पंचायत आज तक के कार्यक्रम में तमाम दिग्गज साधु संतों ने हिस्सा लिया. संतों ने मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार से नाराजगी जताने के साथ-साथ मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप भी लगाया.
कंप्यूटर बाबा ने कहा, 'मध्य प्रदेश में शिवराज सरकार को 15 वर्ष हो गए. ये केवल बाबाओं का मुखौटा लगा लेते हैं और कहते हैं कि भगवा की सरकार है, हिंदुओं की सरकार है. सारे संतों को ऐसे मढ़ दिया है कि बीजेपी के साथ है जबकि सारे संत धर्म के साथ हैं. सभी संत परेशान हैं. चित्रकूट में कम से कम 100 झुग्गी तोड़ दी हैं. मैंने शिवराज सिंह से कहा कि ये जो झुग्गी तोड़ रहे हैं, तो एक पट्टा ही दे दो.'
कंप्यूटर बाबा ने कहा, 'बाबर के जमाने में संत इतना परेशान नहीं हुए, हम कांग्रेस के जमाने में भी परेशान नहीं हुए लेकिन बीजेपी के जमाने में परेशान हो गए. हमको रोना आता है. ये हमारे नाम से सरकार बनाते हैं, ये हमारे नाम से तो खाते हैं लेकिन हमें बाहर भगाते हैं. हम बिल्कुल परेशान हैं, हम दुखित हैं.'
कार्यक्रम में स्वामी नवीनानंद सरस्वती ने कहा, 'मैं आपको एक प्रमाण के साथ बताता हूं. पूरे मंदिर में जितने मंदिर रोड किनारे आते थे, उनको तोड़कर फेंक दिया दिया जाता है लेकिन भोपाल में कमला पार्क में एक मस्जिद की बाउंड्री रोड पर आ रही थी, उसे 10 फीट भी नहीं हटाया. करोड़ों का पुल बना दिया गया पर दीवार तक नहीं छूई गई. तो फिर हिंदुओं के साथ भेदभाव क्यों किया जाता है?'
इस सत्र में वरिष्ठ पत्रकार राहुल कंवल ने संतों से सवाल पूछा कि संत सरकार से पट्टा-पट्टा क्यों करते हैं, साधुओं और बिजनेसमैन में क्या अंतर है?
इस सवाल के जवाब में संतों ने कहा कि संतों को भी भजन और ईश्वर का ध्यान करने के लिए जगह चाहिए. साधुओं और संतों की अलग संवेदनाएं हैं. एक संत ने कहा, 'जब हमारे मंदिर-मठों को नष्ट किया जाता है तो हमें मुआवजा मिलना चाहिए. पहले जहां कहीं भी प्राकृतिक जगह मिलती थी, संत रह जाते थे. आज से 50 साल पहले से लेकर साधु संत इसे अपना देश मानते रहे हैं, लेकिन अब तो हमें यहां का नागरिक भी नहीं माना जाता है. अगर किसी गरीब की झोपड़ी उजाड़ दिया जाता है तो उसे मुआवजा दिया जाता है लेकिन मठ मंदिर रातों रात उजाड़ दिए जाते हैं और कोई मुआवजा नहीं दिया जाता है.'
अवधेशानंद ने कहा कि संतों के लिए सरकार कुछ नहीं सोचती. राजनीति में आने का उद्देश्य यह है कि हम अपनी बात मजबूती से रखें. स्वामी नवीनानंद सिर्फ हिंदुओं के मंदिरों का ट्रस्ट बनाया जाता है. मस्जिदों का नहीं. संतों को तपस्या करनी चाहिए.