बृन्हमुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) चुनाव को लेकर भले ही घोषणा न हुई हो, लेकिन सियासी समीकरण अभी से ही साधे जाने लगे हैं. महाराष्ट्र की सत्ता गंवाने और शिवसेना के दो धड़ों में बंट जाने के बाद उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे ने पटना पहुंचकर नीतीश कुमार का सपोर्ट और तेजस्वी यादव को बीएमसी चुनाव प्रचार के लिए रजामंद कर लिया है. इस तरह से उत्तर भारतीययों को साधने का दांव आदित्य ठाकरे ने भले ही चल दिया हो, लेकिन सिर्फ बिहारी मूल के वोटों से ही बीएमसी पर कब्जा बरकरार नहीं रह सकता है. मुंबई की सियासत में बिहारी मूल के वोटों से ज्यादा गुजराती और उत्तर प्रदेश के रहने वाले वालों वोटर्स की भूमिका अहम है.
उद्धव ठाकर के बेटे आदित्य ठाकरे ने बुधवार को अपने प्रतिनिधिमंडल के साथ पटना में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव से मुलाकात की. आदित्य ठाकरे अपने बिहार के पहले ही दौरे में बीएमसी चुनाव के लिए सियासी समीकरण साधते नजर आए. आदित्य ठाकरे ने आरजेडी नेता से बीएमसी चुनाव में अपनी पार्टी के लिए प्रचार करने के लिए बात की तो तेजस्वी यादव ने बीएमसी चुनाव में शिवसेना के प्रचार के लिए अपनी सहमति दे दी.
मुंबई में बिहार से ज्यादा यूपी के लोग
आदित्य ठाकरे ने तेजस्वी यादव के जरिए उत्तर भारतीय वोटों को साधने की कवायद जरूर की है, लेकिन सिर्फ बिहार मूल के वोटों ही बीएमसी की जंग नहीं जीती जा सकती है. मुंबई में सियासी समीकरण देखें तो उत्तर भारतीय वोटर काफी अहम भूमिका में है, लेकिन उसमें बिहारी से ज्यादा उत्तर प्रदेश के रहने वाले लोग हैं. इसके अलावा गुजराती मतदाता भी निर्णायक भूमिका में है.
बता दें कि 1961 से 2001 के बीच उत्तर भारत के राज्यों से बड़ी संख्या में लोग कारोबार और रोजगार के लिए मुंबई में बसे हैं. 2001 की जनगणना के आधार पर तैयार एक रिपोर्ट के मुताबिक मुंबई में उत्तर प्रदेश से आनेवालों की आबादी 24.28 फीसद, बिहार वालों की 3.50 फीसद, मध्य प्रदेश वालों की 1.14 फीसद, राजस्थान वालों की 3.14 फीसद जबकि गुजरात वालों की 9.58 फीसद थी. ऐसे में बढ़ोतरी का अनुपात रहा है तो पिछले दो दशक में मुंबई में उत्तर भारतीय और गुजरातियों की आबादी करीब 50 फीसदी के करीब पहुंच रही हैं.
22 से 25 फीसदी उत्तर भारतीय मतदाता
मुंबई में बिहार और उत्तर प्रदेश के लोगों की आबादी करीब 30 फीसदी हो रही है, लेकिन वोटर लिस्ट के आधार पर देखें तो 22 से 25 फीसदी के बीच उत्तर भारतीय मतदाता है, जिनमें यूपी, बिहार, एमपी, झारखंड, दिल्ली जैसे राज्य हैं. वहीं, गुजराती मतदाता मुंबई में करीब 10 फीसदी है. ऐसे में उत्तर भारतीय वोटर्स में यूपी और बिहार के लोगों की तुलना करते हैं तो यूपी मूल वोटर्स की संख्या बिहार मूल के लोगों से तीन गुना ज्यादा है. मुंबई में यूपी मूल के मतदाताओं की संख्या काफी निर्णायक है.
बीएमसी में 227 सीटों में से करीब 50 से 60 सीटों में उत्तर भारतीय वोटर बहुसंख्यक हैं. इसमें करीब 40-45 वार्डों में इनकी पकड़ मजबूत है, जहां पर जीत हार की भूमिका तय करते हैं. 2014 के मोदी लहर से ही मुंबई में उत्तर भारतीय मतदाताओं का रुझान बीजेपी की ओर हुआ है जबकि उस समय ज्यादातर हिंदीभाषी नेता कांग्रेस में थे. पिछले आठ सालों में कांग्रेस के ज्यादातर उत्तर भारतीय नेताओं ने बीजेपी में एंट्री की है. इसी का नतीजा था कि 2017 के बीएमसी और 2019 के चुनाव में बीजेपी ने मुंबई में बेहतर प्रदर्शन किया था.
