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'आरोपी हीं नहीं, शिकायतकर्ता भी हो जाते हैं लापता', जजों के सामने बोले महाराष्ट्र के सीएम

सीएम उद्धव ठाकरे ने जस्टिस चंद्रचूड़ की बात आगे बढ़ाते हुए कहा कि इस राज्य में आरोपी ही नहीं कई बार तो शिकायतकर्ता भी लापता हो जाते हैं.

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उद्धव ठाकरे (फाइल फोटोः पीटीआई)
उद्धव ठाकरे (फाइल फोटोः पीटीआई)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • डीवाई चंद्रचूड़ ने सांगली के पुराने मामले का किया जिक्र
  • सीएम उद्धव ने लोकतंत्र को बताया जिम्मेदारी वाली छत

महाराष्ट्र के औरंगाबाद में शनिवार को बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद पीठ के एनेक्सी इमारत का लोकार्पण समारोह था. इस कार्यक्रम में देश की सर्वोच्च न्यायालय के जज थे तो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री भी. देश के भावी चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे के बीच लापता अधिकारियों को लेकर तंजिया तीर भी चले.

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जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ ने समारोह में कुछ अजीब मुकदमों का जिक्र करते हुए कहा कि सांगोला तालुका में एक लंबित मुकदमे का आरोपी 1958 से फरार है. अब तक आरोपी का कोई पता नहीं चल पाया है. उन्होंने कहा कि अब तो भगवान ही जाने कि वो अब है भी या नहीं. इसके बाद बोलने की बारी मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की थी.

सीएम उद्धव ठाकरे ने जस्टिस चंद्रचूड़ की बात आगे बढ़ाते हुए कहा कि इस राज्य में आरोपी ही नहीं कई बार तो शिकायतकर्ता भी लापता हो जाते हैं. लोग समझ गए कि ठाकरे का इशारा किसकी तरफ है जब उन्होंने कहा कि यहां तो शिकायत दर्ज कराने के बाद शिकायतकर्ता लापता हो जाता है. ऐसी स्थिति में वाकई ध्यान देने की जरूरत है. उन्होंने आगे कहा कि अब वो शिकायत दर्ज हुई है तो जांच भी होगी ही. जांच हो भी रही है लेकिन कोई सीमा या हद तो होनी ही चाहिए.

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सीएम उद्धव ने आगे कहा कि न्याय करना किसी एक आदमी का काम नहीं है. ये तो सामूहिक काम है. कई लोग इस न्यायिक प्रक्रिया की टीम का हिस्सा होते हैं. उन्होंने आगे कहा कि उन्हें कभी ऐसे कार्यक्रम में बोलने का मौका नहीं मिला. जजों के सामने बोलना बहुत चुनौतीपूर्ण लग रहा है. सीएम ने लोकमान्य तिलक को याद करते हुए कहा कि वो ज्यादा महत्वपूर्ण समय रहा होगा जब लोकमान्य तिलक ने जूरी के सामने अपनी बात रखी थी.

लोकतंत्र जिम्मेदारी वाली छत

मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कहा है कि लोकतंत्र जिम्मेदारी वाली छत है. इसमें जिम्मेदारी के खंभों के रूप में विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया के कंधे हैं. न्यायपालिका पर दबाव का मतलब लोकतंत्र पर दबाव है. कोई एक खंभा भी कमजोर होगा तो लोकतंत्र की छत कमजोर होगी. फिर कोई खंभा भी नहीं होगा. और छत गिरने के बाद खंभे का कोई अर्थ भी नहीं होगा. उन्होंने कहा कि अपराध रोकने के उपाय तेज करने जरूरी हैं लेकिन मेरी निगाह में अपराध खत्म हो जाएं. अदालतें भी खाली होनी चाहिए. कोई विवाद न हो.

 

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