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मध्य प्रदेशः शिवराज सिंह के लिए कितना मुश्किल होगा मंत्रिमंडल का विस्तार?

मुख्यमंत्री शिवराज और बीजेपी रणनीतिकारों के सामने सबसे बड़ा संकट है कि कैबिनेट में किसे छोड़ें और किसे लें. सिंधिया समर्थकों को कैबिनेट में जगह देने की शीर्ष नेतृत्व ने हरी झंडी दे दी है, लेकिन बीजेपी के दिग्गज और पुराने मंत्रियों को जगह देना शिवराज के लिए एक बड़ी चुनौती है.

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मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान

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  • मध्य प्रदेश में शिवराज सरकार के 100 दिन पूरे हो गए
  • शिवराज कैबिनेट में कुल 35 MLA मंत्री बन सकते हैं

मध्य प्रदेश में शिवराज सरकार के 100 दिन पूरे हो गए हैं, लेकिन कैबिनेट विस्तार पर अभी तक सहमति नहीं बन पाई है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष और शीर्ष नेतृत्व के साथ दिल्ली में दो दिनों तक मंथन और चर्चा के बाद मंगलवार को भोपाल पहुंच गए हैं, लेकिन मंत्रिमंडल विस्तार कब होगा इसका जवाब अभी तक उनके पास नहीं है.

मुख्यमंत्री शिवराज और बीजेपी रणनीतिकारों के सामने सबसे बड़ा संकट है कि कैबिनेट में 'किसे छोड़ें और किसे लें'. शिवराज सिंह 2005 से 2013 तक तीन बार मुख्यमंत्री रहे. इन कार्यकाल में बीजेपी बड़े जनादेश के साथ थी और शिवराज के लिए कोई खतरा नहीं था, लेकिन इस बार नंबर गेम की बॉर्डर पर हैं. यही वजह है कि शिवराज को अपने कैबिनेट विस्तार के लिए इतने पापड़ बेलने पड़ रहे हैं.

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मध्य प्रदेश विधानसभा में कुल 230 सदस्य है. इस लिहाज से अधिकतम 35 विधायक मंत्री बनाए जा सकते हैं. शिवराज समेत कुल छह सदस्य अभी कैबिनेट में हैं. इस तरह से 29 मंत्रियों की जगह ही रिक्त है. ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस के 22 विधायकों ने इस्तीफा देकर बीजेपी का दामन थामा है, जिनमें 6 मंत्री भी शामिल थे.

शिवराज कैबिनेट में मंत्री पद के 40 से ज्यादा दावेदार माने जा रहे हैं. तीन से लेकर सात-आठ बार तक के विधायक बीजेपी खेमे में हैं. गोपाल भार्गव, भूपेंद्र सिंह, गौरीशंकर बिसेन, विजय शाह, यशोधरा राजे सिंधिया, अरविंद सिंह भदौरिया, विश्वास सारंग, संजय पाठक, राजेंद्र शुक्ला, हरिशंकर खटीक, अजय विश्नोई और रामपाल सिंह जैसे बीजेपी नेता यह मानकर चल रहे हैं कि उन्हें मंत्रिमंडल में जगह मिलेगी.

वहीं, शिवराज कैबिनेट में सिंधिया के करीब 9 से 10 समर्थक मंत्री बनने के दावेदार हैं. शिवराज सिंह चौहान ने दो सिंधिया के समर्थकों को पहले ही मंत्री बना दिया है बाकी 7 से 8 विधायकों को अभी एडजस्ट करना है. सिंधिया के करीबियों में प्रद्युम्न सिंह तोमर, इमरती देवी, महेंद्र सिसोदिया, प्रभुराम चौधरी, राज्यवर्द्धन सिंह दत्तीगांव, एदल सिंह कंसाना, बिसाहू लाल सिंह और हरदीप सिंह डंग मंत्री बनने की उम्मीद लगाए हुए हैं.

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शिवराज सिंह अपने मंत्रिमंडल में कांग्रेस से मंत्री पद छोड़कर अब बीजेपी में आए पूर्व मंत्रियों के साथ-साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थित दूसरे लोगों को भी मंत्री बनाने के लिए तैयार हैं, जिसे शीर्ष नेतृत्व ने हरी झंडी भी दे दी है. हालांकि, शिवराज के लिए सबसे बड़ी दिक्कत अपने पुराने मंत्रिमंडल के साथियों को कैबिनेट में शामिल करने को लेकर परेशानी खड़ी हो गई है.

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बीजेपी के विधायक गोपाल भार्गव तो कमलनाथ सरकार के दौरान प्रतिपक्ष के नेता थे. मध्य प्रदेश में उमा भारती की सरकार से लेकर बाबू लाल गौर और शिवराज सिंह चौहान की सभी सरकारों में गोपाल भार्गव मंत्रिमंडल में शामिल रहे थे. वहीं, शिवराज सिंह की पिछली सरकार में गृह और परिवहन जैसे भारी भरकम मंत्रालय की जिम्मेजदारी संभालने वाले भूपेंद्र सिंह भी मंत्री पद के प्रमुख दावेदार माने जा रहे हैं. बीजेपी के ये दोनों दिग्गज बुंदेलखंड क्षेत्र से हैं जबकि इस क्षेत्र से पहले ही सिंधिया खेमें से गोविंद सिंह राजपूत को मंत्री बनाया जा चुका है. ऐसे में शिवराज के लिए यह एक बड़ी चुनौती बन गई है.

गौरीशंकर बिसेन मध्य प्रदेश में बीजेपी के दिग्गज नेता माने जाते हैं. लोकसभा सदस्य से लेकर कई बार विधायक चुने जा चुके हैं. प्रदेश में 2008 से लेकर 2013 तक शिवराज कैबिनेट में वरिष्ठ मंत्री रहे. सिंधिया की बुआ यशोधरा राजे सिंधिया चार बार की विधायक हैं. शिवराज की पिछली सरकार में मंत्री भी रही हैं. वहीं, कुंवर विजय शाह 1993 से लगातार विधायक हैं और 2008 से लेकर 2018 तक शिवराज सरकार में मंत्री रहे हैं.

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ऐसे ही मध्य प्रदेश में राजेंद्र शुक्ला बीजेपी के दिग्गज नेता और ब्राह्मण चेहरा माने जाते हैं. वो उमा भारती की सरकार से लेकर अभी तक बीजेपी की सभी सरकारों में मंत्री रहे हैं. बीजेपी के इन दिग्गज नेताओं के इलाके से ही सिंधिया समर्थक नेता भी मंत्री बनने के प्रमुख दावेदार माने जा रहे हैं. ऐसे में शिवराज के लिए क्षेत्रीय और जातीय संतुलन बनाने के साथ-साथ पार्टी के दिग्गज नेताओं को एडजस्ट करना एक बड़ी चुनौती बन गया है.

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