2017 में क्या रहे थे BMC चुनाव के नतीजे
साल 2017 में हुए मुंबई के बीएमसी चुनाव में 227 सीटों में से शिवसेना 84 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी थी. जबकि बीजेपी को 82 सीटें मिली थीं. कांग्रेस को 31, एनसीपी को 9 और एमएनएस को 7 सीटों पर जीत मिली थी. बीएमसी चुनाव बीजेपी और शिवसेना अलग-अलग लड़ी थी. तीस साल में पहली बार शिवसेना की सीटें घटी थी और बीजेपी की सीटों में जबरदस्त तरीके से इजाफा हुआ था. इस बार शिवसेना दो धड़ों में बंट चुकी है और उद्धव ठाकरे के करीबी रहे एकनाथ शिंदे अब बीजेपी के साथ मिलकर सत्ता पर काबिज हैं.
शिवसेना का विभाजन होने के बाद उद्धव ठाकरे का गुट सियासी तौर पर कमजोर पड़ा है. महाराष्ट्र की सत्ता के बाद बीजेपी की नजर बीएमसी से भी उद्धव गुट की शिवसेना को बेदखल करने पर है. बीजेपी बीएमसी चुनाव शिवसेना (उद्धव गुट) से सत्ता छीनकर उसे पटखनी देना चाहती है, क्योंकि शिवसेना बीएमसी को ही अपनी असली ताकत मानती है. 2017 के बीएमसी चुनाव में शिवसेना से बीजेपी सिर्फ दो सीटें पीछे रह गई थी.
वहीं, महाविकास अघाड़ी में शामिल कांग्रेस ने मुंबई बीएमसी चुनाव अकेले दम पर लड़ने का फैसला किया है तो एनसीपी का मुंबई में कोई खास आधार नहीं है. ऐसे में उद्धव ठाकरे को बीएमसी की लड़ाई खुद के दम पर लड़नी पड़ रही है, जिसके लिए आदित्य ठाकरे उत्तर भारतीय वोटों को साधने के लिए मंबई से बिहार की पटना पहुंच गए. इस दौरान आदित्य ठाकरे ने नीतीश और तेजस्वी यादव से मिलकर मुंबई में रह रहे बिहार मूल के वोटों को सियासी संदेश जरूर दिया, लेकिन बीएमसी को जीतने के लिए यूपी और गुजराती वोटों को भी साधना होगा.
मुंबई में 35 लाख लोग गुजराती समुदाय के हैं, जिसमें से 15 लाख लोग वोटर हैं जो 40 पार्षद सीटों पर निर्णायक भूमिका में हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बीजेपी और शिवसेना (उद्धव गुट) के छत्तीस के आंकड़े से मराठी और गुजराती ध्रुवीकरण निश्चित है. गुजराती समुदाय का झुकाव पीएम मोदी के चलते बीजेपी की तरफ है जबकि उत्तर भारत के राज्यों में मोदी की लोकप्रियता ने मुंबई में रह रहे उत्तर भारतीय वोटों को भी प्रभावित किया है.
बीएमसी में लंबे समय तक कांग्रेस की पहचान रह चुके उत्तर भारतीय नेता राजहंस सिंह बीजेपी में हैं तो मुंबई कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके कृपाशंकर सिंह अब प्रदेश भाजपा के उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी निभा रहे हैं. बीजेपी राज्यसभा की एक मात्र सीट के लिए भी मुंबई बीजेपी के हिंदीभाषी महासचिव संजय उपाध्याय को भेजा है. पूर्व विधायक रमेश सिंह, फिल्मसिटी बोर्ड के उपाध्यक्ष अमरजीत मिश्र, आरयू सिंह, चंद्रकांत त्रिपाठी सहित भाजपा विधायक और उत्तर भारतीय संघ के अध्यक्ष आरएन सिंह प्रमुख नेता हैं. इस तरह से उत्तर भारतीय नेताओं में भी यूपी का दबदबा है. मुंबई कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष संजय निरूपम और पूर्व विधायक राजहंस सिंह हैं.
मुंबई के गैरमराठी भाषियों में मुस्लिम समाज सबसे ताकतवर माना जाता है. मुंबई में दबदबा रखने वाले ज्यादातर मुस्लिम नेता यूपी से हैं. कांग्रेस के पूर्व मंत्री मो.आरिफ नसीम खान आंबेडकर नगर, एनसीपी प्रवक्ता नवाब मलिक बस्ती, असलम शेख कानपुर और सपा विधायक अबू आसिम आजमी आजमगढ़ जिले से हैं. शिवसेना के पास कोई बड़ा उत्तर भारतीय नेता नहीं है, बीजेपी के साथ होने से उसे फायदा मिलता रहा है. इसीलिए आदित्य ठाकरे बिहार में नीतीश कुमार और तेजस्वी से मिलकर बिहारी वोटों को साधा है, लेकिन बीएमसी चुनाव जीतने के लिए उत्तर प्रदेश और गुजराती वोटों के लिए भी रणनीति बनानी होगी.