MP News: मध्य प्रदेश के ओरछा में इन दिनों रामनवमी पर होने वाले राम जन्मोत्सव की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं. राम राजा मंदिर प्रांगण में रामनवमी पर पांच लाख दीपक जलाए जाएंगे. इस दीपोत्सव को लेकर प्रशासन ने भी कमर कस ली है. हर घर में दीप जलाकर घर के बाहर रंगोली बना कर रामनवमी के त्यौहार को मनाया जाएगा.
निवाड़ी कलेक्टर नरेंद्र सूर्यवंशी बताते हैं कि दीपोत्सव कार्यक्रम में 5 हजार वॉलिंटियर्स का विशेष भूमिका रहेगी. प्रशासन घर-घर जाकर लोगों को कार्यक्रम के लिए न्योता दे रहा है. बेतवा नदी पर दीपोत्सव लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र रहेगा. कार्यक्रम में सीएम शिवराज सिंह चौहान के शामिल होने की पूरी संभावना है. इसके अलावा रामनवमी पर मंदिर में भगवान की जन्मआरती और बधाई गीतों का आयोजन होगा. सुबह के समय भव्य शोभायात्रा निकाली जाएगी. रामनवमी पर तकरीबन 50 हजार भक्तों के ओरछा आने की उम्मीद है.
वहीं, बेतवा नदी के किनारे संस्कृति विभाग की ओर से 3 अप्रैल से रामलीला का भी आयोजन होना है. जो रामनवमी के दिन पूर्ण होगी. इसको लेकर भी संस्कृति विभाग तैयारियों में लगा है.
ओरछा में रामनवमी का ये है महत्व
यूं तो श्रीराम जन्मोत्सव पूरे देश में मनाया जाता है पर ओरछा में इसका दोहरा महत्व है. संवत् 1631 में ओरछा की महारानी कुंअर गणेश ने रामनवमी को राम राजा सरकार को अयोध्या से ओरछा लाकर यहां राजा के रूप में विराजमान कराया था. बुंदेला शासकों की नगरी ओरछा का राम राजा मंदिर देश का इकलौता मंदिर है जहां राम लला राजा के रूप में विराजित हैं. यहां भक्त और भगवान के बीच राजा और प्रजा का संबंध है. यह देश का एकमात्र मंदिर ऐसा है जहां पर राजा के रूप में राम राजा सरकार को तीनों समय सशस्त्र सलामी दी जाती है. यहीं नहीं इस मंदिर में पुरानी राजसी परंपराओं का भी पालन होता है.
राम राजा मंदिर की है पौराणिक मान्यता
राम राजा सरकार मंदिर के प्रधान पुजारी पंडित रमाकांत शरण महाराज पौराणिक मान्यताओं का उल्लेख करते हुए बताते है कि संवत् 1631 में तत्कालीन बुंदेला शासक महाराजा मधुकर शाह की पत्नी महारानी कुंअर गणेश भगवान राम को अयोध्या से ओरछा लाई थीं. राजा कृष्ण उपासक थे और रानी राम. रानी और राजा दोनों में अपने इष्ट की उपासना को लेकर मतभेद रहते थे. एक दिन ओरछा नरेश मधुकर शाह ने अपनी पत्नी कुंअर गणेश से कृष्ण उपासना के इरादे से वृंदावन चलने को कहा, लेकिन रानी तो राम की भक्त थीं. उन्होंने वृंदावन जाने से मना कर दिया. गुस्से में आकर राजा ने उनसे यह कहा कि तुम इतनी राम भक्त हो तो जाकर अपने राम को ओरछा ले आओ. इसके बाद रानी ने अयोध्या पहुंच कर सरयू नदी के किनारे लक्ष्मण किले के पास अपनी कुटी बना कर साधना आरंभ की. रानी को कई महीनों तक राम के दर्शन नहीं हुए. वह निराश होकर अपने प्राण त्यागने सरयू की मझधार में कूद पड़ीं. यहीं जल की अतुल गहराइयों में उन्हें बाल रूपी राम के दर्शन हुए.
...सशर्त अयोध्या आए रामलला
राम लला (बाल रूपी राम) को अपनी गोद में आया देख महारानी अभिभूत हो गईं. उन्होंने राम से ओरछा चलने का आग्रह किया. तब मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने शर्त रखी थी कि वे ओरछा जानें तीन शर्तें रखीं. पहली वे स्वयं वहां के राजा होंगे यानी उन्हीं की सत्ता होगी. दूसरी राजशाही पूरी तरह से खत्म हो जाए और तीसरी अपने राज्य का अधिक विस्तार नहीं होने देंगे. इससे भी बड़ी शर्त यह थी कि वे ओरछा तक का सफर रानी की गोद में ही करेंगे. रानी उन्हें जिस स्थान पर गोद से उतार देंगी. वहीं वे बैठ जाएंगे. लंबे सफर को देखते हुए रानी ने पुष्य नक्षत्र में यात्रा करने की ठानी और राजा को यह संदेश भेज कर कि वे राजा राम को लेकर ओरछा आ रही हैं. पुष्य नक्षत्र में ओरछा के लिए रवाना हो गईं.
