मुंबई के रहने वाले डॉ. अजीत गोपचड़े बाल रोग में एमबीबीएस, एमडी हैं. उन्होंने 31 साल पुराना वह किस्सा बताया, जब वह कारसेवकों के साथ अयोध्या पहुंचे थे. साल 1992 में जब विवादित ढांचे को गिराया गया था, तो उसके मलबे पर खड़े डॉ. अजीत की तस्वीर खिंच गई थी, जो अब वायरल हो रही है. आजतक से विशेष बातचीत में डॉ. अजीत ने अपना अनुभव बताया है, जानते हैं उनकी जुबानी उस दिन क्या हुआ था…
दिसंबर 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के वक्त मैं सिर्फ 22 साल का था. मैंने हाल ही में अपना एमबीबीएस का कोर्स पूरा किया था. इसके बाद मुझे इस पहल के बारे में पता चला. मैं 1990 की राम रथ यात्रा का भी हिस्सा था, जिसका नेतृत्व लालकृष्ण आडवाणी जी ने किया था.
दिसंबर 1992 को 300 लोगों के समूह को अयोध्या ले गया था. मैं भी उस समूह में शामिल था. हम 10.30 बजे तक विवादित ढांचे के पास पहुंच गए थे. दो घंटे में पहले दो ढांचे गिरा दिए गए थे. हालांकि, तीसरा ढांचा नीचे नहीं गिर रहा था.
देखें वीडियो...
मैं कार सेवकों के लिए डरा था, लेकिन फिर सब बदल गया
मैं अपने कारसेवकों के लिए डरा हुआ था. डॉक्टर होने के नाते मैं उनके साथ गया था, ताकि कोई मेडिकल इमरजेंसी हो, तो मैं उनके लिए उपलब्ध रहूं. इसलिए मैं भी कारसेवकों के साथ ढांचे पर चढ़ गया था. एक बार जब तीसरा ढांचा भी नीचे गिर गया, तो स्थिति बिल्कुल अलग थी.
यह दिवाली जैसा माहौल था. दरअसल, उस समय आए पुलिस और सेना ने रामलला से प्रार्थना की. मैं आज बेहद खुश हूं कि वहां भव्य राम मंदिर का निर्माण हुआ है. जिन लोगों को 22 जनवरी को होने वाले राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम में जाने का निमंत्रण मिला है, उन्हें वहां जाना चाहिए. राम सभी के हैं. चाहें वे किसी भी जाति-धर्म के हों. यह राजनीतिक घटना नहीं है.