भाजपा-शिवसेना गठबंधन को लोकसभा चुनाव में बंपर जीत मिली. गठबंधन को कुल 41 सीटें मिलीं. इनमें से भाजपा को 23 सीटों पर जीत मिली, जबकि शिवसेना 18 सीट अपनी झोली में डालने में सफल रही. हालांकि 2014 के लोकसभा चुनाव में इस गठबंधन को 42 सीटें मिली थी. इस बार उससे एक सीट कम मिली. प्रदेश में मराठा आरक्षण लागू होने के बाद मराठा वोटरों के समर्थन की उम्मीद गठबंधन को तो थी लेकिन ओबीसी वोटरों के छिटकने की आशंका भी सता रही थी.
जब लोकसभा चुनाव 2019 के परिणाम सामने आए तो यह साफ हो गया कि ओबीसी के वोट बड़े पैमाने पर भाजपा को मिले. मराठा वोट के अलावा जनजातीय वोट भी भाजपा के समर्थन में गया. लोकसभा चुनाव में किस तरह जातीय वोटिंग हुई उसका आंकड़ा 'एक्सिस मॉय इंडिया' ने जारी कर दिया है. भाजपा को प्रदेश में 51 फीसदी वोट मिले जबकि कांग्रेस को 35 फीसदी. प्रकाश आंबेडकर के वंचित बहुजन अघाड़ी पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी के गठबंधन को 8 प्रतिशत वोट मिले.
मराठा आरक्षण का असर
मराठा आरक्षण के बाद ऐसा लग रहा था मानो ओबीसी मतदाता भाजपा से अलग हो जाएंगे. लेकिन 59 फीसदी मराठा वोट भाजपा-शिवसेना के समर्थन में गया. कांग्रेस-एनसीपी और यूपीए के दूसरे दलों को कुल 31 फीसदी मराठा वोटरों ने वोट दिए. माना जा रहा था कि 16 फीसदी मराठा आरक्षण के बाद ओबीसी मतदाताओं में असुरक्षा की भावना आ गई है और वे भाजपा से नाराज हैं. परंतु 66 फीसदी ओबीसी ने भाजपा-शिवसेना के पक्ष में मतदान किया और कांग्रेस-एनसीपी के पक्ष में मात्र 28 फीसदी. ओबसी वोटरों ने वंचित अघाड़ी पार्टी से मुंह मोड़ लिया. प्रकाश आंबेडकर के वंचित बहुजन अघाड़ी पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी के गठबंधन को मात्र 3 फीसदी ओबीसी वोट मिले.
दलित मुस्लिम वोट कहां गए
वंचित बहुजन अघाड़ी को दलितों का पूरा समर्थन मिला. 35 फीसदी दलित वोट उन्हें मिला. कांग्रेस-एनसीपी को 30 प्रतिशत दलित वोट मिले. जबकि भाजपा को 29 फीसदी दलितों ने साथ दिया. अनुसूचित जनजाति ने भाजपा का बखूबी साथ निभाया. एसटी वोट का 54 फीसदी भाजपा को मिला और कांग्रेस-एनसीपी के गठबंधन को 36 फीसदी एसटी वोट मिले. मुस्लिम वोट के मामले में कांग्रेस ने बाजी मार ली. 77 फीसदी मुस्लिम वोट कांग्रेस-एनसीपी को मिले जबकि भाजपा को सिर्फ 14 प्रतिशत मुस्लिम वोट मिले. असदुद्दीन ओवैसी वाले गठबंधन को मात्र 3 फीसदी मुस्लिम वोट मिले.
कांग्रेस की न्याय योजना बेअसर
गरीबों को न्याय देने की बात कर कांग्रेस ने दावा किया था कि अगर उसकी सरकार बनी तो गरीबों के खाते में 72 हजार रुपये सालाना दिए जाएंगे. लेकिन गरीबों ने इस पर भरोसा नहीं जताया. गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले 50 फीसदी लोगों ने भाजपा के पक्ष में मतदान किया. कांग्रेस को गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले 34 फीसदी लोगों ने वोट डाले और 9 फीसदी लोगों ने प्रकाश आंबेडकर की पार्टी को वोट दिए.