मौत का खौफ विवेक शून्य कर देता है और जान बचाने के लिए लोग वह कर गुजरते हैं, जिसमें मौत का आना तय होता है. ऐसा ही कुछ मध्य प्रदेश के दतिया के रतनगढ़ हादसे में कई महिलाओं और बच्चों के साथ हुआ है, जिन्होंने पुल से साड़ी बांधकर सिंधु नदी में उतरने की कोशिश की, मगर उनमें से कई अपने को बचा नहीं पाईं.
शारदीय नवरात्रि के अंतिम दिन रविवार को हजारों लोग रतनगढ़ माता के मंदिर में दर्शन करने जा रहे थे. वे मंदिर तक पहुंचते कि उससे पहले सिंधु नदी पर बने पुल पर भगदड़ मच गई. आलम यह था कि पुल पर मौजूद हर व्यक्ति अपनी जान को मुसीबत में पा रहा था. महिलाएं व बच्चे सबसे ज्यादा घबराए और सड़क पर गिरने लगे.
भीड़ में मौजूद लोगों ने बताया कि कई महिलाओं ने अपनी साड़ी को पुल की रेलिंग में बांध और नदी में कूद गईं. कई महिलाओं ने अपनी साड़ी से पहले बच्चों को नदी में उतारा और फिर खुद नीचे उतरीं, मगर नदी में पानी ज्यादा होने से कई मुसीबत में पड़ गईं. कौन बचा और कौन मरा, इसका ब्योरा कोई नहीं दे पा रहा है.
हादसे के बाद नदी के पुल की रेलिंग से बंधी नजर आ रही साड़ियां इस बात की गवाही दे रही हैं कि महिलाओं ने साड़ियों के सहारे जान बचाने की कोशिश की.
केंद्रीय ऊर्जा राज्यमंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया भी कहते हैं कि उन्हें इस बात की जानकारी मिली है कि महिलाओं ने अपनी साड़ी पुल पर बांधकर जान बचाई है.
इस हादसे में कई लोगों ने अपनों को खोया है. दतिया के जिला अस्पताल में भर्ती आशा बाई बेसुध है. वह होश में आती है तो सिर्फ यही चिल्लाती है कि कहां है मेरा लाला. उसके दो वर्षीय बेटे की इस हादसे में मौत हो गई.
दतिया अस्पताल में इलाज करा रहे कई लोगों का यही कहना है कि पुलिस व प्रशासन ने लाठीचार्ज न किया होता और पुल टूटने की अफवाह न फैली होती तो यह हादसा नहीं होता और कई घरों के चिराग बुझने से बच जाते.