महाराष्ट्र का बीड जिला पिछले दिनों सबसे अधिक ध्रुवीकृत लोकसभा चुनावों में से एक का गवाह बना. हालांकि चुनाव के बाद आत्महत्याएं और मराठा बनाम ओबीसी समाज का विभाजन अधिक चिंता का विषय है.
बीड जिले के दिघोल अंबा गांव में 30 साल के पांडुरंग सोनावणे ने लोकसभा चुनाव में पंकजा मुंडे की हार से दुखी होकर आत्महत्या कर ली. पंकजा मुंडे शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी के बजरंग सोनावने से करीब 6000 वोटों से हार गईं. सोनावणे को उम्मीद थी कि अगर पंकजा जीतती हैं तो उनके जिले में विकास होगा.
पंकजा मुंडे की हार से दुखी होकर की आत्महत्या
मृतक पांडुरंग सोनावणे के भाई सौदागर सोनावणे ने कहा, 'हार के बाद पांडुरंग बहुत अजीब तरह से व्यवहार कर रहे थे. हमने उन्हें अस्पताल में भी भर्ती कराया. वह कह रहे थे कि उनके शरीर में दर्द है और तबीयत ठीक नहीं है. डॉक्टरों को पता नहीं चल सका कि उनके साथ क्या हो रहा है. वह कहते रहे कि पार्टी की बैठक है और पंकजा ताई उनसे मिलने आ रही हैं. 9 जून की सुबह वह खेत गए और पेड़ से लटककर आत्महत्या कर ली.'
सुसाइड नोट में उन्होंने लिखा, 'मेरी पंकजा मुंडे ताई साहब चुनाव में हार गईं, मैं इसे बर्दाश्त नहीं कर सकता और इसलिए आत्महत्या कर रहा हूं.' पांडुरंग सोनवणे अपने पीछे परिवार में दो छोटे बच्चे, बुजुर्ग माता-पिता और पत्नी छोड़ गए हैं. पांडुरंग अपने परिवार में अकेले कमाने वाले थे.
लोकसभा चुनाव में पंकजा मुंडे की हार से परेशान होकर कुल तीन लोगों ने आत्महत्या कर ली, जिसमें दो बीड जिले और एक लातूर जिले से है. पंकजा ने सोशल मीडिया के जरिए लोगों से आत्महत्या न करने की अपील की है.
आरक्षण को लेकर अवसाद में था युवक
बीड शहर पहुंची आजतक की टीम को पता चला कि यहां मराठा समुदाय के एक युवक ने भी आत्महत्या कर ली है. सिविल अस्पताल पहुंचने पर मालूम पड़ा कि जरुद तालुका के निवासी 22 साल के युवक रामेश्वर काकड़े ने आत्महत्या कर ली है. काकड़े पिछले साल मैकेनिकल इंजीनियरिंग के छात्र थे और मराठा आरक्षण को लेकर अवसाद में थे.
ओबीसी समुदाय के उनके कई सहपाठियों को नौकरियां मिल गई हैं. काकड़े भी नौकरी करना चाहते थे और अपने परिवार को सपोर्ट करना चाहते थे लेकिन जाति प्रमाण पत्र न होने के कारण उन्हें नौकरी नहीं मिल पा रही थी. जरुद 2500 से अधिक लोगों की आबादी वाला एक छोटा सा गांव है जहां 90 फीसदी लोग मराठा समुदाय से हैं. हालांकि इनमें से किसी को भी कुनबी प्रमाणपत्र नहीं मिला है. काकड़े आरक्षण को लेकर काफी परेशान थे.
गांव के एक निवासी राजू काकड़े ने कहा, 'रामेश्वर बहुत प्रतिभाशाली लड़का था. वह महत्वाकांक्षी था लेकिन उसने देखा कि कैसे ओबीसी छात्रों को नौकरियां मिल रही हैं. वह बहुत दबाव में था. आज (गुरुवार 13 तारीख जून) उसने हमारे गांव के एक पेड़ से लटक कर आत्महत्या कर ली.'
मराठों और ओबीसी समाज के बीच विभाजन
चुनाव के बाद बीड जिले में मराठों और ओबीसी के बीच सामाजिक विभाजन देखने को मिल रहा है. हिंसा भी हुई और ये सब सोशल मीडिया पोस्ट की वजह से हो रहा है. ओबीसी समुदाय के लोगों और पंकजा मुंडे के समर्थकों ने पंकजा के खिलाफ कई आपत्तिजनक सोशल मीडिया पोस्ट का आरोप लगाया है. समर्थकों ने पंकजा खिलाफ सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्ट करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए एसपी कार्यालय तक विरोध मार्च निकाला.
एक प्रदर्शनकारी ने कहा, 'हमें सामाजिक एकता का पालन करना होगा. पूरा बहुजन समाज पंकजा ताई के साथ है. हमें दोनों समुदाय के बीच शांति की जरूरत है. पूरा ओबीसी समाज उनके समर्थन के लिए यहां है. गोपीनाथ मुंडे साहब मराठा आरक्षण के पक्षधर थे. मराठा समाज हमारा बड़ा भाई है. उनका भी विकास होना चाहिए. हम शांत हैं, हमने हार स्वीकार कर ली है लेकिन हमारा संघर्ष खत्म नहीं हुआ है. सभी 6 विधानसभा सीटों पर ओबीसी उम्मीदवार की जीत होगी.'
सोशल मीडिया पर पुलिस की नजर
आजतक से बात करते हुए बीड जिले के एसपी नंदकुमार ठाकुर ने कहा, 'चुनाव खत्म होने के बाद सोशल मीडिया पर ऐसे पोस्ट किए गए जो आपत्तिजनक थे. हमने मामले में 36 एफआईआर दर्ज की हैं और सभी को गिरफ्तार किया है. हम छोटे-छोटे गांवों का भी दौरा कर रहे हैं और कार्रवाई कर रहे हैं. बीड जिले की अपनी समस्या है. ज्यादातर लोग गन्ने के खेतों में काम करने वाले मजदूर हैं. सूखा एक अलग समस्या है. पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पोस्ट के कारण यह समस्या शुरू हो गई है. ऐसी सोशल मीडिया पोस्ट न शेयर करें और अगर आपको ऐसी कोई पोस्ट मिले तो रिएक्ट न करें और पुलिस को सूचित करें. हमने संवेदनशील स्थानों की भी पहचान की है. आत्महत्याएं दुखद हैं. पंकजा मुंडे के समर्थकों ने भी आत्महत्या की है.'