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बेहोश मरीज से छेड़छाड़ के आरोपी को कोर्ट ने दी अग्रिम जमानत, जानें- पूरा मामला

यह केस चर्कोप पुलिस स्टेशन में दर्ज किया गया था. शिकायतकर्ता महिला ने बताया कि वह गले की बीमारी के कारण एक अस्पताल में भर्ती थी. 8 फरवरी 2025 को दोपहर 12 बजे उसे दवाई दी गई, जिससे वह नींद में चली गई. उसी दौरान उसे महसूस हुआ कि कोई उसके दाहिने पैर के ऊपरी हिस्से को छू रहा है.

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सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर

मुंबई के डिंडोशी सत्र न्यायालय ने एक 29 वर्षीय वार्ड बॉय को अग्रिम जमानत दी, जिस पर एक बेहोश मरीज के साथ छेड़छाड़ करने का आरोप था. कोर्ट ने कहा कि आवेदक एक युवा व्यक्ति है, आवेदक की व्यक्तिगत स्वतंत्रता और जांच एजेंसी के अधिकारों के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए कठोर शर्तें लगाकर जांच का उद्देश्य पूरा किया जा सकता है.

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क्या है मामला?
यह केस चर्कोप पुलिस स्टेशन में दर्ज किया गया था. शिकायतकर्ता महिला ने बताया कि वह गले की बीमारी के कारण एक अस्पताल में भर्ती थी. 8 फरवरी 2025 को दोपहर 12 बजे उसे दवाई दी गई, जिससे वह नींद में चली गई. उसी दौरान उसे महसूस हुआ कि कोई उसके दाहिने पैर के ऊपरी हिस्से को छू रहा है. जब उसने आंखें खोलीं और देखा कि वार्ड बॉय ने उसके पैर को कसकर पकड़ रखा है और फिर उसने अपनी आंख झपकाई. महिला ने कहा कि वह इस घटना से डर गई और जोर से चिल्लाई, जिसके बाद नर्स मौके पर पहुंची. बाद में उसने अपने पति को पूरी घटना बताई और पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई.

वार्ड बॉय का बचाव और अभियोजन पक्ष का तर्क

वार्ड बॉय के वकील श्यामबहादुर कंनौजिया ने दलील दी कि आरोप निराधार हैं और यह मामला झूठा दर्ज कराया गया है. हालांकि अतिरिक्त सरकारी वकील उषा जाधव ने जमानत का विरोध करते हुए तर्क दिया कि आरोपी ने यौन इरादे से महिला के शरीर को छुआ और उसकी गरिमा को ठेस पहुंचाने की कोशिश की.

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उन्होंने कहा कि आरोपी ने पीड़िता के टखने से जांघ तक छुआ. जिससे स्पष्ट होता है कि उसका इरादा गलत था. ये महिलाओं के खिलाफ एक गंभीर अपराध है. पुलिस को इस घटना की गहराई से जांच करनी होगी. आरोपी की फिजिकल हिरासत ज़रूरी है, क्योंकि अगर उसे जमानत दी गई, तो वह गवाहों को प्रभावित कर सकता है.

न्यायालय का फैसला

दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद जस्टिस डी.जी. ढोबले ने कहा कि आरोपों की जांच मुकदमे के दौरान होगी. कोर्ट ने यह भी माना कि इस मामले में कोई बरामदगी या जब्ती की आवश्यकता नहीं है और आरोपी की शारीरिक हिरासत जरूरी नहीं है. इसके अलावा आरोपी ने अदालत की सभी शर्तों का पालन करने की सहमति जताई है. 

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