बाला साहेब ठाकरे की वसीयत सामने आ गई है, जिसमें उन्होंने अपनी ज्यादातर संपत्ति उद्धव ठाकरे के नाम कर दी है और अपने दूसरे बेटे जयदेव ठाकरे को कुछ भी नहीं दिया. जयदेव ठाकरे ने इस वसीयत की प्रामाणिकता पर ही सवाल खड़े किए हैं. जयदेव का कहना है कि वसीयत जिस वक्त की लिखी बताई जा रही है उस वक्त उनके पिता दस्तखत करने की हालत में नहीं थे.
इस महीने के आखिरी सप्ताह में बॉम्बे हाईकोर्ट इस मामले पर सुनवाई करेगा. बाला साहेब की संपत्ति को लेकर ठाकरे परिवार में चल रही कलह खुल कर सामने आ गई है. उनके बेटे संपत्ति के लिए लड़ रहे हैं और बॉम्बे हाईकोर्ट पहुंच गए हैं. दरअसल उद्धव ठाकरे के मुताबिक बाला साहेब ने अपनी मौत से करीब साल भर पहले दिसंबर 2011 में एक वसीयत बनाई थी.
क्या है बाला साहेब की वसीयत में
मातोश्री का ग्राउंड फ्लोर पार्टी के काम के लिए रखा है. बंगले की पहली मंजिला, स्मिता ठाकरे और जयदेव ठाकरे के बेटे ऐश्वर्य को दी गई है
हालांकी स्मिता ठाकरे और जयदेव ठाकरे को वहां रहने की इजाजत नहीं दी गई है. पर इस फ्लोर के मेनटेन्स का खर्चा स्मिता को उठाना पड़ेगा
बंगले का सबसे ऊपरी हिस्सा बाल ठाकरे ने अपने बेटे उद्धव ठाकरे के नाम किया है. इसके अलावा कर्जत और भंडारधारा की दो प्रॉपर्टी भी उद्धव के नाम की गई हैं.
बाला साहेब के नाम करोड़ों की प्रॉपर्टी
उद्धव की माने तो बाला साहेब की सारी प्रॉपर्टी और बैंक बैलैंस मिलाकर तकरीबन 15 करोड़ रुपये की जायदाद है. वसीयत में बाला साहबे के दिवंगत बेटे बिंदुमाधव के परिवार और दूसरे बेटे जयदेव ठाकरे को कुछ नहीं दिया गया है.
इस वसीयत को प्रमाणित करने के लिए उद्धव और उनसे जुड़े चार और लोगों ने बॉम्बे हाईकोर्ट का रुख बाला साहेब के गुजरने के एक महीने बाद किया था. लेकिन उद्धव के बड़े भाई जयदेव ठाकरे इस वसीयत का विरोध कर रहे हैं. जयदेव का कहना है कि वो भले ही अपने पिता से अलग रह रहे थे, लेकिन वो उनके संपर्क में थे और दोनों के बीच अक्सर बातचीत होती थी. इसलिए बाला साहेब उन्हें अपनी जायदाद से बेदखल नहीं कर सकते.
जयदेव के अनुसार, 'उद्धव जिस वसीयत की बात कर रहे हैं, वो उस वक्त बनाई गई थी जब बाला साहेब गंभीर बीमारियों से जूझ रहे थे, ऐसे में वो वसीयत पर दस्तख्त नहीं कर सकते थे.'
संपत्ति कम करके बता रहे हैं उद्धव...
जयदेव का दावा है कि उद्धव संपत्ति को कम करके बता रहे हैं. परिवार के पास करोड़ों की संपत्ति, गहने और बैंक डिपोजिट थे, जिसका वसीयत में जिक्र नहीं किया गया है. मातोश्री की कीमत ही चालीस करोड़ से कम की नहीं होगी. साथ ही पार्टी का मुखपत्र सामना का दफ्तर, पार्टी का दफ्तर, शिवसेना भवन भी संपत्ति में गिना जाना चाहिए.
