
शिवसेना विधायकों के खिलाफ पांच ग्रुप में अयोग्यता के नोटिस पर महाराष्ट्र विधानसभा के स्पीकर ने अपना बहुप्रतीक्षित फैसला सुना दिया है. स्पीकर राहुल नार्वेकर के फैसले पर सवाल उठाते हुए शिवसेना यूबीटी प्रमुख उद्धव ठाकरे ने इसे लोकतंत्र की हत्या करार दिया है तो वहीं उद्धव की पार्टी से ही राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह पर सीधा हमला बोल दिया है.
शिवसेना के उद्धव समर्थक पुणे में सड़कों पर उतर आए और पुलिस के साथ झड़प की घटना भी हुई. महाराष्ट्र में एक बड़े सियासी घटनाक्रम को लेकर बहुप्रतीक्षित फैसले के साथ जहां पटाक्षेप की बातें कही जा रही थीं, वहां अब एक नई बहस शुरू हो गई है तो इसकी वजह क्या है? इसे समझने के लिए स्पीकर के फैसले के दो पहलुओं के साथ ही सुप्रीम कोर्ट के निर्देश की चर्चा भी जरूरी हो जाती है.
क्या था सुप्रीम कोर्ट का आदेश?
सुप्रीम कोर्ट उद्धव ठाकरे की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए महाराष्ट्र के स्पीकर को अयोग्यता नोटिस पर जल्द फैसला लेने के लिए कहा था. कोर्ट ने स्पीकर को यह निर्देश भी दिया था कि केवल संख्याबल नहीं बल्कि शिवसेना के संविधान, संगठन के ढांचे को भी फैसला लेते समय ध्यान में रखें. सुप्रीम कोर्ट ने स्पीकर से प्रथम दृष्टया यह तय करने को भी कहा था कि असली शिवसेना किसकी है? सर्वोच्च न्यायालय ने फैसले में देरी को लेकर भी नाराजगी जताई थी और पहले 31 दिसंबर, फिर 10 जनवरी तक की समयसीमा निर्धारित किया था.
क्या है स्पीकर राहुल नार्वेकर का फैसला?
सुप्रीम कोर्ट की ओर से निर्धारित समयसीमा जिस दिन समाप्त हो रही थी, स्पीकर राहुल नार्वेकर ने 1200 पेज का भारी-भरकम फैसला सुनाया. स्पीकर नार्वेकर ने सबसे पहले असली शिवसेना किसकी है, इस बिंदु पर अपना फैसला सुनाया. उन्होंने एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले धड़े को ही असली शिवसेना माना. स्पीकर ने अपने आदेश में निर्वाचन आयोग के फैसले का जिक्र किया और कहा कि मैं इसे नहीं पलट सकता.
स्पीकर ने शिवसेना के दोनों गुट की ओर से चुनाव आयोग को सौंपे गए संविधान पर आम सहमति नहीं होने का जिक्र करते हुए कहा कि विवाद से पहले की नेतृत्व संरचना का ध्यान रखते हुए प्रासंगिक संविधान तय करना होगा.उन्होंने 2018 का संविधान चुनाव आयोग की वेबसाइट पर नहीं होने को आधार बनाते हुए शिवसेना के 1999 के संविधान को ही मान्य करार दिया.
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स्पीकर ने संगठन के ढांचे पर फैसले में 2018 के संविधान के मुताबिक संगठन के ढांचे को ही मान्यता दी. स्पीकर ने कहा कि उद्धव ठाकरे को एकनाथ शिंदे या किसी भी नेता को हटाने का अधिकार नहीं है. इसे लेकर कोई भी फैसला राष्ट्रीय कार्यकारिणी का होना चाहिए था. उन्होंने 25 जून 2022 को राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पारित हुए प्रस्ताव भी अमान्य करार दिए. स्पीकर ने 37 विधायकों के समर्थन को आधार बनाते हुए बहुमत के आधार एकनाथ शिंदे को ही शिवसेना का नेता माना और यह भी कहा कि भरत गोगावले ही असली व्हिप हैं जिन्हें चुनाव आयोग ने भी मान्यता दी है. उन्होंने कहा कि शिंदे गुट के किसी भी विधायक को अयोग्य ठहराने का कोई उचित आधार नहीं है.
स्पीकर के ट्रिपल टेस्ट में विरोधाभास क्या?
स्पीकर राहुल नार्वेकर ने अपने फैसले को विस्तार से पढ़ा और एक-एक फैसले के पीछे का आधार भी बताया. स्पीकर ने एक तरफ चुनाव आयोग के फैसले को ढाल बनाते हुए शिवसेना के 1999 के संविधान को मान्य करार दिया और यह जोड़ा कि मैं चुनाव आयोग का फैसला नहीं पलट सकता, आयोग पहले ही शिंदे गुट को शिवसेना के रूप में मान्यता दे चुका है.
स्पीकर ने एक तरफ जहां शिवसेना के 1999 के संविधान को वैलिड माना, वहीं जब संगठन के ढांचे पर फैसले की बात आई तो 2018 वाले संगठन के ढांचे को मान्यता दे दी. स्पीकर ने ट्रिपल टेस्ट का जिक्र कर एक-एक बिंदु पर फैसले के आधार गिनाए तो वहीं अब सवाल यह भी उठ रहे हैं कि क्या उन्होंने तय फैसले के फॉर्मेट में जब जहां जो चीजें फिट हुईं, फिट कर के अपने फैसले का आधार बना लिया? ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि उन्होंने संविधान की बात पर शिवसेना के 1999 के संविधान को वैलिड माना और बात जब संगठन की आई तो 2018 वाले ढांचे को मान्य किया.
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स्पीकर ने यह भी कहा कि पक्ष प्रमुख जैसा कोई पद पार्टी में है ही नहीं. इसे आधार बनाकर शिवसेना यूबीटी की राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने सवालिया अंदाज में कहा कि फिर 2019 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव में फॉर्म ए और फॉर्म बी कैसे मान्य हुए? उद्धव ठाकरे पहले ही यह साफ कह चुके हैं कि अगर फैसला उनके पक्ष में नहीं आया तो वह सुप्रीम कोर्ट जाएंगे. उद्धव ने स्पीकर के फैसले पर सवाल उठाते हुए यह भी पूछा है कि हमें अयोग्य क्यों नहीं ठहराया?
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चुनाव आयोग का वो फैसला जो बना स्पीकर का सेफ पैसेज
शिवसेना के नाम और निशान पर कब्जे की लड़ाई चुनाव आयोग की चौखट तक भी गई थी. चुनाव आयोग ने अपने फैसले में उद्धव गुट की ओर से उपलब्ध कराए गए पार्टी के संविधान को ही अलोकतांत्रिक करार देते हुए अमान्य कर दिया था. चुनाव आयोग ने कहा था कि शिवसेना के मूल संविधान में अलोकतांत्रिक तरीकों को गुपचुप तरीकों से लाया गया जिससे पार्टी निजी जागीर की तरह हो गई. चुनाव आयोग ने 1999 में इस तरह के तौर-तरीके नामंजूर करने का जिक्र भी अपने फैसले में किया था और 1999 के संविधान को मान्यता दी थी.