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देश भर में इन दिनों कृषि कानून को लेकर बहस छिड़ी हुई है. किसान संगठन, राजधानी दिल्ली में इसका विरोध करने के लिए डटे हुए हैं. किसान संगठनों का तर्क है कि नए कानून से किसानों का अहित होगा. इस बीच आजतक उन किसानों की राय जानने पहुंचा जो खेती कर हर साल लाखों रुपये कमा रहे हैं. भोपाल से 80 किलोमीटर दूर वर्धा गांव के रहने वाले किसान भगवत सिंह कुशवाह यूं तो दिखने में बेहद मामूली किसान हैं लेकिन जान कर हैरानी होगी कि वे हर साल अपनी उपज से लाखों रुपये कमा रहे हैं, वो भी एक छोटे से उपाय से.
भगवत सिंह पहले खेत मे गेहूं की फसल लगाते थे लेकिन जब उन्होंने देखा कि एक पारंपरिक फसल में मुनाफा ज्यादा नहीं है तो उन्होंने गेहूं की फसल छोड़ कर स्टीविया नाम के पौधे की खेती शुरू कर दी. स्टीविया यानी मीठी तुलसी का पौधा डायबिटीज की दवाई बनाने के काम तो आता ही है इसके अलावा शुगर फ्री उत्पादों में भी इसका इस्तेमाल होता है.
कैसे हुआ मुनाफा
भगवत सिंह कुशवाह ने 'आजतक' से बात करते हुए बताया कि 2017 में जब पहली बार स्टीविया की फसल लगाई तो बड़ी समस्या हुई. फसल लगाने की लागत करीब 80 हजार रुपये आई लेकिन जब मंडी में उपज बेचने गया तो नई फसल के लिए ग्राहक ही नहीं मिले. फिर यू-ट्यूब पर उपज के वीडियो डाले और फोन नंबर अपलोड कर दिया. इसके बाद से लेकर आजतक पलट कर नहीं देखा. भगवत सिंह कुशवाह के मुताबिक साल 2018 में डेढ़ लाख का मुनाफा हुआ. 2019 में मुनाफा बढ़कर 2 लाख 10 हजार हो गया और 2020 में भी अभी तक 1 लाख 80 हजार की फसल का एडवांस पैसा आ गया है.
मध्यप्रदेश के अलावा उत्तर प्रदेश, राजस्थान, केरल और गोवा तक भगवत अपनी उपज बेचते हैं. स्टीविया के पौधे से होने वाला मुनाफा इतना ज्यादा है कि भगवत ने अब एक एकड़ से बढ़ाकर दो एकड़ में इसकी खेती शुरू कर दी है. भगवत के मुताबिक उपज भेजने से पहले ही उनका पेमेंट एडवांस खाते में आ जाता है, जिसके बाद ही उपज को व्यापारी के दिये पते पर भेज दिया जाता है.
मक्के के बाद काले गेहूं पर चला दांव
विदिशा से करीब 10 किलोमीटर दूर भैरोखेड़ी गांव के संजय राठी भी उन किसानों में से हैं जो पारंपरिक खेती को छोड़, नए किस्म की खेती को बढ़ावा दे रहे हैं. करीब 180 बीघा खेत मे संजय गेहूं की खेती करते थे लेकिन इसके बाद दो साल पहले उन्होंने मक्का लगाना शुरू किया.
मक्का पहले साल में तो ज्यादा अच्छी कीमत पर नहीं बिका लेकिन उसके बाद पिछले सीजन में मक्का की फसल से करीब 3 लाख 50 हजार रुपए का फायदा हुआ. इसके बाद अब संजय एक और प्रयोग कर रहे हैं. उन्होंने करीब 3 क्विंटल काला गेहूं अपने खेत मे लगाया है. संजय राठी के मुताबिक पारंपरिक फसलों की खेती लगभग घाटे में ही जा रही है. इसलिए काले गेहूं की खेती शुरू की है.
मुनाफे की खेती पर है फोकस
किसान संजय राठी के मुताबिक सालों से पारंपरिक खेती ही कर रहे थे लेकिन उसमें बीते कई सालों से मुनाफा नहीं हो रहा था. इसलिए अब उनका पूरा ध्यान ऐसी फसलों की खेती पर है जो उनको हर साल मुनाफा दे. इसलिए पिछले साल मक्का लगाया और इस साल काले गेहूं की खेती शुरू की. संजय राठी के मुताबिक इस इलाके में अभी तक कोई और किसान काला गेहूं नहीं उठाता लेकिन स्वास्थ्य के हिसाब से काला गेहूं बहुत अच्छा माना जाता है और इसकी मांग भी खूब है.
उन्होंने कहा कि जब इसे मंडी में बेचने जाऊंगा तो सामान्य गेहूं से ज्यादा कीमत काले गेहूं की मिलेगी. काले गेहूं में उच्च मात्रा में पाये जाने वाला एंथोसाइनिन होता है. साधारण गेहूं में एक ओर जहां एंथोसाइनिन की मात्रा 5 से 15 प्रति मिलियन (पीपीएम) के पास होती है, वहीं ब्लैक व्हीट में 40 से 140 पीपीएम (PPM) है जो की शरीर से फ्री रेडिकल्स बाहर निकालने में सहायता करता है.
कृषि कानून पर आंदोलन जल्दबाजी
पर्दा के भगवत सिंह कुशवाह हो या फिर भैरो खेड़ी के संजय राठी. इन दोनों किसानों की माने तो कृषि कानून को लेकर जो आंदोलन हो रहा है उसे कुछ महीने टाला जा सकता था. इन दोनों किसानों के मुताबिक फिलहाल यह कानून एकदम नया है और अगले साल मार्च-अप्रैल में जब गेहूं की फसल बिकने के लिए मंडी पहुंचेगी तभी इस कानून की असलियत पता चल सकेगी. ऐसे में किसानों को कम से कम 3 महीने और देना चाहिए और फिलहाल अपनी फसलों पर ध्यान देना चाहिए.
यह दोनों किसान मानते हैं किसानों को अपनी आर्थिक स्थिति बेहतर करनी है तो परंपरागत खेती को छोड़ना होगा और ऐसी फसलों की ओर जाना होगा जो उसे सिर्फ मंडियों तक ही सीमित ना रखें बल्कि देश के किसी भी हिस्से में व्यापारी उसकी फसल को खरीदने के लिए तैयार हो.