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कांग्रेस ने कब्जाया सिंधिया का किला, AAP और ओवैसी की पार्टी की उम्मीद जगी... MP निकाय चुनाव नतीजों के 5 बड़े संदेश

मध्य प्रदेश के 16 नगर निगम में से 11 के चुनाव नतीजे रविवार को घोषित हो गए. सत्ताधारी बीजेपी सात शहरों में मेयर का चुनाव जीतने में कामयाब रही तो कांग्रेस ने तीन नगर निगम सीटों पर कब्जा जमाया है. पहली बार निकाय चुनाव में उतरी आम आदमी पार्टी सिंगरौली में महापौर बनाने में सफल रही. ऐसे में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले निकाय चुनाव के नतीजों ने कांग्रेस और बीजेपी के लिए सियासी संदेश दे दिए हैं?

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ज्योतिरादित्य सिंधिया और शिवराज सिंह चौहान (फाइल फोटो)
ज्योतिरादित्य सिंधिया और शिवराज सिंह चौहान (फाइल फोटो)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • 11 में से 7 मेयर सीट पर जीती बीजेपी
  • आम आदमी पार्टी का भी खुला खाता
  • ओवैसी की पार्टी ने भी किया अच्छा प्रदर्शन

मध्य प्रदेश के शहरी निकाय चुनाव की तस्वीर साफ हो चुकी है और सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के मजबूत किले भी धराशायी हो गए हैं. पहले दौर में 11 नगर निगमों में चुनाव हुआ था जिनके नतीजे आ चुके हैं. इन 11 में से 7 नगर निगम के मेयर चुनाव में बीजेपी, 3 पर कांग्रेस और एक पर आम आदमी पार्टी को सफलता मिली है. नगरीय निकाय चुनाव के नतीजे देखकर भले ही ऐसा लगे कि बीजेपी को बढ़त मिली है, लेकिन पिछले चुनाव की तुलना में पार्टी को नुकसान हुआ है. बीजेपी के कई दिग्गज अपना गढ़ भी नहीं बचा सके. सूबे में करीब एक साल बाद विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में निकाय चुनाव नतीजे बीजेपी के लिए चिंता बढ़ाने वाले हैं तो कांग्रेस के लिए किसी सियासी संजीवनी से कम नहीं.

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एमपी के 11 नगर निगमों में से बीजेपी ने इंदौर, भोपाल, बुरहानपुर, उज्जैन, सतना, खंडवा और सागर में जीत दर्ज की है. कांग्रेस ने ग्वालियर, जबलपुर और छिंदवाड़ा नगर निगम पर कब्जा जमाया है तो निकाय चुनाव में पहली बार उतरी आम आदमी पार्टी खाता खोलने में कामयाब रही. वहीं, असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM भले ही एक भी मेयर सीट न जीत सकी हो, लेकिन कई सीटों पर कांग्रेस का गणित जरूर बिगाड़ दिया. दिलचस्प बात यह है कि मध्य प्रदेश के सभी 16 नगर निगमों में पूरी तरह बीजेपी का कब्जा था और कांग्रेस का एक भी मेयर नहीं था. बीजेपी ने चार नगर निगम के मेयर की कुर्सी गंवा दी है. इस तरह निकाय चुनाव से पांच बड़े राजनीतिक संदेश निकले हैं.

बीजेपी का मजबूत किला दरका

पिछली बार हुए निकाय चुनाव में सभी 11 नगर निगमों में बीजेपी के मेयर चुने गए थे. इस बार उसे चार नगर निगमों में मेयर पद से हाथ धोना पड़ा है. इनमें ग्वालियर भी शामिल है जहां 57 साल के बाद बीजेपी को हार मिली है. इसी तरह जबलपुर में 23 साल बाद बीजेपी का मेयर नहीं होगा. ग्वालियर और जबलपुर बीजेपी के सबसे मजबूत गढ़ माने जाते हैं और यहां पार्टी को मिली हार ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया, नरेंद्र सिंह तोमर, नरोत्तम मिश्रा, जयभान सिंह पवैया और प्रभात झा के अलावा शिवराज सरकार के पांच मंत्री ग्वालियर इलाके से आते हैं. बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह जबलपुर से सांसद हैं तो राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा की ससुराल जबलपुर में ही है. ऐसे में बीजेपी के लिए यहां मिली हार निश्चित तौर पर चिंता बढ़ाने वाली है. शहरी वोटों पर बीजेपी की मजबूत पकड़ मानी जाती है, जिसके चलते उसकी हार ने तमाम सवाल खड़े कर दिए हैं. 

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कांग्रेस को संजीवनी और नसीहत

नगर निगम चुनाव में कांग्रेस तीन सीटें जीतने में कामयाब रही है. 57 साल बाद ग्वालियर, 23 साल बाद जबलपुर और 18 साल बाद छिंदवाड़ा में कांग्रेस का महापौर होगा. कांग्रेस के लिए नगर निगम चुनाव के नतीजे पिछले चुनाव के मुकाबले काफी बेहतर रहे हैं. तीन नगर निगम में मेयर पद पर कब्जा करने के साथ ही कांग्रेस ने उज्जैन और बुरहानपुर में बीजेपी को कड़ी टक्कर भी दी. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के गढ़ छिंदवाड़ा में कांग्रेस जीती है लेकिन ग्वालियर में कोई नेता न होने के बाद भी पार्टी अपना मेयर बनाने में सफल रही. ग्वालियर की जीत का श्रेय सतीश सिकरवार को जाता है, जिनकी पत्नी ने मेयर का चुनाव जीता है. अधिकांश जगह कांग्रेस के वोट में इजाफा हुआ है जो अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिहाज से सियासी संजीवनी की तरह माना जा रहा है. 

