महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष का नेता रहे राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के विधायक अजित पवार ने कुछ दिन पहले विधानसभा में इस पद से मुक्त होने की आकांक्षा व्यक्त की थी. तब किसी को अंदाजा भी नहीं था कि अजित पवार के मन में क्या चल रहा है. रविवार को अजित पवार ने अपने समर्थक विधायकों की बैठक बुलाई और इसके बाद राजभवन पहुंच डिप्टी सीएम पद की शपथ ले ली.
इसके साथ ही महाराष्ट्र सरकार की, विधानसभा की तस्वीर बदल गई है. सुबह में जो अजित पवार विधानसभा में विपक्ष के नेता थे, वे अब महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम हैं. सुबह से शाम के बीच के इस पूरे घटनाक्रम की जड़ें गहरी हैं. अजित पवार के एनसीपी छोड़ बीजेपी में शामिल होने की भी चर्चा थी लेकिन उन्होंने ये साफ किया था कि वे अंतिम दम तक एनसीपी में ही रहेंगे. ऐसे में सवाल ये है कि ऐसा क्या हुआ कि अजित ने अपने ही चाचा शरद पवार के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक दिया?
सियासत में आइसोलेट होते जा रहे थे अजित
महाराष्ट्र का सियासी घटनाक्रम भले ही तेजी से बदला, लेकिन अजित पवार का ये कदम कोई आनन-फानन में लिया गया फैसला नहीं है. शरद पवार की राजनीतिक विरासत के वारिस के रूप में देखे जाते रहे अजित पवार पिछले कुछ समय से पार्टी में ही एक तरह से अलग-थलग पड़ते जा रहे थे. सुप्रिया शुले की सक्रियता बढ़ रही थी और अजित एक तरह से आइसोलेट होते जा रहे थे. विधानसभा में विपक्ष के नेता का पद तो था लेकिन संगठन पर पकड़ लगभग खत्म हो गई थी.
अजित पवार के ताजा कदम, एनसीपी में टूट के पीछे पार्टी से नाराजगी के साथ ही कई अन्य फैक्टर भी हैं. एनसीपी के पिछले कुछ दिनों के घटनाक्रम पर नजर डालें तो तस्वीर साफ हो जाती है. शरद पवार ने एनसीपी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था जिसके बाद पार्टी की कमान अजित पवार के हाथ जाएगी या अजित के, इस बात को लेकर चर्चा तेज हो गई थी. एनसीपी के कई नेता, कार्यकर्ता शरद पवार के फैसले के विरोध में उतर आए तब अजित ने कहा था कि इससे कुछ नहीं होगा. अजित ने ये भी कहा था कि शरद पवार अपना फैसला नहीं बदलेंगे.
सुप्रिया को कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने से असंतोष
हालांकि, मान-मनौव्वल के लंबे दौर के बाद पवार ने इस्तीफे का फैसला वापस ले लिया. एनसीपी पर कब्जे की रेस ठंडी भी नहीं हो पाई थी कि महाराष्ट्र की राजनीति के मजबूत छत्रप शरद पवार ने दो कार्यकारी अध्यक्ष बनाने का ऐलान कर दिया. एनसीपी के स्थापना दिवस पर शरद पवार ने अपनी बेटी सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल को कार्यकारी अध्यक्ष बनाने का ऐलान किया जिसके बाद चिंगारी और भड़क गई. हालांकि, अजित पवार ने सुप्रिया को कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने को लेकर नाराजगी से इनकार किया था.
अजित पवार शरद पवार के बाद एनसीपी के अगले अध्यक्ष माने जा रहे थे लेकिन पवार ने सुप्रिया को कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया. पवार के इस फैसले को अपनी राजनीतिक विरासत बेटी को हैंडओवर करने की दिशा में मास्टरस्ट्रोक की तरह देखा गया. एनसीपी का कार्यकारी अध्यक्ष कौन कहे, अजित को प्रदेश संगठन में भी कोई पद नहीं मिला. शरद पवार जिस तरह से बेटी सुप्रिया को राजनीतिक रूप से आगे बढ़ा रहे थे और भविष्य की राजनीति को लेकर अजित को कोई आश्वासन उनकी ओर से नहीं मिल रहा था. इन सबकी वजह से भी अजित असंतुष्ट चल रहे थे.
बीजेपी में शामिल होने की भी थी चर्चा
अजित पवार के बीजेपी में शामिल होने की अटकलें भी जोरों पर रही थीं. अजित पवार के लगातार बीजेपी के संपर्क में होने की बातें हो रही थीं. अजित की गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की बात भी सामने आई थी जिसके बाद शिवसेना यूबीटी के संजय राउत ने दावा किया था कि वे बीजेपी में शामिल होने जा रहे हैं. हालांकि, अजित ने इस तरह की खबरों का खंडन करते हुए कहा था कि एनसीपी में ही रहेंगे.
ईडी और आयकर विभाग की कार्रवाई का दबाव
अजित पवार और उनकी पत्नी सुनेत्रा प्रवर्तन निदेशालय की जांच के दायरे में भी थे. ईडी एमएससी बैंक घोटाले की जांच कर रही थी जिसमें अजित और उनकी पत्नी भी आरोपी थे. हालांकि, ईडी ने इस मामले में दो महीने पहले ही चार्जशीट दायर की थी जिसमें अजित और उनकी पत्नी का नाम नहीं था. इसके बाद अजित और बीजेपी की करीबी के चर्चे आम हो गए थे.
हाल ही में बीजेपी के चुनावी अभियान का शंखनाद करते हुए भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भ्रष्टाचार को लेकर एनसीपी पर निशाना साधा था. पीएम मोदी ने जिस महाराष्ट्र स्टेट सहकारी घोटाले और सिंचाई घोटाले का जिक्र किया था, अजित पवार इन्हीं मामलों में आरोपी हैं. छगन भुजबल को एक मामले में ईडी ने गिरफ्तार किया था जिसमें वे करीब ढाई साल तक जेल में बंद रहे थे. प्रफुल्ल पटेल का घर जिस बिल्डिंग में है, उसे ईडी ने अटैच कर दिया था.
2019 में भी फडणवीस के साथ ले ली थी शपथ
अजित पवार ने 2019 में भी देवेंद्र फडणवीस के साथ मिलकर सरकार बना ली थी. तब शिवसेना और बीजेपी के बीच मुख्यमंत्री की कु्र्सी को लेकर रस्साकशी चल रही थी. उद्धव सीएम पद पर अड़े थे वहीं, बीजेपी इसके लिए तैयार नहीं थी. उद्धव ठाकरे की पार्टी और एनसीपी-कांग्रेस में गठबंधन को लेकर बात शुरू हुई. बातचीत चल ही रही थी कि रातोरात देवेंद्र फडणवीस के सरकार बना लेने की खबर आई. अजित पवार ने तब भी डिप्टी सीएम पद की शपथ ली थी.