मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और बसपा के बीच गठबंधन की सारी उम्मीदें खत्म हो चुकी हैं. मायावती ने पिछले दिनों अपने उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी कर दी है. ऐसे में कांग्रेस भी मध्य प्रदेश में बसपा की काट और दलित मतों को साधने के लिए 'गुजरात मॉडल' को अपना रही है, ताकि 15 साल के सत्ता के वनवास को खत्म कर सके.
कांग्रेस ने गुजरात में जिस तरह से जिग्नेश मेवाणी के जरिए राज्य में बीजेपी का कड़ा मुकाबला किया था. हालांकि बसपा भी यहां अकेले चुनाव मैदान में उतरी थी. अब उसी तर्ज पर मध्य प्रदेश में दलित युवा नेता देवाशीष जरारिया को पार्टी ने अपने साथ मिला लिया है. प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के नेतृत्व में जरारिया ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है. जरारिया को मध्य प्रदेश का 'जिग्नेश मेवाणी' कहा जाता है.
बसपा की युवा टीम के थे लीडर
बसपा के साथ युवाओं को जोड़ने की कवायद देवाशीष जरारिया ने ही शुरू किया था. इसके अलावा सोशल मीडिया के जरिए बसपा के पक्ष में माहौल बनाने का काम वो करते थे. इतना ही नहीं बसपा समर्थक के रूप में पार्टी की बात टीवी डिबेट में रखते थे. इसके जरिए जरारिया ने अपनी राजनीतिक पहचान बनाई.
बताया- क्यों थामा कांग्रेस का हाथ?
देवाशीष जरारिया ने आजतक से बातचीत करते हुए कहा कि कांग्रेस में शामिल होने का मकसद मध्य प्रदेश की जनता को 15 साल के भाजपा के शासन से मुक्ति दिलाना है. दलित-आदिवासी भाइयों को इंसाफ दिलाने के लिए मैंने कांग्रेस ज्वाइन किया है.
उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश में बसपा के लोग भी चाहते हैं कि कांग्रेस के साथ गठबंधन हो ताकि राज्य में बीजेपी को सत्ता से बाहर किया जा सके. ऐसे में मायावती के अकेले चुनाव लड़ने के फैसले से दलित समुदाय काफी आहत है. बसपा के लोग भी इस बार बीजेपी को सत्ता से बाहर करने के लिए कांग्रेस को वोट करेंगे.
बसपा की यूपी वाली सियासत यहां नहीं चलेगी
जरारिया ने कहा कि बसपा ने पिछले 20 सालों से राज्य में लीडरशिप खड़ी नहीं की है. यूपी के बसपा नेता ही आकर मध्य प्रदेश में राजनीति कर रहे थे. ऐसे में हम अपने समाज के बीच जाएंगे और उनसे कहेंगे कि मध्य प्रदेश का बेटा आया है. हमने राज्य में दलितों की लड़ाई लड़ी है, मुझे उम्मीद है कि लोग हमारी बातों पर भरोसा करेंगे.
बता दें कि देवाशीष जरारिया मध्य प्रदेश में दलित मुद्दों को लेकर आंदोलन करते रहे हैं. उनके पास दलित युवाओं की टीम राज्य के सभी जिलों में है. 2013 में जरारिया बसपा से जुड़े थे. इसके बाद से वे लगातार दलित मुद्दों और बसपा के लिए संघर्ष करते रहे हैं.
मध्य प्रदेश में तकरीबन 15 फीसदी दलित और 21 फीसदी आदिवासी मतदाता हैं. बसपा का मुख्य आधार दलित मतों पर है. खासकर उत्तर प्रदेश से सटी विधानसभा सीटों पर है. राज्य में 25 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां बसपा जीत हार का फैसला करती है.
2013 में मध्यप्रदेश में बीएसपी ने 230 सीटों में से 227 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. बसपा यहां 6.42 फीसदी वोट के साथ चार सीटें जीतने में सफल रही थी. राज्य 75 से 80 सीटों पर बसपा प्रत्याशियों ने 10 हजार से ज्यादा वोट हासिल किए थे.
बीजेपी और कांग्रेस के बीच 8.4 फीसदी वोट शेयर का अंतर था. बीजेपी को 165 सीटें और कांग्रेस को 58 सीटें मिली थीं. बसपा का आधार यूपी से सटे इलाकों में अच्छा खासा है. चंबल, बुंदेलखंड और बघेलखंड के क्षेत्र में बसपा की अच्छी खासी पकड़ है.
इस बार कांग्रेस बसपा के साथ गठबंधन करके चुनाव मैदान में उतरने की बात कही जा रही थी, लेकिन मायावती ने गुरुवार को अपने उम्मीदवारों की लिस्ट जारी करके गठबंधन के कयासों पर पूर्णविराम लगा दिया है. इसके बावजूद कमलनाथ अभी बसपा के साथ गठबंधन की उम्मीद लगाए हुए हैं.
मध्य प्रदेश में आदिवासियों की आबादी 21 प्रतिशत से अधिक है. राज्य विधानसभा की कुल 230 सीटों में से 47 सीटें आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं. इसके अलावा करीब 30 सीटें ऐसी मानी जाती हैं, जहां पर्याप्त संख्या में आदिवासी आबादी है. 2013 के विधानसभा चुनाव में आदिवासियों के लिए आरक्षित 47 सीटों में से बीजेपी को 32 और कांग्रेस को 15 सीटें मिली थीं.