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मध्यप्रदेश: लगातार तबादलों से सरकारी खजाने पर पड़ा करोड़ों का भार

सरकार भले ही इसे सामान्य प्रक्रिया बता रही है लेकिन एक सच ये भी है कि अफसरों के तबादलों पर होने वाले खर्चे पर शायद सरकार का ध्यान नहीं है.

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मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ (फाइल फोटो)
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ (फाइल फोटो)

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मध्यप्रदेश में अफसरों के लगातार हो रहे तबादलों पर नया विवाद खड़ा हो गया है. आलम ये है कि 15 साल बाद मध्यप्रदेश की सत्ता में आई कांग्रेस सरकार के 5 महीने के कार्यकाल में करीब-करीब 500 अधिकारियों के तबादले हो चुके हैं. इसमें  आईएएस, आईपीएस और आईएफएस समेत अन्य ग्रेड के अधिकारियों के तबादले हो चुके हैं.

आज तक ने जब लगातार हो रहे तबादलों पर विधि मंत्री पीसी शर्मा से बात की तो उन्होंने इसे एक सामान्य प्रक्रिया बताया. मंत्री शर्मा ने कहा कि 'ये एक सामान्य प्रक्रिया है और कोई भी नई सरकार व्यवस्था में कसावट लाने के लिए अफसरों के ट्रांसफर करती है. भारतीय जनता पार्टी के जमाने में तो पैसे लेकर पोस्टिंग होती थी कमलनाथ और कांग्रेस की सरकार में कोई इस तरीके की बात नहीं है. जिसकी जहां उपयोगिता है उनकी वह पोस्टिंग की जा रही है. शर्मा ने कहा कि यह सौ  चूहे खाकर बिल्ली हज को चली वाला मामला है भारतीय जनता पार्टी का.'

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सरकार भले ही इसे सामान्य प्रक्रिया बता रही है लेकिन एक सच ये भी है कि अफसरों के तबादलों पर होने वाले खर्चे को शायद सरकार का ध्यान नहीं है. दरअसल किसी भी अखिल भारतीय सेवा के अफसर का तबादला जब होता है तो उस तबादले के दौरान होने वाला खर्च सरकार की तरफ से उठाया जाता है. इसमें समान की शिफ्टिंग से लेकर अफसर और उसके परिजनों की एक जगह से दूसरी जगह यात्रा का व्यय भी शामिल होता है. आपको बता दें कि अखिल भारतीय सेवा के अफसर या परिजनों को फर्स्ट क्लास तक का किराया दिया जाता है.

अब अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलेगा कि मध्यप्रदेश में लगभग 500 अफसरों के तबादलों से ही सरकारी खजाने पर करीब करीब 32 करोड़ रुपए का भार पड़ चुका है. इसमें यदि तबादले के दौरान मिलने वाले वैतनिक अवकाश को छोड़ भी दें तो भी आंकड़ा 12 करोड़ के लगभग बैठेगा. अकेले ट्रांसफर ग्रांट के रूप में इन अफसरों को इनकी सैलरी का 80 फीसदी रुपया मिलता है और अफसरों की संख्या के लिहाज से जोड़ें तो ये रकम करीब 8 करोड़ रुपए के लगभग बैठती है. ये रकम इसलिए ज्यादा है क्योंकि कई अफसर ऐसे हैं जिनका बीते महीनों में एक से ज्यादा बार तबादला हुआ है. ऐसे में उन्हें ट्रांसफर के दौरान मिलने वाली रकम भी बढ़ जाती है. वहीं शिफ्टिंग के दौरान समान को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने के लिए ट्रांसपोर्टेशन खर्चे के रूप में इन्हें 50 रुपए प्रति किलोमीटर दिया जाता है.

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'तबादला उद्योग चला रही सरकार'

वहीं दूसरी ओर बीजेपी ने बार-बार हो रहे तबादलों के बीच सरकार पर 'तबादला उद्योग' चलाने का आरोप लगाया है. शिवराज सरकार में मंत्री रहे और नरेला विधानसभा से विधायक विश्वास सारंग ने आरोप लगाते हुए कहा कि 'उन्होंने कहा था रोजगार देंगे. रोजगार तो नहीं दिया और दिया तो कांग्रेस के दलालों को और कांग्रेस के विधायकों को तबादले में पैसे लो पोस्टिंग इधर से उधर करवाओ, तबादला उद्योग फले और फूले और वह तबादला उद्योग जब फल फूल जाए, पैसा आ जाए तो मुख्यमंत्री निवास हवाला उद्योग में बदल जाए.'

वहीं विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने कहा है कि 'कमलनाथ सरकार ने आचार संहिता हटने के बाद एक बार फिर से तबादला उद्योग शुरू कर दिया. प्रदेश सरकार ने थोक में आईएएस, आईपीएस और अन्य विभागों से जुड़े सैकड़ों अधिकारियों के तबादले कर दिए हैं. कांग्रेस सरकार में तबादलों के सहारे पैसे कमाए जा रहे हैं.'

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