महाराष्ट्र के विदर्भ की भंडारा-गोंदिया लोकसभा सीट पर हर चुनाव में राजनीतिक समीकरण बदल जाते हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में यहां से बीजेपी की टिकट पर नाना पटोले जीते थे, उन्होंने राष्ट्रवादी कांग्रेस (एनसीपी) के दिग्गज नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रफुल्ल पटेल को चुनाव हराया था. लेकिन पार्टी आलाकमान से नाराजगी के चलते नाना पटोले ने पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया था.
उनके इस्तीफे के बाद यहां हुए उपचुनाव में राष्ट्रवादी कांग्रेस (एनसीपी) के मधुकर राव कुकड़े चुनाव जीते. उन्होंने बीजेपी के हेमंत पटेल को हराया. वहीं, अब नाना पटोले इस्तीफा देकर कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं तो 2019 की उम्मीदवारी को लेकर यहां खींचतान आने वाले चुनाव में दिखाई देगी.
क्या रहा है भंडारा-गोंदिया लोकसभा सीट का इतिहास...
भंडार-गोंदिया लोकसभा सीट सबसे पहले 2008 में परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई थी. इससे पहले इस लोकसभा सीट का नाम भंडारा था. लेकिन अब ये सीट दो जिलों भंडारा और गोंदिया में पड़ती है और दोनों ही जिलों की 3-3 विधानसभा सीट इस लोकसभा के तहत आती हैं.
परिसीमन के पहले तक 1999 और 2004 के लोकसभा चुनाव में यहां से बीजेपी ने जीत दर्ज की. चुन्नीलाल ठाकुर 1999 में और शिशुपाल पटले 2004 में यहां से जीते. हालांकि, परिसीमन के बाद यहां 2009 में बाजी पलट गई. एनसीपी के उम्मीदवार प्रफुल्ल पटेल ने बाजी मारी और उनके प्रतिद्वंदी निर्दलीय उम्मीदवार नाना पटोले को चुनाव हराया.
दिलचस्प बात यह है कि 2009 के लोकसभा चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार होने के बावजूद नाना पटोले यहां दूसरे स्थान पर रहे जबकि बीजेपी के शिशुपाल तीसरे स्थान पर रहे. नाना पटोले की इस इलाके में पकड़ को देखते हुए अगले ही चुनाव यानी कि 2014 में बीजेपी ने उन्हें लोकसभा का टिकट दिया और वो जीतकर संसद भी पहुंचे. हालांकि, पार्टी आलाकमान से मतभेद के बाद उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया.
भंडारा लोकसभा सीट कभी कांग्रेस का गढ़ थी...
1952 में हुए पहले आम चुनाव में भंडारा से कांग्रेस के तुलाराम साखरे आरक्षित (अनुसूचित जाति) वर्ग से चुने गए थे, तो वहीं खुले प्रवर्ग से कांग्रेस के चतुर्भुज जसानी लोकसभा पहुंचे. 1957 में हुए दूसरे आम चुनाव में भंडारा से कांग्रेस के बालकृष्ण वासनिक आरक्षित वर्ग से लोकसभा के लिए चुने गए थे. जबकि बालकृष्ण वासनिक महज 27 साल की आयु में लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए थे. वहीं, खुले प्रवर्ग से कांग्रेस के रामचंद्र हजर्नवीस ने बाजी मारी थी. वो 1962 के चुनाव में भी दोबारा चुनाव जीतने में सफल रहे थे.
फिर 1967 में कांग्रेस के ए.आर मेहता, 1971 में विशम्भरदास ज्वालाप्रसाद दुबे जीते, 1977 में कांग्रेस के हाथ से यह सीट निकल गई और लक्ष्मणराव मानकर भारतीय लोक दल की टिकट पर जीते. लेकिन यह जीत ज्यादा दिन नहीं चली. 1979 में दोबारा कांग्रेस जीती. केशव राव पारधी कांग्रेस की टिकट पर चुने गए. वो 1984 में दोबारा जीत दर्ज करने में सफल रहे.
जब बीजेपी का हुआ उदय...
कांग्रेस के दबदबे के बावजूद 1989 में कुशल बोपचे ने बीजेपी को भंडारा लोकसभा सीट से जीत दिलवाई. यह भंडारा सीट पर बीजेपी का उदय था. हालांकि, 1991 में कांग्रेस की टिकट से प्रफुल्ल पटेल जीते. वो यहां से लगातार 1996, 1998 में चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे. 1999 में बीजेपी ने यहां दोबारा जीत दर्ज की चुन्नीलाल ठाकुर सांसद बने. इसके अगले चुनाव में बीजेपी अपना दबदबा कायम रखने में सफल हुई और शिशुपाल 2004 में बीजेपी के टिकट पर चुने गए.
क्या है विधानसभा सीटों का हाल...
भंडारा-गोंदिया लोकसभा सीट के अंतर्गत कुल छह विधानसभाएं आती हैं. इसमें तुमसर, भंडारा, साकोली, अर्जुनी मोरगांव, तिरोड़ा बीजेपी के पास है जबकि गोंदिया कांग्रेस के पास है. हालांकि, हाल ही में हुए लोकसभा उप चुनाव में बीजेपी का दबदबा यहां कोई ख़ास जादू नहीं कर पाया.