सियासी बिसात में उद्धव ठाकरे की शिवसेना अपने ही मोहरे का शिकार हो गई है. एकनाथ शिंदे अब उन्हें हटाकर महाराष्ट्र के नए सीएम होंगे. राजनीतिक गलियारों में बीते हफ्ते से चल रहे शह-मात के खेल में शिवसेना ने हार गई है और अब उसके सामने अपने गढ़ मुंबई नगर निगम को बचान की चुनौती है जिसका चुनाव इसी साल होना है. मतलब साफ है बीजेपी के साथ उसकी अगली जंग मैदान में होने वाली है.
मुंबई नगर पालिका में अभी शिवसेना का कब्जा है. यह देश के सबसे अमीर शहरी निकायों में से एक है और इसका नतीजा राज्य के विधानसभा चुनाव में मनोवैज्ञानिक असर पर भी पड़ता है. बीएमसी की कुल 227 सीटों में शिवसेना के 97 पार्षद, बीजेपी के 80, कांग्रेस के 29, एनसीपी के 8 और समाजवादी पार्टी के 6 पार्षद हैं. जाहिर है कि बीजेपी शिवसेना ज्यादा पीछे नहीं है.
अब बात करें शिवसेना के सामने खड़ी चुनौती की तो एकनाथ शिंदे की अगुवाई में जिस तरह से बगावत हुई है राज्य में शिवसेना अपनी स्थापना के बाद पहली बार इतना कमजोर दिख रही है. एक दौर था जब पार्टी सत्ता में हो या न हो, सड़क पर उसके साथ संघर्ष करना आसान नहीं था. लेकिन हाल में हुए एकनाथ शिंदे के विद्रोह के बीच उद्धव की तीन-तीन भावनात्मक अपीलों के बाद भी न तो विद्रोहियों का दिल पिघला और न कार्यकर्ताओं में वो जोश दिखा. छिटपुट विरोध जरूर देखने को मिला है.
इसकी बड़ी वजह शिवसेना की अपनी मूल विचारधारा हिंदुत्व से समझौता करना भी हो सकता है जो कि कार्यकर्ताओं में उहापोह के हालात पैदा कर रहा है. क्योंकि एकनाथ शिंदे भी यही आरोप लग रहे थे कि उद्धव ठाकरे ने शिवसेना की मूल विचारधारा हिंदुत्व को छोड़कर कांग्रेस और एनसीपी से समझौता किया है.
अब बात करें शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी के गठबंधन की तो इसमें भी आपसी रस्साकसी काफी दिनों से चल रही है. मई के महीने में महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले ने कांग्रेस चीफ सोनिया गांधी से शिकायत की. उन्होंने कहा कि एनसीपी महाराष्ट्र में कांग्रेस को खत्म कर रही है. जिला परिषदों और अलग निकायों में कांग्रेस के प्रतिनिधियों को विकास के कार्यों के लिए पर्याप्त फंड नहीं दिया जा रहा है. भिवंडी-निजामपुर में कांग्रेस के 19 पार्षदों ने पार्टी को छोड़कर एनसीपी ज्वाइन किया है. इतना ही नहीं पटोले ने कहा कि इसी महीने गोदिया जिला परिषद का अध्यक्ष के चुनाव के दौरान एनसीपी ने बीजेपी से ही हाथ मिला लिया.
गठबंधन में तीसरे नंबर की पार्टी कांग्रेस सिर्फ शरद पवार की एनसीपी से ही नहीं शिवसेना से भी खासी नाराज है. जून के महीने में कांग्रेस नेता और पार्षद रवि राजा ने आरोप लगाया कि प्लान के तहत राज्य से कांग्रेस को खत्म किया जा रहा है. आज तक से बात करते हुए रवि राजा ने कहा कि सबसे बड़ी पार्टी शिवसेना भूल गई है कि कांग्रेस भी एमवीए का हिस्सा है. वार्ड आरक्षण के लिए लॉटरी सिस्टम अलग तरीके से किया गया है. कम से कम 21 कांग्रेस नेता इससे प्रभावित होने जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि आलाकमान को ये देखना होगा कि एमवीए में कांग्रेस के हित न प्रभावित हो जाएं.
बीएमसी में 118 वार्ड को महिलाओं के लिए रिजर्व कर दिया गया है. जिसमें 109 वार्ड सामान्य कैटेगरी की महिलाओं के लिए, 8 अनुसूचित जाति के लिए हैं और 1 अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित कर दी गई हैं. इस बदलाव से बीएमसी के कई बड़े चेहरों जैसे कि कांग्रेस के रवि राजा, शिवसेना के यशवंत जाधव बीजेपी के विनोद मिश्रा और समाजवादी पार्टी के रइस शेख की सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित कर दी गई है.
बता दें कि वार्ड में सीटों का आरक्षण तय करने के लिए लॉटरी सिस्टम का सहारा लिया जा रहा है. लेकिन कांग्रेस ने इस पर आपत्ति जताई है और कानूनी मदद मांग रही है. आरक्षण की वजह से कांग्रेस के 29 में से 21 पार्षदों के सीटों का की स्थिति बदल गई है. इससे नाराज रवि राजा ने कहा कि वे 1992 से चुनाव लड़ रहे हैं. उनका काम सभी जानते हैं. लेकिन ये कांग्रेस को खत्म करने का प्लान है.
इन बयानबाजी के बीच फैसला ये भी हो चुका है कि शिवसेना और कांग्रेस अलग-अलग चुनाव लड़ेंगी वहीं एनसीपी गठबंधन करने के मूड में हैं. दरअसल बीएमसी के चुनाव में शिवसेना और कांग्रेस का अपना-अपना आधार है और दोनों ही पार्टियां उसे खोना नहीं चाहती हैं. अगर गठबंधन हुआ तो मनमुताबिक नेताओं को टिकट नहीं मिलेगा. इसलिए इन पार्टियों का साथ न लड़ना भी मजबूरी है.
साल 1995 तक कांग्रेस का बीएमसी पर कब्जा था और ही मेयर बनाती रही है. लेकिन 1996 के बाद से शिवसेना ने एकक्षत्र राज कायम कर लिया. बीजेपी अब शिवसेना से इस गढ़ को छीनने की तैयारी कर चुकी है. देखने वाली बात है राज्य में बदले हालात में शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे अपने इस गढ़ को बचाने के लिए कौन सी रणनीति अपनाते हैं?