मुंबई अंधेरी ईस्ट विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव में बीजेपी-शिंदे खेमे ने अपना उम्मीदवार हटा लिया है. बीजेपी-शिंदे खेमे से चुनावी मैदान में उतरे मूरजी पटेल ने नामांकन वापस ले लिया है. ऐसे में उद्धव ठाकरे खेमे से दिवंगत विधायक रमेश लटके की पत्नि ऋतुजा लटके का निर्विरोध चुना जाना लगभत तय है. ऋतुजा के निर्विरोध निर्वाचन के लिए राज ठाकरे और शरद पवार ने बीजेपी से अपने उम्मीदवार का नाम वापस लेने की अपील की थी.
बीजेपी कैंडिडेट ने नाम वापस लिया
बीजेपी-शिंदे गुट ने अंधेरी ईस्ट सीट से महज इसीलिए अपने कैंडिडेट का नाम वापस नहीं लिया कि राज ठाकरे और शरद पवार ने अपील की थी बल्कि इसके पीछे उसकी सोची समझी रणनीति है. माना जा रहा है कि अंधेरी ईस्ट सीट के सियासी समीकरण और रमेश लटके के निधन से उपजी सिंपैथी को देखते हुए ऋतुजा की जीत तय मानी जा रही थी, जिसके चलते बीजेपी-शिंदे ने अपने कदम पीछे खींच लिए हैं ताकि उद्धव ठाकरे इस जीत से अपने पक्ष में माहौल न बना सकें.
बीजेपी के महाराष्ट्र अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले ने कहा है कि उनकी पार्टी अंधेरी ईस्ट विधानसभा सीट पर होने उचपुनाव में अपना उम्मीदवार अब नहीं उतारेगी. इसके बाद बीजेपी-शिंदे गुट से चुनाव लड़ रहे मूरजी पटेल ने अपना नामांकन वापस ले लिया. इस तरह से बीजेपी ने उद्धव को उपचुनाव से सियासी लाभ उठाने का मौका छीन लिया है.
बीजेपी-शिंदे कैंडिडेट के रहते हुए ऋतुजा लटके अंधेरी सीट पर उपचुनाव जीत दर्ज करने में कामयाब रहती तो उद्वव ठाकरे को फायदा मिल सकता है जो अब निर्विरोध होने पर नहीं मिल पाएगा. माना जा रहा है कि बीजेपी ने राज ठाकरे और शरद पवार की अपील के बाद अपने कैंडिडेट से नामांकन वापस कराकर सियासी संदेश दिया है और उद्धव ठाकरे को जीत के श्रेय लेने की मंशा पर भी पानी फेर दिया है.
शिवसेना में बिखराव के बाद पहला चुनाव
बता दें कि महाराष्ट्र की सियासत में उद्धव ठाकरे के हाथों से सत्ता छीनने और शिवसेना के दो गुटों में बंट जाने के बाद पहला उपचुनाव था. बीजेपी-शिंदे गुट का उद्धव ठाकरे खेमे के बीच आमने-सामने की लड़ाई थी और दोनों गुटे के लिए यह चुनाव साख का सवाल बन गया था. हालांकि, बीजेपी खुद सीधे उपचुनाव मैदान में उतरने के बजाय शिंदे खेमे से अपने नेता मूरजी पटेल को उतारा था, लेकिन कांग्रेस-एनसीपी-लेफ्ट ने उद्धव खेमे की कैंडिडेट को समर्थन देकर सारे समीकरण बिगाड़ दिए थे.
मराठी बनाम गुजराती के बीच चुनावी एजेंडा सेट किया जा रहा था. उद्धव खेमे की कैंडिडेट मराठी भाषी है तो शिंदे खेमे से उतरे मूरजी पटेल गुजराती भाषी थी. अंधेरी ईस्ट सीट पर ज्यादातर उत्तर भारतीय और मराठी मतदाता ही निर्णायक स्थिति में है. अंधेरी में केवल नागरदास रोड का जो पट्टा है, सिर्फ उसी में ज्यादातर गुजराती वोटर हैं जबकि बाकी पूरा चुनाव क्षेत्र हिंदी भाषी और मराठी का गढ़ माना जाता है. ऐसे में संभावना जतायी जा रही थी कि अंधेरी सीट पर शिंदे के लिए मुकाबला कहीं भारी न पड़ जाए.
शिंदे-शेलार की राज ठाकरे से मुलाकात
अंधेरी सीट के सियासी समीकरण को देखते हुए मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने शनिवार को सीएम एकनाथ शिंदे से मुलाकात की थी. इसके बाद बीजेपी मुंबई के अध्यक्ष आशीष शेलार ने राज ठाकरे से मिले. इसके बाद ही राज ठाकरे ने रविवार को महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री और बीजेपी नेता देवेंद्र फड़णवीस को पत्र लिख कर कहा था कि बीजेपी को अंधेरी पूर्व विधासभा के उपचुनाव में ऋतुजा लटके के सामने उम्मीदवार नहीं देना चाहिए. वहीं, शरद पवार ने भी कहा कि बीजेपी-शिंद गुट को अपना प्रत्याशी नहीं उतारना चाहिए.
