अंधेरी पूर्व विधानसभा सीट पर उपचुनाव होने जा रहा है. यहां कल तक हाईवोल्टेज चुनाव होने की उम्मीद थी, लेकिन, आज अचानक सियासी घटनाक्रम बदला और बीजेपी ने अपने उम्मीदवार को वापस ले लिया. अब सिर्फ औपचारिकता भर रह गई है. एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली बालासाहेब शिवसेना के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही भाजपा ने अपना उम्मीदवार वापस ले लिया है, इसे अब शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) की उम्मीदवार रुतुजा लटके के लिए केक वॉक के रूप में देखा जा रहा है. लेकिन आसान चुनाव के बावजूद बीजेपी के पीछे हटने के कदम को उद्धव ठाकरे के लिए झटके के तौर पर देखा जा रहा है.
बता दें कि रविवार को मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने बीजेपी नेता और डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस को पत्र लिखकर उनसे रुतुजा लटके के खिलाफ बीजेपी उम्मीदवार को वापस लेने का अनुरोध किया था. यह सीट शिवसेना विधायक रमेश लटके के निधन के बाद खाली हुई थी. राकांपा प्रमुख शरद पवार ने भी ऐसा ही अनुरोध किया था. कई बैठकों के बाद सोमवार की सुबह भाजपा ने आखिरकार घोषणा की कि वह अपने उम्मीदवार मुर्जी पटेल को चुनाव मैदान से वापस ले रही है.
महाराष्ट्र में राजनीतिक ड्रामा और उद्धव ठाकरे की सरकार गिरने के बाद इस चुनाव पर हर किसी की निगाहें टिकी थीं. ये चुनाव उद्धव ठाकरे और भाजपा-शिंदे गुट के गठबंधन के बीच पहला बड़ा आमना-सामना भी था. ये चुनाव आयोग द्वारा शिवसेना के धनुष-बाण चिन्ह को सील करने और दोनों गुटों को दो अलग-अलग नाम और चुनाव चिन्ह आवंटित करने के बाद भी हो रहा था. हालांकि शिंदे गुट (बालासाहेब शिवसेना) ने अपनी सहयोगी भाजपा का उम्मीदवार उतारने पर सहमति जताई थी. इतना ही नहीं, उद्धव गुट की उम्मीदवार रुतुजा लटके बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) में नौकरी करती थीं. उन्होंने चुनाव में उतरने से पहले नौकरी से इस्तीफा दिया था. हालांकि, बीएमसी ने जब इस्तीफा स्वीकार नहीं किया तो ये मुद्दा गरमा गया था. बाद में कोर्ट के आदेश के बाद इस्तीफा स्वीकार किया गया.
इससे पहले भाजपा और शिवसेना (UBT) दोनों ने अपने-अपने उम्मीदवारों का नामांकन बड़ी धूमधाम और ताकत के साथ किया था. हालांकि, अब भाजपा के उम्मीदवार वापस लेने से उद्धव ठाकरे के लिए एक राहत की खबर हो सकती है, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है.
यहां जानिए इसके पांच कारण-
1. उपचुनाव उद्धव ठाकरे और उनके खेमे के लिए मुंबई में अपनी वास्तविक शक्ति का परीक्षण करने का एक अवसर था. रुतुजा लटके की जीत का मतलब यह होता कि भले ही नेता, विधायक और सांसद शिंदे के साथ गए हों, लेकिन जनता और जमीनी लोग ठाकरे के साथ हैं. ये मौका अब छिन गया है.
2. चुनाव की एक औपचारिकता ने भी उद्धव ठाकरे से आगामी बीएमसी चुनावों के लिए टोन सेट करने का अवसर छीन लिया है. भाजपा-शिंदे गठबंधन के साथ सीधा टकराव उद्धव के पास मतदाताओं तक पहुंचने और अपने नए चुनाव चिन्ह मशाल और नए नाम- शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) को लोकप्रिय बनाने का मौका था.
3. राज ठाकरे की एमएनएस ने पिछले चुनावों में अंधेरी पूर्व विधानसभा क्षेत्र में अच्छे वोट हासिल किए थे. मनसे ने यहां मराठी मतदाताओं को समर्पित किया है. भाजपा के एक गैर-मराठी उम्मीदवार को मैदान में उतारने के साथ एक गुजराती का मतलब होता कि मनसे के वोट या तो शिवसेना (UBT) में ट्रांसफर हो गए या भाजपा को वोट देने से दूर रहे. ये उद्धव ठाकरे के लिए एक फायदा होता, लेकिन अब वह स्थिति नहीं बनेगी.
4. अगर भाजपा- बालासाहेब शिवसेना और शिवसेना (UBT) के बीच सीधा मुकाबला होता और उद्धव ठाकरे गुट चुनाव जीत जाता तो मुंबई में इसका बड़ा प्रभाव पड़ता. बीएमसी के बहुत से पूर्व पार्षदों ने अभी भी यह तय नहीं किया है कि उद्धव के साथ रहना है या बीएमसी चुनाव से पहले शिंदे गुट में शामिल होना है. उद्धव ठाकरे की जीत का एनालिसिस मुंबई में उनके गुटों के प्रभुत्व के रूप में किया जाता. और नुकसान को रोका जा सकता था.
5. गुजराती और मराठी उम्मीदवार के बीच सीधी लड़ाई के साथ इस चुनाव में उद्धव गुट को 'मराठी मानुष की पार्टी' कहा जाता है. बीएमसी चुनावों से पहले, इसका परिणाम मराठी वोटों का एकीकरण/ध्रुवीकरण हो सकता है, जो अब होता नहीं दिख रहा है.