आदर्श घोटाला मामले के आरोपियों की सूची में से महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण का नाम हटाने की सीबीआई की याचिका एक विशेष अदालत ने खारिज कर दी है.
सीबीआई अदालत के न्यायाधीश एस जी दीघे ने याचिका खारिज करते हुए कहा, ‘सीबीआई की याचिका खारिज की जाती है.’ न्यायाधीश ने कहा कि राज्यपाल के. शंकरनारायणन द्वारा चाव्हाण के खिलाफ अभियोग के अनुमोदन की सीबीआई की याचिका को खारिज किए जाने के बावजूद, उनपर (चव्हाण पर) भ्रष्टाचार निरोधी कानून के तहत मामला चलाया जा सकता है क्योंकि उनपर आपराधिक कदाचार के आरोप हैं.
न्यायाधीश इस संबंध में विस्तृत आदेश जारी करेंगे. अपने तर्क रखते हुए विशेष सरकारी वकील भरत बदामी ने कहा कि सीबीआई को पूर्व मुख्यमंत्री के खिलाफ अभियोग लगाने में ‘बहुत खुशी’ होगी लेकिन ‘हमारी हाथ बंधे हुए हैं.’ उन्होंने कहा कि कानून में अनुमति देने से राज्यपाल के इनकार किए जान के खिलाफ अपील करने का प्रावधान नहीं है लेकिन अगर एजेंसी को चाव्हाण के खिलाफ कोई अतिरिक्त सबूत मिल जाता है तो वह जरूर राज्यपाल से उनके फैसले की समीक्षा का अनुरोध करेगी.
राज्यपाल के फैसले को ‘गैर-अपीली’ बताते हुए सीबीआई ने 15 जनवरी को एक आवेदन दायर करके आदर्श मामले में आरोप पत्र में शामिल 13 आरोपियों की सूची से चव्हाण का नाम हटाने की अनुमति मांगी थी. इस आवेदन पर फैसले को अदालत ने 18 जनवरी तक के लिए सुरक्षित रख लिया था.
सीबीआई की याचिका यदि अदालत द्वारा स्वीकार कर ली जाती तो इससे कांग्रेस और चव्हाण दोनों को ही बड़ी राहत मिलती. चव्हाण एकमात्र ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जिन्हें इस मामले में आरोपी बनाया गया है. बहरहाल, उनके दो पूर्ववर्ती यानी विलासराव देशमुख और सुशील कुमार शिंदे भी इस जांच के दायरे में थे. देशमुख की मृत्यु हो चुकी है. राज्य सरकार के न्यायिक जांच आयोग ने इन तीनों को ही आदर्श हाउसिंग सोसाइटी को विभिन्न मंजूरियां देने से जुड़े प्रावधानों का ‘घोर उल्लंघन’ करने का अभियोग लगाया था.
न्यायिक पैनल की रिपोर्ट में कहा गया था, ‘चव्हाण के कामों और उसके करीबी रिश्तेदारों को मिले लाभों के बीच निश्चित तौर पर कोई सांठगांठ थी. सदस्यता की प्रक्रिया स्पष्ट तौर पर दर्शाती है कि चव्हाण ने जरूरी अनुमति को जो सहमति दी थी, वह किसी चीज के बदले में दी गई थी.’
घोटाले के सामने आने पर मुख्यमंत्री पद छोड़ने के लिए मजबूर होने वाले चव्हाण ने आरोप पत्र में अपना नाम शामिल किए जाने को इस आधार पर चुनौती दी थी कि अभियोग के लिए राज्यपाल से कोई मंजूरी नहीं ली गई है. सीबीआई ने कहा कि चूंकि आरोप पत्र में शामिल किए जाते समय वे एक पूर्व मुख्यमंत्री थे, इसलिए राज्यपाल से अनुमति जरूरी नहीं थी. राज्यपाल के. शंकरनारायणन द्वारा इनकार कर दिए जाने पर अदालत ने एजेंसी को आदेश दिए थे कि वह चव्हाण के अभियोजन के लिए अनुमति ले. इसके बाद सीबीआई के पास चव्हाण के खिलाफ मामला बंद करने के अलावा ज्यादा कोई विकल्प नहीं था.
सीबीआई ने अपने आरोपपत्र में आरोप लगाया था कि चव्हाण ने विवादग्रस्त आदर्श सोसाइटी में अपने संबंधियों के लिए फ्लैट हासिल करने के बदले फ्लोर स्पेस इंडेक्स बढ़ाया था. राजस्व मंत्री के रूप में चव्हाण ने हाउसिंग सोसाइटी से 40 प्रतिशत नागरिकों को भी शामिल करने के लिए कहा था. जबकि यह सोसाइटी मूलत: युद्ध के सिपाहियों के लिए थी. सीबीआई ने दावा किया था कि इस घोटाले में चव्हाण ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
इस सोसाइटी में चव्हाण की सास भगवती शर्मा, साली सीमा शर्मा और ससुर के भाई मदनलाल शर्मा के फ्लैट हैं. न्यायिक पैनल ने इन सभी को सोसाइटी में फ्लट हासिल करने से अयोग्य ठहराया था. जुलाई 2012 में दायर किए गए अपने आरोपपत्र में सीबीआई ने चव्हाण और 12 अन्य को भारतीय दंड संहिता और भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत आपराधिक षडयंत्र, धोखाधड़ी और आपराधिक कदाचार का आरोपी बताया था. अदालत द्वारा इस आरोप पत्र का संज्ञान लिया जाना अभी बाकी है.