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मध्य प्रदेश: शराबियों के लिए शामत बना महिलाओं का ‘लाठी गैंग’

रुपहले पर्दे पर भले ‘गुलाब गैंग’ की महिलाएं अपनी बहादुरी और जुझारूपन के लिए इन दिनों सुर्खियां बटोर रही हों. लेकिन मध्य प्रदेश की आदिवासी महिलाएं बीते दो सालों से अपनी हिम्मत और लाठी के जोर पर शराबियों को चैन नहीं लेने दे रही हैं.

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रुपहले पर्दे पर भले ‘गुलाब गैंग’ की महिलाएं अपनी बहादुरी और जुझारूपन के लिए इन दिनों सुर्खियां बटोर रही हों. लेकिन मध्य प्रदेश की आदिवासी महिलाएं बीते दो सालों से अपनी हिम्मत और लाठी के जोर पर शराबियों को चैन नहीं लेने दे रही हैं. इन महिलाओं की लाठी का खौफ इतना है कि इन्हें देखते ही शराबियों के होश फाख्ता हो जाते हैं. अपनी शराब विरोधी मुहिम के आक्रामक तेवर के चलते महिलाओं की यह ‘लाठी गैंग’ इलाके में बहुत लोकप्रिय हो गई है.

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पश्चिमी मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल झाबुआ जिले में इन दिनों आदिवासी महिलाओं की लाठी गैंग की धूम है. शराबियों के लिए आंतक का पर्याय बन चुकी इन महिलाओं की सक्रियता का यह आलम है कि गांव में 90 से 95 फीसदी लोगों ने शराब से तौबा कर ली है. बीते दो सालों में इन महिलाओं के काम का असर इतना गहरा हो गया है कि इन्हें देखते ही शराबियों को अपनी नानी याद आ जाती है.
मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के ग्राम नवापाडा की इन महिलाओं ने गांव में पुरुषों की शराब पीने की आदत से हो रही बर्बादी से परेशान होकर समूह बनाया. समूह ने बैठक करके गांव को शराबमुक्त करने की योजना पर विचार विमर्श किया और तय पाया कि पुरुषों की शराबखोरी को चुनौती देने के लिए उन्हें लाठियां उठानी पड़ेंगी. अपनी योजना के मुताबिक महिलाओं ने लाठीधारी गैंग बनाकर शराबियों के घर-घर जाकर दस्तक दी और इस प्रकार कुछ ही दिनों में पुरुष शराब से मुंह मोड़ने लगे.

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इन दिनों शराब की लत के शिकार कुछ लोग जब लुक-छिपकर शराब पीने की कोशिश करते हैं तो सूचना मिलते ही लाठीधारी महिलाओं की गैंग अपनी कार्ययोजना के मुताबिक मौके पर पहुंचकर उन्हें घेर लेती हैं और शराबी पर इतना दबाव बनाया जाता है कि वह शराब को हमेशा के लिए छोड़ देता है. ये महिलाए शराबियों पर जुर्माना भी लगाती हैं.

शराब जैसी सामाजिक बुराई को जड़ से उखाड़ फेंकने के खातिर गोलबंद हुई अनपढ़ आदिवासी महिलाओं ने पुरुषों की बुरी लत छुड़वाने के लिए हौसले से लाठी थामी तो इसके सुखद परिणाम सामने आए. अब तक गांव की 90 महिलाएं इस गैंग में भर्ती हो चुकी हैं, जो अपने गांव के साथ आस-पास के पांच-छह गांवों के शराबियों के लिए भय का दूसरा नाम बन गई हैं. महिलाओं की इस भूमिका को लेकर अन्य ग्रामीण बेहद खुश हैं, उनका कहना है कि पहले कीमती फसलों की कमाई उनके परिवार के पुरुष शराब पीने पर लुटा देते थे. अब वह रुपया बच्चों की पढ़ाई व घर की खुशहाली पर खर्च होता है. यह महिलाएं जरूरत पड़ने पर शराबियों को लाठी के दम पर गांव के बाहर खदेड़ने से भी गुरेज नहीं करतीं.

लाठी के सहारे गांव को शराब मुक्त करने के संकल्प के साथ आगे बढ़ने वाली लाठी गैंग की महिलाएं अपने भीतर नैतिक शक्ति बनाए रखने के लिए नियमित रूप से हवन करती हैं. इसके लिए उन्होंने एक हवन कुण्ड भी बनाया है. इसके अलावा वे प्रार्थना के साथ अपनी साथी महिलाओं का तिलक लगाकर अभिषेक करती है, ताकि उनकी गैंग का आत्मविश्वास बरकरार रहे व उनमें बिखराव ना हो. गांव की खुशहाली के लिए लाठी उठाने वाली इन महिलाओं को अपनी हिम्मत और हौसले पर बड़ा गर्व है.

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लाठीगैंग की अध्यक्ष तेजुबाई कहती हैं, ‘पहले पुरुषों का समूह बनाया था पर वह नहीं चला, फिर हमने महिलाओं का समूह बनाया. हमारे गांव में 200-250 परिवार है, गांव के सभी पुरुष बहुत शराब पीते थे. गेहूं, मक्का, सोयाबीन, कपास आदि की फसल बेचकर शराब पी जाते थे. बच्चों और महिलाओं को कपड़े पहनने को भी नहीं मिलते थे, उधार लेकर खाना पड़ता था, फिर समूह बनाकर महिलाओं ने तय किया कि जो शराब पिएगा उसे लठ्ठ लेकर पीटेंगे. फिर हम घर-घर लठ्ठ लेकर गईं और पुरुषों को समझाया, जो समझ गए उन्होंने शराब पीना बंद कर दिया जो नहीं समझे थे उन्हें पकड़कर थाने ले जाने की कोशिश की, तब उन्होंने जुर्माना भरने व शराब नहीं पीने की बात कही.’

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