बाला साहेब के बड़े बेटे बिंधुमाधव की मौत एक रोड एक्सीडेंट में बरसों पहले हो गई थी. वसीयत के मुताबिक, 'बाला साहेब बिंदुमाधव के बेटे निहार को मातोश्री का एक फ्लोर देना चाहते थे, लेकिन उनको बिंदुमाधव की पत्नी माधवी का बरताव ठीक नहीं लग रहा था और उनका मानना था की उन दोनों के वहां रहने से परिवार कि शांति भंग हो सकती है.'
वसीयत के मुताबिक उद्धव ने जिस तरह से बाला साहेब की देखरेख और सेवा की उससे वो काफी खुश थे. उन्हें यकीन था कि उद्धव पूरे परिवार को एक साथ बांधे रखेंगे, इसीलिए उन्होंने सारी जायदाद उद्धव के नाम कर दी.
कौन हैं जयदेव ठाकरे...
पिछले साल नवंबर में बाला साहेब ठाकरे के अंतिम संस्कार के समय जयदेव ठाकरे अपने भाई उद्धव के साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़े थे. लेकिन पिता-पुत्र के रिश्ते हमेशा उतार चढ़ाव वाले रहे. जयदेव शुरू से ही विद्रोही किस्म के थे. कई मुद्दों पर उनकी पिता से पटरी नहीं खाती थी. शुरुआत में जयदेव पिता की ही तरह एक कलाकार के रूप में उभर रहे थे. जयदेव ने तीन शादियां की थी. पहली शादी जयश्री कालेकर से और दूसरी शादी स्मिता ठाकरे से, लेकिन ये दोनों ही शादिया नहीं चली. स्मिता से अपनी शादी टूटने पर जयदेव का कहना था स्मिता बहुत ज्यादा महत्वाकांक्षी महिला थी और इसकी वजह से उन दोनों के बीच काफी झगड़े होते थे. इसी दौरान जयदेव ने मातोश्री छोड़ दिया लेकिन उनको सबसे ज्यादा जो बात खटकी वो ये थी की स्मिता, मातोश्री को छोड़ कर उनके साथ रहने नहीं आई. इसके बाद जयदेव ने तीसरी शादी अनुराधा के साथ की और मातोश्री के पास ही एक घर ले कर रहने लगे. अपनी वसीहत में बाल ठाकरे ने लिखा कि 'जयदेव बहुत बढ़िया लड़का है. लेकिन जिस तरह से उसने मातोश्री छोड़ा, अपनी पत्नी को छोड़ कर दूसरा घर बसाया, इस सबसे मुझे बहुत दुख हुआ. इसीलिए मैंने उसे अपनी संपत्ति का कुछ भी हिस्सा न देने का फैसला किया है.'
जयदेव का बागीपन...
जयदेव का बागीपन उन्हें अलग-अलग पार्टियों के दरवाजे तक भी ले गया. कुछ ही महीने पहले जब शिवसेना शिवाजी पार्क में बाला साहेब की मूर्ति लगाने की मांग कर रही थी, तब जयदेव ने इसका विरोध भी किया था और कहा था की शिवाजी पार्क में सिर्फ शिवाजी का पुतला होना चाहिए. बाला साहेब की वसीयत में जयदेव और स्मिता ठाकरे के दो बेटों राहुल और ऐश्वर्य में से सिर्फ एश्वर्य को मातोश्री में एक फ्लोर दिया गया है. इस वसीयत की सच्चाई पर एतराज जताते हुए जयदेव ठाकरे ने कहा है कि 'बाला साहेब ठाकरे ने सारी जिंदगी मराठी लोगों और मराठी भाषा के उत्थान के लिए काम किया. तो उनकी वसीयत कैसे अंग्रेजी भाषा में लिखी हो सकती है.' जयदेव का कहना है कि तीनों बेटों के बीच संपत्ति का बंटवारा बराबर होना चाहिए. परिवार की कलह उजागर होने के बाद राजनैतिक दल संपत्ति को लेकर सवाल उठाने लगे हैं.