पुणे पुलिस ने शुक्रवार को बंबई हाईकोर्ट को बताया कि ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है कि अंधविश्वास विरोधी कार्यकर्ता नरेन्द्र दाभोलकर की हत्या में दक्षिणपंथी उग्रवादियों का कोई हाथ है. अंधविश्वास के खिलाफ आंदोलन चलाने वाले दाभोलकर की हत्या पुणे में 20 अगस्त को कर दी गई थी. पुलिस को अब भी हत्यारों का कोई सुराग नहीं मिल सका है.
पूर्व पत्रकार केतन तिरोडकर ने एक जनहित याचिका दायर कर दाभोलकर की हत्या की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) से कराने की मांग की है. उनका आरोप है कि हिंदू दक्षिणपंथी तत्वों ने उनकी हत्या की है. पुलिस की ओर से पेश जवाब में कहा गया है कि दाभोलकर के बारे में ऐसी जानकारी नहीं है कि वह किसी से खतरा महसूस कर रहे थे. इसलिए दाभोलकर की हत्या से पहले उन्हें पेश खतरे के बारे में पुलिस की कोई रिपोर्ट तैयार करने और उनकी गतिविधियों की निगरानी करने इत्यादि का कोई सवाल नहीं उठता.
पुणे अपराध शाखा के पुलिस सहायक आयुक्त राजेन्द्र भामारे ने कहा कि यह दलील सिर्फ अनुमान या याचिकाकर्ता की अपनी कल्पना पर आधारित है कि यह दक्षिणपंथी उग्रवादियों का किया कराया था. इसका तथ्यात्मक सबूत नहीं है.
पुलिस ने अदालत को अब तक की गई अपनी जांच की दो रिपोर्ट मुहरबंद लिफाफे में न्यायमूर्ति पी. वी. हरदास की अध्यक्षता वाली खंडपीठ को सौंपी. न्यायाधीशों ने शुक्रवार को लिफाफे नहीं खोले. उन्होंने सुनवाई की तारीख दो हफ्ते बाद निर्धारित की और कहा कि वे अगली सुनवाई में रिपोर्ट पर चर्चा करेंगे.
भामरे ने मामले को एनआईए को सुपुर्द करने का विरोध किया और कहा कि यह अपराध एनआईए के अधीन नहीं आता और इसे केन्द्रीय एजेंसी को हस्तांतरित नहीं किया जाना चाहिए. उन्होंने अपने हलफनामे में कहा, हमारा दल किसी राजनीति हस्ती या कार्यकर्ता के दबाव में नहीं है.
इस बीच न्यायमूर्ति एम. एल. ताहिलियानी की खंडपीठ ने वह याचिका वापस लेने की इजाजत दे दी जो डॉ. दाभोलकर ने हत्या से पहले दायर की थी और जिसमें अपने खिलाफ आपराधिक मानहानि की शिकायत वापस लेने का आग्रह किया था.
सनातन भारतीय संस्कृति संस्था ने अंधविश्वास से संबंधित डॉ. दाभोलकर के 2005 के एक लेख पर उनके खिलाफ मानहानि की एक शिकायत दर्ज की थी. डॉ. दाभोलकर के वकील एजे अलमीदा ने कहा कि चूंकि याचिकाकर्ता की मृत्यु हो गई है, इसलिए मामला बंद हो गया.