महाराष्ट्र की राजनीति में जब से उद्धव ठाकरे का अध्याय समाप्त हुआ है, शिवसेना पर उनकी पकड़ को लेकर भी कई सवाल खड़े हो गए हैं. उन्होंने इस समय सिर्फ सत्ता नहीं गंवाई है बल्कि शिवसेना पर उनकी पकड़ भी कमजोर हुई है. ऐसे में आगामी बीएमसी चुनाव पार्टी के लिए असल अग्नि परीक्षा साबित होने वाला है.
बीएमसी पर हमेशा से शिवसेना का दबदबा रहा है, मुंबई तो पूरी तरह पार्टी के नियंत्रण में रही है. लेकिन इस बार जमीन पर समीकरण बदले हैं. पहली बार शिवसेना में ही फूट है. मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के साथ कई बागी शिवसैनिक आ चुके हैं. वे तो दावा भी कर रहे हैं कि असल शिवसेना वही है. ऐसे में आगामी चुनाव में उद्धव ठाकरे को सिर्फ शानदार प्रदर्शन नहीं करना बल्कि पार्टी पर भी फिर अपना कब्जा जमाना है.
ऐसी संभावना जताई जा रही है कि बीएमसी चुनाव से पहले उद्धव ठाकरे बागी विधायकों से संपर्क साध लें. जानकार तो ऐसी उम्मीद भी जता रहे हैं कि शायद उद्धव एक बार फिर बीजेपी से हाथ मिला लें. कहने को ये सिर्फ अटकलें हैं, लेकिन दोनों पार्टियों का राजनीतिक इतिहास बताता है कि वे जरूरत पड़ने पर कई बार सिर्फ हिंदुत्व के नाम पर साथ आए हैं.
वैसे बीजेपी के साथ शिवसेना का दोबारा जाना इसलिए भी माना जा रहा है क्योंकि कुछ दिन पहले ही डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने कहा था कि हम सिर्फ कुछ समय के लिए अलग हुए थे. लेकिन अब मुझे लगता है कि हम फिर साथ आ गए हैं. हिंदुत्व के वोट कभी भी बंटने नहीं चाहिए. अब फडणवीस का ये रुख इसलिए भी मायने रखता है क्योंकि हाल ही में सीबीआई ने उस मामले में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी है जिसमें उद्धव ठाकरे के दामाद का नाम था. कुछ जानकार इसे सुधरते रिश्तों की तरफ पहला कदम मान रहे हैं.
खबर तो ये भी आई है कि उद्धव खेमे के चार विधायकों ने इस बात पर सहमति जताई है कि एक बार फिर शिंदे गुट के विधायकों से बातचीत करनी चाहिए. वैसे भी क्योंकि शिवसेना के चुनावी चिन्ह को लेकर एक कानूनी लड़ाई शुरू होना जा रही है, उस स्थिति में अगर बातचीत के जरिए कोई समाधान या समझौता निकल जाता है तो बीएमसी चुनाव में शिवसेना अपने ही चुनावी चिन्ह के साथ मैदान में उतर सकती है.
2017 के बीएमसी चुनाव की बात करें तो शिवसेना और बीजेपी के बीच में कांटे की टक्कर देखने को मिली थी. तब शिवसेना ने 84 और बीजेपी 82 सीटों पर जीत दर्ज की थी. लेकिन इस बार शिवसेना में ही फूट है, बीजेपी ने एकनाथ शिंदे को सीएम बना दिया है, ऐसे में अगर कोई समझौता नहीं होता, ऐसी स्थिति में बीएमसी चुनाव में नए समीकरण बनते दिख सकते हैं.