बुधवार को महाराष्ट्र विधानसभा में जो हुआ उससे शिवसेना को जो धक्का लगा है उसे वह जीवन भर नहीं भूलेगी. उन्होंने दोस्ती और दुश्मनी दोनों कार्ड खेलने की कोशिश की और मात खा गई. उन्हें लगा कि अब उनके हाथों में है लेकिन बीजेपी ने जो होशियारी दिखाई उससे उनके हाथों के तोते उड़ गए. बहरहाल हम जानने की कोशिश करते हैं वो 10 वजहें क्या थीं जिनसे सेना का गणित बिगड़ गया.
1. शिवसेना शुरू से ही गलत कार्ड खेल रही थी. चुनाव के पहले वह बीजेपी से सीटों के लिए तोलमोल कर रही थी. उसके सख्त रुख ने बीजेपी आलाकमान को यह आभास करवा दिया कि आगे चलकर भी पार्टी का यही रुख रहेगा और यह परेशानियां पैदा करती रहेगी.
2. बीजेपी ने शिवसेना के साथ मिलकर चुनाव तो लड़ना चाहा था लेकिन टिकट बंटवारे के प्रश्न पर वह उससे दूर हो गई. शिवसेना ने तटस्थ भाव से चुनाव लड़ने की बजाय बीजेपी और यहां तक कि पीएम नरेन्द्र मोदी की भी निंदा करनी शुरू कर दी जो अनुचित था. दो राजनीतिक दलों में जब मतभेद होता है तो आपस में संबंध इतने खराब नहीं हो जाते जितने शिवसेना ने किया. शिवसेना सुप्रीमो ने मोदी और उनके समर्थकों को अफजल खान की सेना से तुलना करके अपना खेल खराब कर लिया.
3. शिवसेना की सबसे बड़ी समस्या यह रही कि उसके पास मंजे हुए राजनीतिज्ञ नहीं है. मनोहर जोशी सरीखे पुराने राजनीतिज्ञों को पार्टी ने किनारे कर दिया. ऐसे में उन्हें समय पर सलाह देने वाला कोई अनुभवी नेता नहीं रहा.
4. उद्धव ठाकरे हमेशा इसी उम्मीद में रहे कि बीजेपी उनकी बातों को अंततः मान लेगी. विधानसभा में बीजेपी के सदस्यों की तुलना में उनके पास आधे सदस्य थे लेकिन वे उपमुख्यमंत्री, गृह मंत्री, वित्त मंत्री सहित दस मंत्री पद मांग रहे थे जो बहुत ही बड़ी मांग थी.
5. शिवसेना ने ऐसा कोई चैनल नहीं रखा जिससे उनका बीजेपी आलाकमान से संपर्क बना रहे. यह साधारण सी बात है और हमेशा ऐसी व्यवस्था की जाती रही है. उद्धव ठाकरे को लगा कि मातोश्री वही है जहां बीजेपी के सभी नेता हाजिरी लगाने आते हैं. यहां पर वह चूक गए और समय को पढ़ नहीं पाए.
6. चुनाव के बाद वह अपनी जिद पर अड़े रहे जबकि एनसीपी ने बीजेपी को बिना शर्त समर्थन दे दिया. इस चाल को समझने में वे नाकाम रहे और बीजेपी से तोलमोल करते रहे. महाराष्ट्र कांग्रेस और एनसीपी में दिग्गज राजनीतिज्ञ हैं जिनके सामने उद्धव कहीं नहीं ठहरते.
7. जब विधानसभा स्पीकर का चुनाव हो रहा था तो शिवसेना के मैनेजर ढंग से पत्ते खेल नहीं पाए और उसके बाद जब बीजेपी के नेता आशीष शेलर ने विश्वास प्रस्ताव रख दिया तो उसके नेता उसका पूरी ताकत से विरोध ही नहीं कर पाए. उन्हें मत विभाजन की मांग करनी चाहिए थी. जब तक वे कुछ समझते स्पीकर ने हां के आधार पर सरकार को विश्वास मत मिलने की घोषणा करवा दी.
8. सेना के ज्यादातर विधायक सदन में भ्रमित रहे. उन्हें समझ में नहीं आया कि वे ऐसी हालत में क्या करें. उनके पास एक नेता की कमी साफ दिख रही थी.
9. शिवसेना को हमेशा यह उम्मीद थी कि बीजेपी विश्वास मत के समय झुक जाएगी और उनकी बात मान लेगी. इसलिए पार्टी अनावश्यक बहादुरी दिखाती रही.
10. उद्धव ठाकरे कोई भी फैसला लेने में समय लेते हैं और तुरंत फैसला नहीं कर पाते हैं. इसके अलावा वह सदन में भी उपस्थित नहीं थे. इससे पार्टी का सारा खेल बिगड़ गया. पार्टी के विधायक समझ ही नहीं पाए कि बीजेपी का कितना विरोध होना चाहिए.
अब तो यह देखना है कि उद्धव ठाकरे एनडीए से अलग होते हैं या नहीं? पार्टी के लिए आने वाला समय कठिन है. अगर वह एनडीए से अलग होते हैं तो उनकी पार्टी के टूटने का खतरा मंडराएगा. जब बाला साहेब के जमाने में पार्टी के कई बड़े नेता उनका दामन छोड़कर दूसरी ओर चले गए तो अब कुछ भी हो सकता है.