पुणे पुलिस ने गुरुवार को यहां एक विशेष यूएपीए अदालत में मानवाधिकार कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज और भगोड़े माओवादी नेता गणपति सहित पांच लोगों के खिलाफ पूरक आरोपपत्र दायर किया. पुलिस ने नवंबर 2018 में इस मामले में गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) कानून (यूएपीए) की विशेष अदालत में दस लोगों के खिलाफ पहला आरोपपत्र दायर किया था.
यह मामला 31 दिसंबर 2017 को यहां कथित रूप से आयोजित एल्गार परिषद कार्यक्रम में दिए गए भाषणों से अगले दिन पुणे के कोरेगांव भीमा युद्ध स्मारक के पास भारी हिंसा होने से जुड़ा है. संयुक्त पुलिस आयुक्त शिवाजी बोडके ने बताया, 'हमने भारद्वाज, (तेलुगू कवि) वरवरा राव, (मानवाधिकार कार्यकर्ता) अरुण फरेरा, वर्नोन गोंसाल्विज और प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) के भगोड़े महासचिव गणपति उर्फ चंद्रशेखर के खिलाफ पूरक आरोपपत्र सौंपा.'
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश किशोर वडाने के सामने 1800 पेज का आरोपपत्र पेश किया गया. बोडके ने कहा, इसमें गिरफ्तार कार्यकर्ताओं के पास से जब्त इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से प्राप्त साक्ष्यों को जोड़ा गया है. भारद्वाज और अन्य को सितंबर में गिरफ्तार किया गया था. चार्जशीट में गंभीर आरोप लगाए गए हैं. एल्गार परिषद् मामले के दूसरे आरोप पत्र में पुलिस की ओर से चौंकाने वाले आरोप लगाए गए हैं. इसमें कहा गया है कि 2017 और 2018 की शुरुआत में आरोपी वरवरा राव और अन्य ने भाकपा माओवादी को सीआरपीएफ कैम्प की जानकारी पहुंचाई.
आरोप पत्र में कहा गया है कि सीआरपीएफ पेट्रोलिंग टीम और स्थानीय पुलिस की गाड़ियों पर आईईडी से हमला किया गया. इन हमलों में लगभग 12 जवान शहीद हुए थे. इसमें लगभग 15 हमले छतीसगढ़ के कई हिस्सों में किए गए. इस घटनाओं की एफआईआर में डिटेल्स जोड़ी गई है. आरोप पत्र के मुताबिक 31 दिसंबर 2017 को पुणे में आयोजित एल्गार परिषद की बैठक में भाषण, किताबों और पत्रों के जरिये समाज में दुश्मनी पैदा की गई. नई पेशवाई यानी मौजूदा सरकार को कब्रिस्तान में दफनाना है, इस तरह के इसमें ऐलान किए गए.
आरोप पत्र के मुताबिक कबीर कला मंच और एल्गार परिषद् के सुधीर ढवले ने भीमा कोरेगांव में पत्थरबाजी और दंगा होने के कुछ महीने पहले महाराष्ट्र के गावों में दलितों को प्रतिबंधित संघठन भाकपा माओवादी की विचारधारा के जरिये गुमराह किया. इसकी वजह से ही भीमा कोरेगांव का मामला सामने आया था.