बॉम्बे हाई कोर्ट ने सोमवार को बीमार तेलुगू कवि वरवर राव को मेडिकल ग्राउंड पर छह महीने की अंतरिम जमानत दे दी. एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में आरोपी 82 साल के वरवर राव का इस समय मुंबई के नानावटी अस्पताल में इलाज चल रहा है. राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) एल्गार परिषद मामले की छानबीन कर रही है.
जस्टिस एसएस शिंदे और जस्टिस मनीष पिटाले की पीठ ने आदेश दिया कि वरवर राव को अस्पताल से छुट्टी दे दी जाए जोकि उनके स्वास्थ्य की स्थिति पर निर्भर करेगी. पीठ ने कहा कि अस्पताल से छुट्टी के तुरंत बाद उन्हें जमानत पर रिहा किया जाए.
वरवर राव को जमानत देते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट ने उन सात सवालों पर विचार किया, जो एक अंडर-ट्रायल कैदी के संवैधानिक अधिकार हैं. एल्गार परिषद मामले में, जिसमें वरवर राव आरोपी हैं, सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा, 'NIA अभी तक आरोप तय नहीं कर पाई है और अभियोजन पक्ष लगभग 200 गवाहों की जांच करना चाहता है. आज भी कोई हमें यह बताने की स्थिति में नहीं है कि यह जांच पड़ताल कब तक पूरी होगी.'
कोर्ट ने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट और अन्य उच्च न्यायालयों के आदेशों से कानून की स्थिति जो बनती है उसके मुताबिक किसी कैदी को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिले मौलिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता है. भले ही वह जेल की चार दीवारी के पीछे कैद हो, विशेष परिस्थितियों में एक आरोपी को हिरासत से रिलीज किया जा सकता है. राज्य या जांच एजेंसी की तसल्ली के लिए आरोपी को छोड़ते वक्त कुछ शर्तें लागू की जा सकती हैं ताकि ट्रायल या पूछताछ के दौरान कैदी पेश हो.
जस्टिस एसएस शिंदे और न्यायमूर्ति मनीष पिटाले की पीठ ने कहा कि मेरिट के आधार पर जमानत याचिका अदालत के समक्ष लंबित है, लेकिन अगर कैदी की मेडिकल स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है तो कोर्ट अंडर-ट्रायल को रिहा करने का आदेश जारी कर सकता है. अगर मेडिकल ग्राउंड पर कैदी को कुछ महीने के लिए रिहाई का आदेश नहीं दिया तो उसका जीवन खतरा में पड़ सकता है. कोर्ट ने यह भी कहा कि जांच एजेंसी को एक कैदी को मिले अधिकार को कम करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है.
कोर्ट ने पूछा, 'तमाम बीमारियों से ग्रसित ऐसे बुजुर्ग कैदी भले ही गंभीर अपराधों के आरोपी हों, लेकिन सवाल है कि क्या किसी को सलाखों के पीछे सिर्फ इसलिए दोयम स्थिति में रहने को मजबूर किया जा सकता क्योंकि उस बुजुर्ग पर गंभीर आरोप हैं?'
अदालत ने आगे कहा कि अंडर ट्रायल बुजुर्ग कैदी जिनकी आयु 82 वर्ष से अधिक है और वृद्धावस्था में होने वाली बीमारियों से ग्रसित हैं, ऐसे कैदी को सलाखों के पीछ रखने से उन्हें स्वास्थ्य को लेकर और खतरों का सामना करना पड़ेगा. उनकी स्थिति बिगड़ती जाएगी और वे अपने जीवन के खत्म होने के कगार पर पहुंच जाएंगे. यह एक पहलू है जिसकी जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान हिरासत से रिहाई का आदेश देने की अनदेखी नहीं की जा सकती है.
सुनवाई के दौरान कोर्ट उन तमाम मेडिकल रिपोर्ट्स का भी अवलोकन किए और पाया कि वरवर राव के मलाशय से रक्तस्राव हो रहा था और पेशाब संबंधी भी दिक्कतें थीं. कोर्ट ने पाया कि मुंबई में सुपर स्पेशलिटी अस्पताल भर्ती किए जाने के बाद राव की तबीयत में सुधार हुआ है और अदालत ने कहा कि अगर फिर से उन्हें तलोजा सेंट्रल जेल भेजा जाता है तो निश्चित रूप से उनके जीवन को फिर से खतरा पैदा हो जाएगा. तलोजा सेंट्रल जेल में स्वास्थ्य देखभार का पूरा बंदोबस्त नहीं है. कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार और NIA के उन सुझावों को भी ठुकरा दिया कि राव को सरकारी जेजे अस्पताल में भेज दिया जाए.
हाई कोर्ट ने कहा कि अगर वह वरवर राव को मेडिकल ग्राउंड पर जमानत नहीं देता है तो यह मानवाधिकार के सिद्धांत की रक्षा करने के उसके कर्तव्य और नागरिकों के जीवन एवं स्वास्थ्य के मौलिक अधिकार से विमुख होने जैसे होगा.
जमानत पर क्या बोले राव के वकील?
वरवर राव के वकील आनंद ग्रोवर ने कहा, 'यह ऐतिहासिक फैसला है. आजादी के बाद भारत में पहली बार ऐसा फैसला आया है. हाई कोर्ट ने माना कि उनके (वरवर राव) अंतर्निहित स्वास्थ्य स्थितियों के कारण उनके जीवन और स्वास्थ्य के मौलिक अधिकार का उल्लंघन हो रहा है. तलोजा जेल में उनकी देखभाल के लिए पर्याप्त सुविधा नहीं है, और अगर उन्हें वापस भेजा जाता है तो उनकी तबीयत फिर से बिगड़ सकती है. अगर कोर्ट उन्हें फिर से जेल भेजती तो उनके संवैधानिकारों की अनदेखी होती.'
वरवर राव की वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा, "यह फैसला जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार पर आधारित है. हम यह साबित करने में सक्षम रहे हैं कि वह बार-बार बीमार पड़ रहे हैं और तलोजा जेल में सुविधा नहीं है. मुझे लगता है कि अदालत ने स्वीकार किया है कि कैदियों के मौलिक हैं. उनके पास स्वास्थ्य, जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार है. इसलिए मुझे लगता है कि यह एक बड़ा दिन है.”
आदेश सुनकर राव की बेटी पवन पेंडियाला अभिभूत हो गईं. उन्होंने कहा, " करीब दो साल बाद यह हुआ है. इसलिए हम बहुत खुश हैं. हम मामले पर नज़र रख रहे थे और हमें बहुत उम्मीद नहीं थी. सभी की जमानत खारिज कर दी गई थी और छोटी राहत भी नहीं दी गई थी. इसलिए इस आदेश ने हमें भावुक कर दिया. हम बॉम्बे हाईकोर्ट के शुक्रगुजार हैं."