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महाराष्ट्र: शिवसेना-BJP के पुनर्मिलन में शर्तों की बाधा, डिप्टी CM और मालदार मंत्रालयों पर फंसा पेच

शिवसेना महाराष्ट्र में बीजेपी को समर्थन देने के लिए तैयार है. लेकिन बीजेपी को शिवसेना से बिना शर्त समर्थन चाहिए. यानी मोल-भाव की स्थिति में शिवसेना नहीं, बीजेपी आ गई है. बीजेपी ने शिवसेना के सामने समर्थन को लेकर शर्तें रख दी हैं. बीजेपी ने कहा है कि वह शिवसेना को उपमुख्यमंत्री या दूसरे बड़े पद नहीं देगी और उद्धव की पार्टी को इसके बिना ही समर्थन देना होगा.

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Amit Shah and Udhdhav Thackeray
Amit Shah and Udhdhav Thackeray

शिवसेना महाराष्ट्र में बीजेपी को समर्थन देने के लिए तैयार है. लेकिन बीजेपी को शिवसेना से बिना शर्त समर्थन चाहिए. यानी मोल-भाव की स्थिति में शिवसेना नहीं, बीजेपी आ गई है. बीजेपी ने शिवसेना के सामने समर्थन को लेकर शर्तें रख दी हैं. बीजेपी ने कहा है कि वह शिवसेना को उपमुख्यमंत्री या दूसरे बड़े पद नहीं देगी और उद्धव की पार्टी को इसके बिना ही समर्थन देना होगा.

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इसके अलावा महाराष्ट्र की राजनीति में जिन मंत्रालयों की भूमिका महत्वपूर्ण है, जैसे सिंचाई, वित्त, ऊर्जा और शहरी विकास जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों को भी बीजेपी नहीं छोड़ना चाहती. हालांकि शिवसेना के लिए सबसे बड़ा मुद्दा उपमुख्यमंत्री पद का है . सेना चाहती थी कि उपमुख्यमंत्री राज्य के मुख्यमंत्री के साथ ही पद की शपथ लें. लेकिन बीजेपी के तेवरों को देखकर ऐसा होना मुमकिन नहीं दिख रहा.

शिवसेना नेताओं ने उद्धव ठाकरे को बीजेपी की शर्तों के बारे में सूचित कर दिया है. संभावना है कि मंगलवार या बुधवार में शिवसेना इस बारे में फैसला ले सकती है.

विधानसभा चुनावों में सीटों के बंटवारे को लेकर शिवसेना ने अड़ियल रवैया अपनाया था. इसकी वजह से बीजेपी से उसका लंबे समय से चल रहा गठबंधन भी टूट गया. लेकिन मतगणना के दिन बीजेपी की सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने के साथ ही एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने बीजेपी को बिना शर्त समर्थन की घोषणा कर दी. लिहाजा शिवसेना को बीजेपी के सामने झुकना पड़ा.

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गौरतलब है कि सोमवार को शरद पवार ने एक बार फिर बीजेपी को समर्थन की बात दोहराते हुए कहा कि विश्वास मत के दौरान एनसीपी के विधायक सदन में मौजूद नहीं रहेंगे. ऐसे में बीजेपी को विश्वास मत हासिल करने में आसानी हो जाएगी. इसका परिणाम यह हुआ कि बीजेपी, शिवसेना पर हावी हो गई और बिना शर्त समर्थन के लिए भी शर्तें रख दीं. अब देखना है कि उद्धव अब कौन सा सियासी पत्ता फेंकते हैं.

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