भीमा कोरेगांव केस में शिवसेना और नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के बीच मतभेद खुलकर सामने आ गया है. एनसीपी नेता और कैबिनेट मंत्री जितेंद्र अवध ने कहा कि भीमा कोरेगांव केस एक साजिश हैं. वहीं, शिवसेना नेता और गृह राज्य मंत्री दीपक केसकर ने कहा कि भीमा कोरेगांव और एल्गार परिषद में वामपंथी कार्यकर्ताओं के खिलाफ जो भी आरोप लगाए गए थे, वो सबूतों पर आधारित थे.
इससे पहले एनसीपी नेता धनंजय मुंडे और प्रकाश गजभिये ने भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में दर्ज सभी केस वापस लेने की मांग कर चुके हैं. इसको लेकर उन्होंने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को खत लिखा था कि भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में दर्ज सभी केस वापस लिए जाएं.
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एनसीपी नेता धनंजय मुंडे ने सीएम उद्धव ठाकरे से कहा था कि भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में बुद्धिजीवियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और नागरिकों को नक्सली बताकर उनके खिलाफ फर्जी केस दर्ज किए गए थे. लिहाजा सभी केस वापस लिए जाएं. भीमा कोरेगांव मामले में चार्जशीट पहले ही दाखिल हो चुकी है. इससे पहले उद्धव ठाकरे सरकार ने नाणार रिफाइनरी और आरे मामले में दर्ज केस वापस ले चुकी है.
क्या है भीमा कोरेगांव का मामला?
एक जनवरी 2018 को महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव में जातिगत हिंसा भड़की थी. इस मामले में महाराष्ट्र पुलिस ने कई लोगों को गिरफ्तार किया था. पुलिस ने सुरेंद्र, गाडलिंग, सुधीर धावले, महेश राउत, रोमा विल्सन और सोमा सेन को भी आरोपी बनाया था.
भीमा कोरेगांव हिंसा के दौरान महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और शिवसेना के गठबंधन वाली सरकार थी. हालांकि विधानसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर सहमति नहीं बनने पर बीजेपी और शिवसेना अलग-अलग हो गए थे.
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बीजेपी से अलग होने के बाद शिवसेना ने एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में सरकार बनाई. नई सरकार बनने के बाद से ही एनसीपी और कांग्रेस के नेता भीमा कोरेगांव मामले में दर्ज मामले वापस लेने की मांग कर रहे हैं.
क्या है जश्न के पीछे की कहानी?
आपको बता दें कि एक जनवरी 1818 को ब्रिटिश आर्मी और पेशवा आर्मी के बीच जंग हुई थी, जिसमें ब्रिटिश आर्मी की जीत हुई थी. दरअसल, दलित जाति के 500 से अधिक सैनिकों ने तब पेशवाओं की सेना में शामिल होने का आग्रह किया था, लेकिन पेशवाओं ने उन्हें शामिल नहीं किया था. इसी के बाद दलित और महार जाति के जवान ब्रिटिश के साथ चले गए थे और पेशवाओं को इस जंग में मात दी थी. तभी से एक जनवरी के दिन भीमा कोरेगांव में जश्न मनाया जाता है.