बॉम्बे हाई कोर्ट ने 2018 के एल्गार परिषद मामले में गिरफ्तार किए गए प्रोफेसर आनंद तेलतुंबडे को जमानत दे दी है. हालांकि NIA के वकील संदेश पाटिल की अपील पर कोर्ट ने आदेश पर एक सप्ताह के लिए रोक लगा दी है. एजेंसी ने यह समय इसलिए मांगा ताकि वह सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सके.
प्रोफेसर तेलतुंबडे के खिलाफ माओवादियों से संबंध के आरोप थे. उनके भाई मिलिंद तेलतुंबड़े, जो कई साल पहले घर छोड़कर चले गए थे वह एक माओवादी नेता थे और पिछले साल नवंबर में महाराष्ट्र के गढ़चिरौली इलाके में सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में मारे गए थे.
जस्टिस एएस गडकरी और एमएन जाधव की पीठ ने 73 वर्षीय तेलतुंबड़े की जमानत याचिका को स्वीकार कर लिया है. वह इस मामले में अप्रैल 2020 में गिरफ्तारी के बाद से जेल में हैं. जब पुणे पुलिस ने 2018 में उनके घर पर छापा मारा था, तब वह वहां नहीं थे और उन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया था. हालांकि जब मामला एनआईए को सौंप दिया गया तो उनकी गिरफ्तारी की गई.
जब कोर्ट ने आदेश दिया तो तेलतुंबडे की ओर से पेश वकील मिहिर देसाई और देवयानी कुलकर्णी ने मांग की कि आरोपी को जमानत देने के बजाय 1 लाख रुपये की अस्थायी नकद जमानत पर बाहर आने की अनुमति दी जाए, जिसमें समय लगता है. तेलतुंबडे की जमानत याचिका को पहले एनआईए की स्पेशल कोर्ट ने खारिज कर दिया था.
तुषार दामुगड़े ने दर्ज कराया था केस
आनंद तेलतुंबडे को पुणे के विश्रामबाग पुलिस स्टेशन में 2018 में दर्ज मामले के संबंध में गिरफ्तार किया गया था. इस केस को तुषार दामुगड़े ने दर्ज कराया था. दामुगड़े के अनुसार, 31 दिसंबर 2017 को पुणे के शनिवार वाडा में एल्गार परिषद नाम से एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था. उन्होंने दावा किया कि जो भाषण दिए गए वे भी भड़काऊ थे, जबकि आयोजन स्थल पर बिक्री के लिए आपत्तिजनक और भड़काऊ किताबें रखी हुई थीं, इनमें प्रतिबंधित संगठन कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवादी) पर भी एक किताब थी. इसकी वजह से ही 1 जनवरी, 2018 को भीमा कोरेगांव में हिंसा भड़क उठी.
सुधा, गौतम, तेलतुंबडे समेत कई गिरफ्तारियां
इस मामले में पुणे पुलिस ने गौतम नवलखा, आनंद तेलतुंबडे, सुधा भारद्वाज समेत अन्य कई सामाजिक कार्यकर्ताओं पर केस दर्ज किया था. बाद में इनका संबंध माओवादियों से होने के आरोप लगाया गया था. पुलिस की दलील थी कि 31 दिसंबर को यल्गार परिषद ने भड़काऊ भाषण दिया था, जिसके बाद हालात बिगड़ गए थे.