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इस गांव में बच्चों से लेकर बूढ़ें तक सभी 'ब्रिज खेल' के धुरंधर

अब इस गांव में ब्रिज का असर इतना है कि गांव वालों ने 'ब्रिज क्लब' ही खोल दिया है. गांव वालों का कहना है हम सभी इस खेल को खेलते हैं. हम देश के कई राज्यों में इस खेल को खेल चुके हैं. साथ ही कई पुरस्कार भी जीत चुके हैं.

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रायबिड़पुरा में 'ब्रिज' के उस्ताद
रायबिड़पुरा में 'ब्रिज' के उस्ताद

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'ब्रिज' एक ऐसा ताश के पत्तों का खेल जिसे आमतौर पर अमीर लोग ही खेल पाते हैं. मध्य प्रदेश के खरगौन जिले के एक छोटे से गांव रायबिड़पुरा में 'ब्रिज' के उस्ताद बसते हैं.

आबादी महज 5000 लेकिन 500 से ज्यादा लोग ब्रिज के उस्ताद. मध्य प्रदेश के निमाड़ क्षेत्र में रायबिड़पुरा नाम के गांव में ब्रिज खेलने वालों के नाम का डंका बजता है. वैस तो ब्रिज कोई आसान खेल नहीं है. इसे खेलने के लिए शतरंज से भी ज्यादा दिमाग की जरुरत होती है. लेकिन इस छोटे से गांव में किसानों से लेकर छोटी-छोटी लड़कियों तक को ब्रिज खेलने में महारत हासिल है.

गांव में एक डॉक्टर ने सिखाया था ये खेल
अब आपके मन में सवाल उठेगा कि ब्रिज जैसा ताश के पत्तों का खेल इस छोटे से गांव में कैसे आ गया? तो आपको बता दें कि इसे 1962 में इस गांव के अस्पताल में काम करने आए डॉ. मोहम्मद खान लेकर आए थे. उन्होंने ही इस खेल को खेलना सिखाया था.

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गांव वालों ने खोला 'ब्रिज क्लब'
अब इस गांव में ब्रिज का असर इतना है कि गांव वालों ने 'ब्रिज क्लब' ही खोल दिया है. गांव वालों का कहना है हम सभी इस खेल को खेलते हैं. हम देश के कई राज्यों में इस खेल को खेल चुके हैं. साथ ही कई पुरस्कार भी जीत चुके हैं.

इस गांव में ब्रिज खेलने वालों में शिक्षक भी शामिल हैं. उनका तो मानना है कि ब्रिज खेलने के लिए शतरंज से भी ज्यादा दिमाग की आवश्यकता होती है. वो तो इसे गणित से भी ज्यादा अच्छा मानते हैं. शिक्षकों के हिसाब से तो शासन को ब्रिज को पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए. कुछ शिक्षक तो स्कूल में अपने बच्चों को भी ब्रिज सिखाते हैं. जिससे उनका दिमाम और तेजी से काम कर सके.

वर्ल्ड चैंपियनशिप के लिए हुआ चयन
हालांकि आमतौर पर कोई भी मां-बाप अपने बच्चों को ताश खेलने से रोकता हैं लेकिन इस गांव में ऐसा नहीं है. यहां तो मां-बाप खुद अपने बच्चों को ताश खेलने के लिए कहते हैं. यहां कि लड़कियों का ब्रिज सिर्फ शोक मात्र ही नहीं है. कुछ लड़कियों ने इस खेल में इतनी महारत हासिल की है कि उनका चयन इस्तांबुल में वर्ल्ड चैंपियनशिप के लिए हो गया. लेकिन सही समय पर पासपोर्ट ना बन पाने की वजह से ये बच्चे उस वर्ल्ड चैंपियनशिप का हिस्सा नहीं बन पाए.

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इस गांव को बिल गेट्स ने दिए 1000 डॉलर
इस गांव की पहचान ही अब ब्रिज गांव से होने लगी है. भले ही हमारी सरकार ने इस गांव के लोगों की मदद नहीं की हो. लेकिन अमेरिका से माइक्रोसॉफ्ट कंपनी के मालिक बिल गेट्स इस गांव को 1000 डॉलर देकर मदद कर चुंके हैं.

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