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MP: 290 नगर निकायों का कार्यकाल खत्म, फिलहाल चुनाव के मूड में नहीं कमलनाथ

मध्य प्रदेश 290 नगर निकाय के कार्यकाल पूरे हो गए हैं, लेकिन कमलनाथ सरकार अभी चुनाव कराने के मूड में नहीं है. माना जा रहा है कि सरकार निकाय चुनाव को अक्टूबर-नवंबर में कराने का मन बना रही है, इसके लिए उसने आरक्षण और परिसीमन को अपना आधार बनाया है.

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मध्य प्रदेश मुख्यमंत्री कमलनाथ
मध्य प्रदेश मुख्यमंत्री कमलनाथ

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  • एमपी के 290 नगर निकाय का कार्यकाल पूरा
  • MP सरकार अक्टूबर में कराना चाहती है चुनाव

मध्य प्रदेश के सभी नगर निकाय के कार्यकालू पूरे हो चुके हैं, लेकिन कमलनाथ सरकार फिलहाल निकाय चुनाव कराने के मूड में नजर नहीं आ रही है. साल 1994 के बाद यह पहला मौका है जब मध्य प्रदेश में नगर निकाय चुनाव समय पर नहीं हो पा रहे हैं. इसे लेकर हाईकोर्ट ने कमलनाथ सरकार से निकाय चुनाव में देरी के लिए जवाब मांगा है, जिसे लेकर सूबे में सियासी सरगर्मी तेज हो गई है.

MP के 290 निकाय का कार्यकाल खत्म

गौरतलब है कि मध्य प्रदेश के सभी नगरीय निकायों में जनप्रतिनिधियों यानी पार्षदों, महापौर या नगरपालिका अध्यक्षों का कार्यकाल खत्म हो चुका है. 260 निकायों का कार्यकाल जनवरी में खत्म हो चुका है जबकि भोपाल, इंदौर, जबलपुर समेत 30 शहरों में परिषद का कार्यकाल फरवरी में पूरा हो चुका है. इस तरह से प्रदेश के कुल 290 निकायों में परिषद का कार्यकाल पूरा हो गए हैं. ऐसे में नगरीय निकायों में चुनी परिषद का कार्यकाल खत्म होने पर सरकार ने प्रशासक नियुक्त किए हैं.

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बीजेपी ने निकाय चुनाव टालने को लेकर कांग्रेस सरकार पर हमला बोला है. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने कहा कि नियमों के तहत चुनी हुई परिषद का कार्यकाल खत्म होते ही निकाय चुनाव कराए जाते हैं, लेकिन कांग्रेस सरकार हार के डर से चुनाव टालने का काम कर रही है. इसलिए हाईकोर्ट ने भी सरकार से जवाब मांगा है.

वहीं, बीजेपी के आरोपों पर कमलनाथ सरकार का कहना है कि निकाय चुनाव को लेकर सरकारी प्रक्रिया जारी है और हाईकोर्ट के सवाल का सरकार जवाब देगी. कमलनाथ सरकार ने कहा कि निकाय चुनाव को लेकर जरूरी परिसीमन और आरक्षण की प्रक्रिया को पूरा किया जा रहा है. इसके बाद चुनाव कराए जाएंगे.

नगर निकाय पर कब्जाने के मूड में कांग्रेस

निकाय चुनाव को लेकर चुनाव के छह महीने पहले परिसीमन की प्रक्रिया पूरी होनी चाहिए. इसे सरकार ने बदलकर अब दो महीने आगे कर दिया है. 20 साल पहले महापौर और अध्यक्ष का चुनाव पार्षद करते थे, लेकिन अब सरकार ने नियम बदलकर महापौर और अध्यक्ष का चुनाव उसी पद्धति से कराने का फैसला किया है. यानी कि अब महापौर और अध्यक्ष का चुनाव सीधे तौर पर न होकर अप्रत्यक्ष प्रणाली से ही होगा.

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बीजेपी के वर्चस्व वाली निकायों को कांग्रेस हथियाना चाहती है. लिहाजा निकायों में जोड़तोड़ से सत्ता हासिल करने की भी अघोषित रूपरेखा भी तैयार की गई है. परिसीमन को लेकर दो दर्जन से अधिक मामले हाई कोर्ट में विचाराधीन हैं. सरकार की मंशा है कि निकायों में कार्यकाल खत्म होने पर अक्टूबर तक कांग्रेसमय माहौल बनाकर अक्टूबर में चुनाव कराए जाएं. यही कारण है कि निकाय चुनाव में देरी हो रही है. लेकिन अब इस मामले में हाईकोर्ट का सरकार से जवाब तलब करने पर सियासी पारा चढ़ गया है.

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