एमपी निकाय चुनाव में मिली जीत से कांग्रेस में कमलनाथ का सियासी कद बढ़ा है तो दिग्विजय सिंह और अरुण यादव जैसे नेता अपना गढ़ नहीं बचा सके. दिग्विजय सिंह के लोकसभा क्षेत्र भोपाल में पार्टी को हार मिली है और उनके प्रभाव वाले राजगढ़ और ब्यावरा नगरपालिका में भी कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है. जीत की संभावना वाले खंडवा और बुरहानपुर में हार का समाना करना पड़ा है. खंडवा को अरुण यादव का गढ़ माना जाता है तो इंदौर में जीतू पटवारी का प्रभाव है. ऐसे में कांग्रेस के लिए इन नतीजों में कई नसीहतें छिपी हैं. पार्टी ने तीन जगह विधायकों को मेयर पद के लिए खड़ा किया था लेकिन तीनों ही चुनाव हार गए. 

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शिवराज के नेतृत्व पर सवाल

मध्य प्रदेश की सत्ता में 15 महीनों को छोड़ दें तो 17 साल से बीजेपी काबिज है. शिवराज सिंह चौहान पिछले 15 साल से मुख्यमंत्री हैं. ऐसे में 11 नगर निगम चुनाव में तीन शहरों में मिली हार ने शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं. साल 2018 में बीजेपी ने शिवराज के नेतृत्व में ही विधानसभा चुनाव लड़ा था और पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था. हालांकि, ज्योतिरादित्य सिंधिया की कांग्रेस से बगावत के चलते बीजेपी सरकार बनाने में कामयाब रही थी.

एमपी को चार महानगरों में बांट कर देखा जाता है- इंदौर, भोपाल, ग्वालियर और जबलपुर. इनमें से भाजपा को सिर्फ दो में ही जीत मिली है. इंदौर और भोपाल में बीजेपी जीती है जबकि ग्वालियर और जबलपुर में कांग्रेस को विजय मिली है. ग्वालियर और जबलपुर के नगर निगम चुनाव में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा है, उससे एंटी-इनकंबेंसी की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. ऐसे में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में बीजेपी शिवराज सिंह चौहान की ही अगुवाई में उतरेगी, यह कहना मुश्किल है. 

AAP-ओवैसी की जागी उम्मीद

एमपी के सिंगरौली नगर निगम  में आम आदमी पार्टी अपना मेयर बनाने में कामयाब रही. पहली बार निकाय चुनाव में उतरी सिंगरौली से मेयर की AAP प्रत्याशी रानी अग्रवाल जीती हैं. इस तरह क्षेत्र की जनता ने AAP को बीजेपी के विकल्प रूप में चुना है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल रानी अग्रवाल समर्थन में चुनाव प्रचार करने का दांव कामयाब रहा. इससे आम आदमी पार्टी के लिए एमपी में उम्मीद जगी है. वहीं, बुरहानपुर नगर निगम मेयर सीट पर असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी 10 हजार वोट हासिल करने में कामयाब रही और कांग्रेस को करीबी हार का सामना करना पड़ा.

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इतना ही नहीं बुरहानपुर और जबलपुर में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी के कुछ पार्षद भी चुनाव जीते. इसे मुसलमानों के कांग्रेस से भंग हो रहे मोह के रूप में भी देखा जा रहा है. बुरहानपुर में ओवैसी के कैंडिडेट नहीं होते तो कांग्रेस जीत सकती थी. ऐसे में कांग्रेस और बीजेपी, दोनों के लिए ही संदेश साफ है कि उन्हें सोचना होगा नहीं तो जनता उनके विकल्प के तौर पर आम आदमी पार्टी या ओवैसी की पार्टी की तरफ भी जा सकती है. 

2023 चुनाव के लिए सियासी संदेश

निकाय चुनाव को मध्य प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव का लिटमस टेस्ट माना जा रहा है. ऐसे में निकाय चुनाव के नतीजों से कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए सियासी संदेश छिपे हैं. ये नतीजे किसी भी लिहाज से एकतरफा नहीं हैं. ऐसे में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी को अपना घर दुरूस्त करना होगा. ग्वालियर, जबलपुर, सिंगरौली और छिंदवाड़ा जैसे शहरों में बीजेपी की हार ने पार्टी को सोचने के लिए मजबूर किया है. यह भी स्पष्ट है कि बीजेपी के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी देखने को मिली है, जिसका कांग्रेस को फायदा मिली है. ग्वालियर जैसे बीजेपी के गढ़ में कांग्रेस ने उसे शिकस्त दी क्योंकि वहां उसके कार्यकर्ता एकजुट होकर लड़े. कांग्रेस एक बार फिर से शहरी इलाकों में अपना आधार वापस पाने में सफल रही है. ऐसे में निकाय चुनाव के नतीजे 2023 के लिए बड़ा संदेश माने जा रहे हैं. 

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अभी पांच नगर निगम के नतीजे बाकी हैं

दरअसल, मध्य प्रदेश प्रदेश के 16 नगर निगम, 96 नगर पालिका और 255 नगर परिषद के चुनाव दो चरणों में हुए हैं. जिसके बाद इनके परिणाम भी दो चरण में ही घोषित होने है. पहले चरण में 133 सीटों पर 6 जुलाई को वोटिंग हुई थी. इस चरण में 11 नगर निगम, 36 नगर पालिका और 86 नगर परिषद के लिए वोटिंग हुई थी. वहीं, दूसरे चरण में 5 नगर निगम के चुनाव नतीजे घोषित किए जाएंगे. 

 

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