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बॉम्बे HC ने नवी मुंबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट के लिए भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया को किया रद्द

नवी के किसानों की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को नवी मुंबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट प्रोजेक्ट के लिए भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया को रद्द कर दिया है. पीठ ने कहा कि सिटी एंड इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (सिडको) और महाराष्ट्र सरकार द्वारा शुरू की गई अधिग्रहण प्रक्रिया में खामियां थीं.

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बॉम्बे हाईकोर्ट. (फाइल फोटो)
बॉम्बे हाईकोर्ट. (फाइल फोटो)

बॉम्बे हाईकोर्ट ने नवी मुंबई के किसानों की एक याचिका पर सोमवार को फैसला सुनाते हुए पनवेल के गांव वाहल में नवी मुंबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट प्रोजेक्ट के लिए भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया को रद्द कर दिया है. 

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जस्टिस एम.एस. सोनक और जितेंद्र जैन की बेंच ने पाया कि सिटी एंड इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (सिडको) और महाराष्ट्र सरकार द्वारा शुरू की गई अधिग्रहण प्रक्रिया में खामियां थीं, क्योंकि भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 की धारा 17 के तहत तत्काल प्रावधानों को लागू करने वाली वैध अधिसूचना का अभाव था. इस अधिनियम की धारा 17 कलेक्टर को तत्काल स्थिति में जमीन पर कब्जा करने का अधिकार देती है. ये अवार्ड दिए जाने से पहले भी किया जा सकता है.

पीठ ने फैसला सुनाया कि धारा 5ए के तहत अनिवार्य जांच न करने के कारण अधिग्रहण अवैध हो गया. भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 की धारा 5ए, सार्वजनिक उद्देश्य के लिए धारा 5 के तहत अधिसूचित भूमि में रुचि रखने वाले किसी भी व्यक्ति को अधिसूचना के 30 दिनों के अंदर अधिग्रहण के खिलाफ आपत्तियां उठाने की अनुमति देती है जो अनिवार्य रूप से सरकार द्वारा भूमि के अनिवार्य अधिग्रहण से पहले सुनवाई का अधिकार प्रदान करती है.

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2013 की अधिसूचना को चुनौती

पीठ भूमि मालिकों द्वारा दायर कुछ याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने परियोजना के लिए कृषि भूमि अधिग्रहण की 2013 की अधिसूचना को चुनौती दी थी.

अधिवक्ता ए.वी. अंतुरकर ने तर्क दिया कि घोषणा में गलती से एक तात्कालिकता अधिसूचना का उल्लेख किया गया है जो कभी अस्तित्व में ही नहीं थी. यह कोई वास्तविक तात्कालिकता का मामला नहीं था, जिसमें कुछ हफ्ते या महीनों का विलम्ब भी बर्दाश्त न किया जा सके." उन्होंने बताया कि बार-बार अवसर दिए जाने के बावजूद सरकार ऐसी कोई अधिसूचना पेश करने में विफल रही.

राज्य की ओर से उपस्थित अतिरिक्त सरकारी वकील ए.आई. पटेल ने तर्क दिया कि अदालत को इस आधार पर आगे बढ़ना होगा कि वास्तव में ऐसी अधिसूचना थी और परियोजना एक सार्वजनिक उद्देश्य की पूर्ति करती है और उन्होंने अदालत से अधिग्रहण को रद्द करने के बजाए मोल्ड करने का आग्रह किया.

हालांकि, पीठ ने कहा, 'यह कहना एक बात है कि राज्य और उसके तंत्र बिना समय गंवाए सार्वजनिक महत्व की परियोजना को क्रियान्वित करना चाहते हैं और यह कहना बिल्कुल अलग बात है कि ऐसी परियोजना के क्रियान्वयन में निजी व्यक्ति को बिना सुनवाई के ही उसकी संपत्ति से वंचित कर दिया जाए.'

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पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि प्रक्रियागत सुरक्षा उपायों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, क्योंकि यह कोई वास्तविक तात्कालिकता का मामला नहीं है. अत्यावश्यकता प्रावधानों को केवल गंभीर और वास्तविक तात्कालिकता के मामलों में ही लागू किया जा सकता है. तात्कालिकता प्रावधानों को लागू करने और धारा 5ए के प्रावधानों को बाहर करने से पहले दिमाग का इस्तेमाल करना आवश्यक है. वैधानिक संतुष्टि केवल तात्कालिकता से संबंधित नहीं होनी चाहिए, बल्कि विशेष रूप से धारा 5ए सुरक्षा उपायों को खत्म करने की आवश्यकता से संबंधित होनी चाहिए. ये सब वर्तमान मामले में अनुपस्थित है.

'किसान अभी-भी जमीन के मालिक'

पीठ ने जोर देकर कहा, 'प्रस्तावित अधिग्रहण के खिलाफ सुनवाई का यह अधिकार सार्थक होना चाहिए, दिखावा नहीं.' भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही को रद्द करते हुए पीठ ने कहा कि किसान अभी भी भूमि के मालिक हैं. इसलिए 2018 में पारित अंतरिम स्थगन आदेश के बाद उन्हें कब्जा बहाल करने के आदेश जारी करने का कोई सवाल ही नहीं था. हालांकि, राज्य ने आदेश पर रोक लगाने की मांग की, लेकिन पीठ ने ऐसा करने से इनकार कर दिया. 

बता दें कि एयरपोर्ट का निर्माण लगभग पूरा हो चुका है और कुछ ही महीनों में परिचालन शुरू होने वाला है.

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