एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे गुट के नेतृत्व वाली शिवसेना के विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिका पर महराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने सुनवाई कार्यक्रम निर्धारित कर दिया है. 13 से 20 अक्टूबर के बीच विधानमंडल की ओर से शिवसेना के दोनों गुटों द्वारा एक-दूसरे को दिए गए दस्तावेजों की जांच की जाएगी. सभी याचिकाओं को समेकित (क्लब) किया जाए या नहीं, इस पर फैसला 20 अक्टूबर को सुनाया जाएगा. इसके अलावा अगर कोई गुट कुछ अतिरिक्त दस्तावेज जमा करना चाहता है तो 20 अक्टूबर को मौका दिया जाएगा. दोनों समूह 27 अक्टूबर को अपना लिखित बयान पेश करेंगे. 6 नवंबर तक दोनों गुट अपना-अपना पक्ष रखेंगे और दावे-प्रतिदावे करेंगे.
दोनों गुटों की ओर से उठाए गए मुद्दों पर 10 नवंबर को सुनवाई होगी. दोनों गुटों के गवाहों की सूची 20 नवंबर को पेश की जाएगी. 23 नवंबर को गवाहों से जिरह होगी. सभी साक्ष्यों की जांच के बाद अगले 2 सप्ताह में अंतिम सुनवाई होगी. जिरह 23 नवंबर से शुरू होगी. पार्टियों और उनके वकीलों के लिए सुविधाजनक तारीखों के अनुसार आगे की तारीखें दी जाएंगी. जहां तक संभव हो सप्ताह में कम से कम दो बार जिरह की जाएगी. साक्ष्यों की रिकॉर्डिंग के समापन के 2 सप्ताह बाद याचिका को अंतिम सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाएगा.
पार्टियों को यह ध्यान रखना होगा कि निर्धारित कार्यक्रम का यथासंभव पालन किया जाएगा और केवल अपरिहार्य परिस्थितियों में ही स्थगित/बदला जाएगा. कोई भी बदलाव, यदि कोई हो, पार्टियों को पहले से सूचित किया जाएगा.
समाचार एजेंसी के मुताबिक शिवसेना (UBT) नेता अंबादास दानवे ने कहा कि शिवसेना विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिकाओं पर फैसले को लेकर विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर पर केंद्र या भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की ओर से दबाव हो सकता है.
बता दें कि एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद पिछले साल जून में शिवसेना विभाजित हो गई थी. ठाकरे गुट ने शिंदे और उनका समर्थन करने वाले विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिका दायर की थी. शिंदे और ठाकरे के नेतृत्व वाले शिवसेना गुटों की दलीलें सुनने के बाद नार्वेकर ने शिंदे समूह के विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिकाओं पर 13 अक्टूबर को आधिकारिक सुनवाई करने का फैसला किया.
विधान परिषद में विपक्ष के नेता दानवे ने कहा कि अध्यक्ष समय बर्बाद कर रहे हैं. हमें लगता है कि उन पर केंद्र या भाजपा का दबाव हो सकता है. वह हर चीज में समय ले रहे हैं, मैं कहना चाहता हूं कि न्याय में देरी भी न्याय न मिलने के बराबर है.