एक ऐसा मंदिर जहां राम विराजे ही नहीं
रानी का संदेश मिलते ही राजा मधुकर शाह ने राम राजा के विग्रह को स्थापित करने के लिए चतुर्भुज मंदिर बनवाना शुरू किया. मंदिर भव्यतम बन रहा था इसलिए उसमें समय भी लग रहा था. रानी की राम के प्रति लगन को देखते हुए इस तरह मंदिर बनवाया जा रहा था कि रानी सुबह जैसे ही अपनी आंखें खोलें शयन कक्ष से ही उन्हें राम के दर्शन हो जाएं. रानी संवत् 1631 चैत्र शुक्ल नवमी को ओरछा पहुंचीं. मंदिर का निर्माण कार्य उस समय अंतिम चरणों में था. इस पर रानी ने राम लला की मूर्ति अपने महल की रसोई में रख दी. यह निश्चित हुआ कि शुभ मुहूर्त में मूर्ति को चतुर्भुज मंदिर में रखकर इसकी प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी. मंदिर तैयार हुआ. मुहुर्त भी निकला लेकिन राम के इस विग्रह ने चतुर्भुज जाने से मना कर दिया क्योंकि राम की यह शर्त थी के वह जहां बैठ जाएंगे वहां से नही उठेंगे. राम वहां से उठे नहीं और उनके लिए बनाया गया चतुर्भुज मंदिर खाली रह गया. यह मंदिर आज भी उसी अवस्था में है.
और राजा मधुकर शाह ने त्याग दिया राज
चूंकि राम स्वयं राजा थे और ओरछा जाने की पूर्व शर्त भी यही थी. इसलिए राम के यहां स्थापित होते ही मधुकर शाह अपना राज छोड़ कर टीकमगढ़ चले गए और ओरछा के सरकार यानी राजा के रुप में विख्यात हुए भगवान राम. शास्त्रों में वर्णित है कि आदि मनु-शतरूपा ने हजारों वर्षों तक शेषशायी विष्णु को बाल रूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या की तो विष्णु ने उन्हें प्रसन्न होकर आशीष दिया और त्रेता में राम, द्वापर में कृष्ण और कलियुग में ओरछा के राम राजा के रूप में अवतार लिया.
राम राजा को तीनों पहर दी जाती है सशस्त्र सलामी
ओरछा में भगवान राम राजा के रूप में विराजमान हैं इसलिए उन्हें तीनों पहर पुलिस के जवानों की ओर से तीनों पहर सशस्त्र सलामी दी जाती है. उनके अलावा ओरछा परिकोटा के अंदर आने वाले किसी भी विशिष्ट या अतिविशिष्ट व्यक्ति को पुलिस गार्ड ऑफ ऑनर नहीं देती. देश के प्रधानमंत्री से लेकर कई अतिविशिष्ट व्यक्ति कई बार ओरछा आए लेकिन उन्हें सलामी नहीं दी गई. ओरछा के राम राजा सरकार के सामने प्रजाजन समान सभी लोग नतमस्तक होते हैं.
रामराजा सरकार के आगमन का मनाया जाता है उत्सव
राम राजा सरकार के अयोध्या से ओरछा आगमन का उत्सव मनाने की अनूठी परंपरा यहां कई शताब्दियों से चल रही है. उत्सव की यह परंपरा इसलिए क्योंकि पांच सौ वर्ष पूर्व ओरछा की महारानी कुंअर गणेश अयोध्या से श्रीराम के विग्रह को लेकर संत-समाज के साथ पदयात्रा करते हुए नवमी पुष्य नक्षत्र में ओरछा पहुंची थीं और रामलला को यहां राजा के रूप में प्रतिस्थापित किया था. भक्तों की पदयात्रा की परंपरा ओरछा में आज भी कायम है. हर साल नवमी पुष्य नक्षत्र को एक भव्य शोभा यात्रा निकाली जाती है और लाखों श्रद्धालु पैदल चलकर राम राजा सरकार के दरबार में पहुंचते हैं.
एक मान्यता यह भी...
मान्यता है कि जब राम वनवास जा रहे थे तो उन्होंने अपनी एक बाल मूर्ति मां कौशल्या को दी थी. मां कौशल्या उसी को बाल भोग लगाया करती थीं. जब राम अयोध्या लौटे तो कौशल्या ने वह मूर्ति सरयू नदी में विसर्जित कर दी. यही मूर्ति कुंअर गणेश को सरयू की मझधार में मिली थी. यह विश्व का अकेला ऐसा मंदिर है, जहां राम की पूजा राजा के रूप में होती हैं. साथ ही यही एकमात्र मंदिर ऐसा है जहां राम और उनके भक्तों के बीच राजा और प्रजा जैसा संबंध है.
शयन आरती पश्चात हनुमान जी को सौंपी जाती है ज्योति
ओरछा में राजा राम तो अयोध्या में अपने बाल रूप में विराजमान हैं. जनश्रुति है कि श्रीराम दिन में ओरछा तो रात्रि में अयोध्या विश्राम करते हैं. राम राजा सरकार के दो निवास हैं खास दिवस ओरछा रहत है, सयन अयोध्या वास. शयन आरती के पश्चात उनकी ज्योति हनुमान जी को सौंपी जाती है, जो रात्रि विश्राम के लिए उन्हें अयोध्या ले जाते हैं.