अंधेरी ईस्ट पर हार की आशंका
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अंधेरी ईस्ट सीट के सियासी समीकरण उद्धव खेमे की कैंडिडेट ऋतुजा लटके के पक्ष में था, क्योंकि उनके पति रमेश लटके दो बार विधायक रहे और तीन बार स्थानीय नगरसेवक रहे थे. इलाके के मराठी वोटों के बीच तगड़ी पकड़ थी, जिसका लाभ ऋतुजा लटके को मिलता. उद्धव खेमा अगर अंधेरी ईस्ट सीट पर उपचुनाव में जीत दर्ज करती तो इसे उद्धव ठाकरे के लिए बड़ी जीत माना जाता. इस जीत से उद्धव ठाकरे को दोबारा से सियासी तौर पर खड़े होने का लाभ मिल सकता था.
अंधेरी ईस्ट सीट उपचुनाव के बाद मुंबई नगर निगम चुनाव (बीएमसी) के चुनाव हैं. ऐसे में अंधेरी ईस्ट सीट पर मिलने वाली जीत का प्रभाव बीएमसी चुनाव पर भी पड़ सकता है. उद्धव ठाकरे गुट इसे शिंदे की हार के तौर पर पेश करता. इससे बचने के लिए और राज ठाकरे की बात को अहमियत देते हुए निर्विरोध बनाने की कोशिश की है. शिंदे-बीजेपी खेमे ने उद्धव गुट के मंसूबों पर पानी फेरने की रणनीति मानी जा रही है.
बीजेपी के लिए चिंता की बात यह भी थी कि उद्धव गुट को इस बार कांग्रेस और एनसीपी दोनों का समर्थन है. कांग्रेस का इस सीट पर अच्छा आधार है, क्योंकि 2014 में कांग्रेस को 37 हजार और 2019 में 27 हजार से ज्यादा वोट मिले थे. कांग्रेस के इस वोट का लाभ इस बार उद्धव के प्रत्याशी को मिल सकता है. वहीं, शिंदे गुट से उतरे गुजराती भाषी मूरजी पटेल को उत्तर भारतीयों का समर्थन मिलने की चुनौती थी. उत्तर भारतीय नेताओं को भी लग रहा था कि अगर मूरजी पटेल यहां से चुनाव जीत गए, तो उत्तर भारतीयों की दावेदारी हमेशा के लिए इस सीट से उनके हाथ से निकल जाएगी. बीजेपी-शिंद को जीत की कोई संभावना बनती नहीं दिख रही थी.
उद्धव ठाकरे को सियासी लाभ के आसार
शिवसेना में विभाजन के बाद महाराष्ट्र में यह पहला चुनाव है, इसलिए पूरे राज्य का ध्यान इस सीट पर है. उद्धव ठाकरे खेमा उपचुनाव जीतने के लिए पूरी रणनीति बना रखी थी. कांग्रेस-एनसीपी का समर्थन जुटा रखा था तो मराठी समुदाय से प्रत्याशी देकर भी अपने मंसूबे जाहिर कर दिए थे, क्योंकि उसे पता है कि उपचुनाव का असर आगामी बीएमसी चुनाव पर स्वाभाविक रूप से पड़ेगा.
मुंबई अंधेरी ईस्ट विधानसभा उपचुनाव को बीएमसी चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा. ऐसे में इस उपचुनाव के नतीजे का संदेश बीएमसी तक जाएगी. इसलिए उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे दोनों खेमे के लिए यह लड़ाई काफी अहम मानी जा रही थी. बीजेपी-शिंदे गुट अगर यह लड़ाई हारता तो उसके लिए आगामी बीएमसी चुनाव की राह काफी मुश्किल हो भरी सकती थी. वहीं, उद्धव ठाकरे शिवसेना में बगावत के बाद काफी कमजोर नजर आ रहे है. ऐसे में इस सीट पर जीत उसके लिए सियासी संजीवनी साबित होती. इस नतीजे से लबरेज होकर उद्धव खेमा बीएमसी चुनाव में आक्रमक तरीके से उतरता तो बीजेपी के लिए चुनौती खड़ी हो सका.
वहीं, ऋतुजा भले कभी राजनीति में नहीं रही हों, लेकिन उनके पति बीजेपी-शिवसेना गठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर इस सीट से 2014 और 2019 में, दो बार विधायक चुने गए थे. रमेश लटके विधायक बनने से पहले शिवसेना के पार्षद थे. 1997 और 2012 के बीच उन्हें तीन बार शिवसेना पार्षद चुना गया था. रमेश लटके पिछले 25 सालों से राजनीति में सक्रिय थे. ऋतुजा लटके के प्रति अंधेरी ईस्ट सीट पर स्वभाविक रूप से सहानुभूति है. इसलिए विपक्षी दल यानी बीजेपी के लिए चुनाव जीतना मुश्किल दिख रहा था. इसी मद्देनजर बीजेपी-शिंदे ने अपने कदम पीछे खींच लिए हैं?