बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर तत्काल सुनवाई से इनकार कर दिया. इसमें मुंबई में मराठा आरक्षण के मुद्दे पर हड़ताल और विरोध प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी. ये याचिका इसलिए दायर की गई है क्योंकि मराठा नेता मनोज जारांगे पाटिल की ओर से मुंबई में आंदोलन का ऐलान किया गया है.
हाईकोर्ट ने कहा, “हम इस आशंका के आधार पर मामलों पर विचार करना शुरू नहीं कर सकते कि 1-2 करोड़ लोग बॉम्बे में इकट्ठा होने वाले हैं. हमारे पास और भी जरूरी काम हैं. अधिकारियों के पास जाओ. हम यहां कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने के लिए नहीं बैठे हैं."
दरअसल, याचिकाकर्ता हेमंत पाटिल का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील आरएन कछवे ने याचिका का तत्काल सुनवाई के लिए उल्लेख किया था. कछवे ने तर्क दिया कि जारांगे-पाटिल के नेतृत्व में दक्षिण मुंबई के आजाद मैदान में लगभग 1-2 करोड़ लोगों के इकट्ठा होने की संभावना है.
मुख्य न्यायाधीश देवेन्द्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति आरिफ डॉक्टर की पीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि ऐसी सभाओं की अनुमति पर निर्णय लेना अधिकारियों का विशेषाधिकार है, न कि अदालत का. कोर्ट को इस सबमें मत लपेटो. कोर्ट ने पूछा कि आखिर ऐसे मामलों में क्या किया जा सकता है?
कोर्ट ने आगे कहा कि वह शहर और राज्य में कानून और व्यवस्था की स्थिति बनाए रखने के लिए एक जिम्मेदार नहीं है और याचिकाकर्ता को कार्रवाई करने के लिए उचित अधिकारियों से संपर्क करने का निर्देश दिया.
बता दें कि राज्य भर में मराठा आंदोलन हो रहे हैं जिसमें मराठा समुदाय सरकारी नौकरियों में आरक्षण की मांग कर रहा है. मराठा आरक्षण कार्यकर्ता जारंगे पाटिल ने हाल ही में घोषणा की कि 20 जनवरी को आंदोलनकारी महाराष्ट्र के जालना जिले से मुंबई की ओर मार्च करेंगे और बीड, अहमदनगर, पुणे से गुजरते हुए मुंबई के आजाद मैदान पहुंचेंगे.
इसके चलते कोर्ट में जनहित याचिका दायर करते हुए शांति भंग करने, सार्वजनिक उपद्रव और राजद्रोह के अपराध के लिए जारांगे-पाटिल के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की गई थी. याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उसने एफआईआर दर्ज करने के लिए 5 जनवरी को पुलिस को एक अभ्यावेदन भेजा था. हालांकि, कोई कार्रवाई नहीं होने पर याचिकाकर्ता ने जनहित में हाईकोर्ट का रुख किया.