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महाराष्ट्र में बीजेपी ने फिर शुरू किया 'MADHAV' फॉर्मूला, चुनाव से पहले बनाया नया प्लान

महाराष्ट्र में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. इसको लेकर सभी राजनीतिक पार्टियां अभी से तैयारियों में जुट गई हैं. इसी के चलते बीजेपी ने 'MADHAV' फॉर्मूले पर फिर से काम शुरू कर दिया है. इसके तहत पार्टी ओबीसी वर्ग केे माली, धनगर और वंजारी (बंजारा) समुदाय को साधने में जुटी है.

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महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस और पीएम नरेंद्र मोदी (File Photo)
महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस और पीएम नरेंद्र मोदी (File Photo)

महाराष्ट्र में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर सभी राजनीतिक पार्टियां तैयारियों में जुट गई हैं. इस कड़ी में महाराष्ट्र बीजेपी फिर से MADHAV फॉर्मूले पर काम कर रही है. कारण, पार्टी मुख्य रूप से ओबीसी वर्ग के माली, धनगर और वंजारी (बंजारा) समुदाय को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित कर रही है. अहमदनगर का नाम बदलकर अहिल्यानगर करने का कदम उसी रणनीति का हिस्सा है.

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दरअसल, महारानी अहिल्यादेवी होल्कर साहस, परोपकार और धार्मिक कार्यों की प्रतीक हैं. धनगर समाज इन्हें भगवान की तरह की पूजता है. धनगर समुदाय कोल्हापुर, सांगली, सोलापुर, पुणे, अकोला, परभणी, नांदेड़ और यवतमाल जिले में महत्वपूर्ण भूमिका में हैं. धनगर समुदाय लगभग 100 विधानसभा क्षेत्रों में मौजूद है. वहीं विशेषज्ञों की मानें तो इस समुदाय के लोगों का 40 से अधिक विधानसभा क्षेत्रों में निर्णायक वोट शेयर है.

बता दें कि 2014 में स्वर्गीय गोपीनाथ मुंडे ने धनगर, माली और वंजारा नेताओं के गठबंधन के लिए अथक प्रयास किया था. बीजेपी को चुनाव में इसका अच्छा फायदा भी मिला था. बीजेपी ने 2014 में अपने घोषणापत्र में धनगर समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने का वादा किया था. लेकिन तकनीकी कारणों से पूर्व सीएम फडणवीस ने वादा पूरा नहीं किया. हालांकि इसके बदले पार्टी ने राष्ट्रीय समाज पार्टी के प्रमुख महादेव जानकर को कैबिनेट मंत्रालय दिया, जो एक मजबूत धनगर नेता और मुंडे परिवार के करीबी सहयोगी हैं.

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2014 के बाद से मराठा नेताओं को मिला महत्व

2014 के तुरंत बाद राज्य में पार्टी का विस्तार करने के लिए बीजेपी नेतृत्व ने दर्जनों मराठा नेताओं को पार्टी में शामिल किया. ओबीसी नेताओं का मानना है कि चुनाव के बाद मराठा नेताओं को भी पार्टी में अधिक महत्व मिला. इससे पहले तक कांग्रेस और एनसीपी में मराठा नेतृत्व का लंबे समय तक दबदबा रहा. बीजेपी में ओबीसी नेतृत्व भी उपेक्षित महसूस करता रहा था. 80 के दशक में वंसतराव भागवत के बाद से कोई नेता मुख्यधारा की राजनीति में नजर नहीं आया है.

वसंतराव भागवत ने अपनाया था MADHAV फॉर्मूला

वैसे तो बीजेपी को उच्च वर्ग के नेतृत्व के लिए जाना जाता है, लेकिन पार्टी की छवि को बदलने और वोट की राजनीति को व्यवहार्य बनाने के लिए वसंतराव भागवत ने स्वर्गीय गोपीनाथ मुंडे, प्रमोद महाजन, पांडुरंग फंडकर, महादेव शिवंकर और अन्यों की मदद से MADHAV (माली, धनगर, वंजारी) फॉर्मूले का सफलतापूर्वक प्रयोग किया. 

ओबीसी नेताओं को लुभाने में जुटी बीजेपी

अब कर्नाटक में हार के बाद बीजेपी नेतृत्व सोशल इंजीनियरिंग को लेकर सतर्क है और महाराष्ट्र में ओबीसी को लुभाने के लिए MADHAV के पुराने फार्मूले पर वापस जा रहा है. मराठवाड़ा में मुंडे बहनों के अलावा बीजेपी ने भागवत कराड को केंद्र में मंत्री पद पर पदोन्नत करने का फैसला किया है. महाराष्ट्र में ओबीसी नेता अतुल सावे बहुजन कल्याण और सहकारिता मंत्रालय देख रहे हैं. यहां तक कि महाराष्ट्र बीजेपी की कमान भी ओबीसी नेता और पूर्व मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले के पास है. वह पार्टी अध्यक्ष बनाए गए हैं.

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