महायुति सरकार का पहला वार्षिक बजट वित्त मंत्री अजित पवार ने महाराष्ट्र विधानसभा में पेश किया. इस बजट में उनके काम करने के तरीके साफतौर से झलक रहे हैं. पवार की सख्त फाइनेंशियल डिसिप्लिन की पहचान ने महाराष्ट्र की वित्तीय नक्शे को आकार दिया है, जिससे पूर्व मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शुरू की गई लोकलुभावन योजनाओं पर बहस छिड़ गई है.
महाराष्ट्र विधानसभा में 2025-26 के लिए 720,000 करोड़ रुपये का बजट वित्त मंत्री अजित पवार ने पेश किया है. इसमें सरकार को अनुमानित रूप से 560,000 करोड़ रुपये रेवेन्यू की उम्मीद है, जबकि सरकार का खर्च 606,000 करोड़ रुपये तक पहुंचने की उम्मीद जताई गई है.
बजट में स्पष्ट किया गया है कि सरकार को 45,891 करोड़ रुपये रेवेन्यू का नुकसान हो सकता है और राज्या का फिस्कल डेफिसिट 136,000 करोड़ रुपये रह सकता है. राज्य वित्त विभाग के मंत्री अजित पवार ने बजट में बताया कि राज्य पर 7.5 लाख करोड़ रुपये लोन का भी दबाव है, और अब यह 9.25 लाख करोड़ रुपये पहुंच गया है. ये आंकड़े दर्शाते हैं कि महाराष्ट्र एक वित्तीय रस्साकशी पर है, जहां बेफिक्र खर्च की गुंजाइश कम है.
लोकलुभावन योजनाओं का भार
पिछले कुछ वर्षों में, राज्य ने 8 से 10 लोकप्रिय योजनाओं की घोषणा की, जिनकी लागत सालाना 60,000 करोड़ से 1,00,000 करोड़ रुपये के बीच है. वित्त और योजना विभाग के अधिकारियों के मुताबिक, इन स्कीम्स ने राज्य के खजाने पर अस्थिर बोझ डाल दिया है. इसके मद्देनजर, अजित पवार के पास इन योजनाओं पर कटौती करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था ताकि महाराष्ट्र के वित्तीय प्रबंधन को स्टेबल किया जा सके.
हालांकि, जो बात स्पष्ट है, वह यह है कि पूर्व मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे द्वारा शुरू की गई तीन प्रमुख योजनाओं का बजट में कोई जिक्र या अतिरिक्त प्रावधान नहीं है.
1. मुख्यमंत्री लड़की बहिन योजना: आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की महिलाओं को वित्तीय सहायता देने के लिए 46,000 करोड़ का प्रारंभिक आवंटन था. अपात्र लाभार्थियों को हटाने के बाद, यह प्रावधान 36,000 करोड़ कर दिया गया. इसके बावजूद, यह एक महत्वपूर्ण स्कीम है, जिसने राज्य भर में लगभग 2.75 करोड़ महिलाओं को लाभान्वित किया है.
2. आनंदाचा शिधा योजना: त्योहारों के मौसम में गरीब और जरूरतमंद परिवारों को राशन किट प्रदान करने के लिए 160 करोड़ का मामूली आवंटन था. हालांकि, 2025-26 के बजट में इसका जिक्र नहीं है, जिससे इसके आगे लागू रहने पर भी संदेह है.
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3. तीर्थ दर्शन योजना: 65 वर्ष से अधिक उम्र के वरिष्ठ नागरिकों को तीर्थयात्रा के लिए 30,000 तक का समर्थन देने के लिए इस योजना के लिए 55 करोड़ के आवंटन किए गए थे. अब तक, 20 करोड़ वितरित किए जा चुके हैं, जिससे 6,500 से अधिक तीर्थयात्री अपनी यात्राएं पूरी कर चुके हैं, लेकिन, बाकी की राशि जारी नहीं किए जाने पर इस स्कीम के भी आगे जारी रहने पर सवाल उठ रहे हैं.
लोकलुभावन बनाम व्यवहारिकता
बजट के चयनात्मक कटौती ने इसके अंतर्निहित उद्देश्यों पर अटकलें बढ़ा दी हैं. पूर्व मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, जिन्होंने इन योजनाओं को अपनी प्रशासन के प्रमुख कामों के रूप में पेश किया, उन्होंने ने महिलाओं, गरीबों और बुजुर्गों को ध्यान में रखते हुए इन योजनाओं का समर्थन किया था.
हालांकि, वित्त मंत्री अजित पवार के काम करने के तरीके के पीछे यह समझा जा सकता है कि उनका फोकस फिलहाल फिस्कल डेफिसिट और राज्य पर बढ़ते कर्ज के दबाव पर है. फिर भी, योजनाओं का साइडलाइन किया जाना, जिन्होंने लाखों लोगों-लड़की बहिन के तहत 2.75 करोड़ महिलाओं को लाभ मिला-यह सवाल उठाता है कि क्या फाइनेंशियल डिसिप्लिन और सामाजिक कल्याण के बीच क्या संतुलन होगा.