदौर से यात्रा शुरू करने वाले थे, जिसके जरिए नर्मदा किनारे के जिलों, नगरों और गांव में जाकर शिवराज सरकार की पोल खोलते. 'नर्मदा घोटाला रथ यात्रा' 1 अप्रैल से 15 मई तक प्रदेश के अलग-अलग जिलों से गुजरनी थी.
कंप्यूटर बाबा नर्मदा यात्रा पर निकलते उससे पहले ही शिवराज सरकार ने आनन-फानन में एक समित गठित कर दी. शिवराज सरकार ने नर्मदा किनारे वृक्षारोपण, जल संरक्षण तथा स्वच्छता के लिए जन जागरूकता का अभियान चलाने के लिए विशेष समिति गठित की है, जिसमें कंप्यूटर बाबा को सदस्य बनाया है. कंप्यूटर बाबा को राज्यमंत्री का दर्जा देकर खुश करने की कोशिश की थी.
राज्यमंत्री का दर्जा हासिल करने के बाद कंप्यूटर बाबा ने कहा था, 'हम लोगों ने यह यात्रा निरस्त कर दी है, क्योंकि प्रदेश सरकार ने नर्मदा नदी के संरक्षण के लिए साधु-संतों की समिति बनाने की हमारी मांग पूरी कर दी है. अब भला हम यह यात्रा क्यों निकालेंगे.'
राज्यमंत्री पद से कंप्यूटर बाबा के इस्तीफा के बाद अब फिर माना जा रहा है कि वो नर्मदा घोटाले को लेकर मुखर हो सकते हैं. उन्होंने इस्तीफे देने के साथ जिस तरह के तेवर अख्तियार किए हैं. उससे साफ जाहिर है कि नर्मदा घोटाले का जिन्न एक बार फिर बाहर निकल सकता है.
कंप्यूटर बाबा ने कहा, 'मैं गोरक्षा, नर्मदा संरक्षण, मठ-मंदिरों के हितों में काम करना चाहता था, मगर ऐसा करने में असफल रहा. संत समाज का मुझ पर लगातार दबाव रहा, इसी चलते मैं अपने पद से इस्तीफा दे रहा हूं.'
उन्होंने राज्य सरकार को निशाने पर लेते हुए कहा, 'उन्होंने (शिवराज सिंह चौहान ) सब ढकोसलापन किया है. मुझसे जो वादे किए थे, मुख्यमंत्री ने ठीक इसके विरुद्ध काम किया.' उन्होंने कहा, 'संतों ने शिवराज से काम कराने का जिम्मा मुझे सौंपा था. शिवराज से काम नहीं करा पाने के लिए संतों ने मुझे 100 में से शून्य नंबर दिए हैं. मैं तो फेल ही हो गया न.'
उन्होंने कहा, 'मैं संत-पुजारियों के हित में मठ मंदिर संरक्षण, गो संरक्षण, नर्मदा संरक्षण के साथ-साथ अनेक धार्मिक कार्यों के लिए अथक प्रयास करने के बावजूद अपनी बात सरकार से मनवाने में नाकाम रहा. इसलिए त्यागपत्र दिया है.'
मध्य प्रदेश में चुनाव से ऐन वक्त पहले साधु-संतों की नाराजगी बीजेपी और शिवराज सरकार के लिए नई परेशानी खड़ी कर सकती है. शिवराज सरकार को पहले से ही दलित और सवर्ण समुदाय की नाराजगी का सामना करना पड़ा रहा है. इसके अलावा सत्ताविरोधी लहर एक बड़ी वजह बनी हुई है. ऐसे में साधु-संतों की नाराजगी मुसीबत बन सकती है.
गौरतलब है कि कंप्यूटर बाबा मूल रूप से जबलपुर के पास स्थित बरेला के निवासी हैं. वो करीब 28 साल पहले बनारस पहुंचे थे. वहां उनके गुरू के मठ में दीक्षा ली और देश में कम्प्यूटर का आगमन भी उसी समय हुआ था. मठ में उस समय कंप्यूटर लाया गया, जिसे चलाना सिर्फ स्वामी नामदेव त्यागी को ही आता था. मठ की कमान बाबा को सौंपी, तभी से उन्हें कंप्यूटर बाबा का नाम मिला.
कंप्यूटर बाबा का पूरा नाम अनंत विभूषित 1008 महामंडलेश्वर नामदेव त्यागी उर्फ कंप्यूटर बाबा है. दो साल पहले वे तब सुर्खियों में आए थे, जब उन्होंने सिंहस्थ में मप्र सरकार की तैयारियों की पोल खोली थी. बाबा ने उज्जैन से लेकर दिल्ली तक मप्र सरकार द्वारा सिंहस्थ में किए गए गोलमाल को उजागर किया.
सरकार ने सिंहस्थ के दौरा क्षिप्रा में साफ पानी का प्रवाह का दावा किया था, लेकिन बाबा ने सरकार के दावों की पोल खोली और क्षिप्रा में खड़े होकर अनशन किया और बताया कि क्षिप्रा में मैला पानी बह रहा है. बाबा के आंदोलन के बाद मप्र की सरकार में हड़कंप मच गया था.