scorecardresearch
 

महाराष्ट्र में अब MVA की लड़ाई नेता प्रतिपक्ष और डिप्टी स्पीकर पर आई, किसी भी दल को नहीं मिलीं 10% सीटें

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे आ गए हैं. लेकिन विपक्ष को जबरदस्त झटका लगा है. विपक्षी पार्टियां चुनावी नतीजे में 10 प्रतिशत सीटें भी हासिल नहीं कर पाई हैं. ऐसे में विधानसभा में नेता विपक्ष के पद पर नियुक्ति को लेकर पेंच फंस गया है. यहां तक कि डिप्टी स्पीकर पद भी विपक्ष की पहुंच से दूर है.

Advertisement
X
MVA में नेता विपक्ष पद को लेकर कवायद चल रही है.
MVA में नेता विपक्ष पद को लेकर कवायद चल रही है.

महाराष्ट्र में महायुति की नई सरकार बन गई है. बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली सरकार में मंत्रिमंडल गठन की कवायद चल रही है. इस बीच, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और डिप्टी स्पीकर को लेकर पेच फंस गया है. विपक्षी महा विकास अघाड़ी दोनों ही पदों को गंवाते दिख रही है. हालांकि, MVA नेताओं ने मुख्यमंत्री फडणवीस से मुलाकात की है और पुरानी परंपरा का हवाला देकर डिप्टी स्पीकर पद दिए जाने की मांग उठाई है.

Advertisement

फिलहाल, ये तय है कि महाराष्ट्र में इस बार विपक्ष को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष (कैबिनेट रैंक का दर्जा) का पद नहीं मिल सकेगा. बल्कि सबसे बड़े दल के नेता के तौर पर भूमिका निभाते देखा जाएगा. दरअसल, विधानसभा में विपक्ष के नेता का पद पाने के लिए 29 सीटों का होना जरूरी है. लेकिन MVA में किसी भी पार्टी के पास इतनी सीटें नहीं हैं. सबसे ज्यादा 20 सीटें शिवसेना (उद्धव गुट), 16 सीटें कांग्रेस और 10 सीटें एनसीपी (शरद पवार गुट) जीती हैं.

बीजेपी ने जीती हैं 132 सीटें...

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में 288 सीटों पर चुनाव हुए हैं. MVA ने कुल 233 सीटें जीती हैं. बीजेपी ने 132, शिवसेना 57 और एनसीपी ने 41, JSS ने 2 और RSJP ने एक सीट पर जीत हासिल की है. फडणवीस सीएम बने हैं और एकनाथ शिंदे, अजित पवार डिप्टी सीएम बने हैं.

Advertisement

स्पीकर को लेना है आखिरी फैसला

इस बीच, विपक्षी नेताओं के प्रतिनिधिमंडल ने CM फडणवीस से मुलाकात की और विधानसभा में डिप्टी स्पीकर का पद दिए जाने की मांग की. सूत्रों का कहना है कि नेता विपक्ष और डिप्टी स्पीकर पद पर निर्णय लेने का अधिकार विधानसभा अध्यक्ष के पास है. आखिरी फैसला स्पीकर को लेना है. सूत्रों ने यह भी बताया कि कांग्रेस ने विपक्ष के नेता पद पर अपना दावा नहीं छोड़ा है.

नेता विपक्ष के पद की दौड़ में कौन?

महा विकास अघाड़ी गठबंधन में कांग्रेस और शिवसेना (उद्धव गुट) की नजर विपक्ष के नेता के पद पर है. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले ने कहा, हमें अभी अपने सहयोगी दलों के साथ चर्चा करना है और विपक्षी नेता के चेहरे पर फैसला करना बाकी है. ऐसे कई उदाहरण हैं, जब कांग्रेस ने 220 सीटें जीतीं और फिर भी विपक्ष को नेता प्रतिपक्ष का पद दिया. नाना पटोले ने कहा, अब यह सरकार पर निर्भर करेगा है कि वो हमारी मांग को स्वीकार करे या अस्वीकार करे. 

नेता विपक्ष की नियुक्ति पर क्या बोले शरद पवार?

कांग्रेस से नाना पटोले और विजय वडेट्टीवार विपक्षी नेता पद की दौड़ में सबसे आगे हैं. इससे पहले शरद पवार ने कहा था कि एमवीए की पार्टियां अपर्याप्त संख्या के कारण विपक्ष के नेता पद का दावा नहीं कर सकतीं हैं. उन्होंने कहा, एमवीए के दल इस बात पर जोर नहीं दे सकते कि उन्हें यह पद मिले, क्योंकि उनके पास आवश्यक संख्या नहीं है.

Advertisement

वहीं, शिवसेना (UBT) की ओर से भास्कर जाधव को सदन का नेता और सुनील प्रभु को मुख्य सचेतक चुना गया है. 

29 का आंकड़ा पार नहीं कर पाई MVA की कोई पार्टी

महाराष्ट्र में 288 सीटें हैं. यहां 10 प्रतिशत यानी 29 सीटें जीतने पर कोई भी पार्टी विपक्ष के नेता के पद पर दावा कर सकती है. हालांकि, विधायी नियमों के अनुसार एमवीए की सभी पार्टियां अपने दम पर 29 के आंकड़े तक नहीं पहुंच पाई हैं.

क्या है नियम?

नेता प्रतिपक्ष बनने के लिए किसी दल को 10% सीट हासिल करना जरूरी है. अगर कोई भी विपक्षी दल यह न्यूनतम संख्या हासिल नहीं करता है तो औपचारिक रूप से नेता प्रतिपक्ष का पद खाली रहता है. 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद कांग्रेस के पास 55 से कम सीटें थीं, इसलिए उसे नेता प्रतिपक्ष का पद नहीं दिया गया था. नेता प्रतिपक्ष का दर्जा एक महत्वपूर्ण संवैधानिक पद है और इसका महत्व विधायिका के कामकाज में संतुलन बनाए रखने के लिए है.

कुछ राज्यों में 10% सीटों का मानदंड सख्ती से लागू किया जाता है, जबकि कुछ में अन्य प्रक्रियाओं के तहत नेता प्रतिपक्ष नियुक्त किया जा सकता है. वहीं, डिप्टी स्पीकर का चुनाव विधानसभा के सदस्यों द्वारा मतदान के जरिए किया जाता है. चुनाव में बहुमत का नियम लागू होता है और यह सदन की कार्य संचालन नियमावली के अनुसार किया जाता है.

Advertisement

हालांकि, आम तौर पर यह परंपरा रही है कि डिप्टी स्पीकर का पद विपक्षी दल या सदन के अन्य प्रमुख दल को दिया जाए. इससे सदन में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच संतुलन बनाए रखने में मदद मिलती है. यह परंपरा सख्ती से लागू नहीं होती और सत्ताधारी दल भी कभी-कभी इस पद पर अपना उम्मीदवार चुन सकता है. डिप्टी स्पीकर का चुनाव होना अनिवार्य होता है, क्योंकि यह एक संवैधानिक पद है.

डिप्टी स्पीकर, स्पीकर की अनुपस्थिति में सदन की कार्यवाही का संचालन करते हैं. यह पद सदन की कार्यकुशलता सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है.

Live TV

Advertisement
Advertisement