पार्टी का नाम और पहचान वाली लड़ाई में जीत हासिल होने के बाद अब शिंदे गुट ने विधानसभा में शिवसेना के पार्टी दफ्तर पर भी कब्जा जमा लिया है. इस कदम के साथ उन्होंने भविष्य की सियासत को लेकर अपना इरादा जता दिया है. क्योंकि चुनाव आयोग के फैसले के खिलाफ उद्धव गुट की सुप्रीम कोर्ट में अपील के बाद ये बात तो एकदम साफ है कि महाराष्ट्र में शिवसेना वाला संघर्ष जल्द थमने वाला नहीं है. चुनाव चिन्ह के बाद दफ्तरों, इमारतों पर कब्जे की जंग शुरू हो गई है. शिवसेना के कार्यालय, शाखा, डोनेशन, संपत्ति और फंड पर दावा उद्धव गुट के लिए चिंता का प्रमुख कारण बना हुआ है.
हालांकि जानकारों की माने तो शिंदे गुट पार्टी और सिंबल पर कब्जे के बाद भी शिवसेना भवन और अन्य संपत्तियों का मालिक नहीं बन सकता. कारण, शिवसेना के अधिकांश संपत्ति किसी राजनीतिक पार्टी के नाम नहीं बल्कि अलग-अलग ट्रस्ट के नाम पर हैं और इसलिए इन पर शिवसेना बतौर राजनीतिक पार्टी दावा नहीं कर सकती. इन ट्रस्ट में उद्धव ठाकरे समेत उनके गुट के तामाम लोग शामिल हैं.
दरअसल, शिवसेना की विरासत पर कानूनी लड़ाई के बाद अब पार्टी की संपत्ति और फंड पर शिंदे गुट और उद्धव ठाकरे गुट के बीच जंग नजर आ रही है. चुनाव आयोग (ईसीआई) द्वारा शिंदे गुट को पार्टी का नाम और 'धनुष और तीर' चिह्न दिए जाने के बाद सोमवार को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले शिवसेना गुट ने विधानसभा में पार्टी विधायक दल के कार्यालय पर कब्जा कर लिया. लेकिन जानकारों की मानें तो कानूनी रूप से शिंदे गुट शिवसेना भवन और अन्य संपत्तियों का मालिक नहीं बन सकता.
मुंबई के वकील ने दायर की शिकायत में दी जानकारी
पार्टी कार्यालयों पर विवाद के बीच मुंबई के एक वकील योगेश देशपांडे द्वारा हाल ही में सिटी चैरिटी कमिश्नर के पास दायर की गई शिकायत से पता चला है कि मुंबई में स्थित शिवसेना भवन शिव सेवा ट्रस्ट के स्वामित्व में है. इस शिकायत में बताया गया है कि कैसे एक सार्वजनिक ट्रस्ट की संपत्ति को कई दशकों तक एक राजनीतिक कार्यालय के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. माना जा रहा है कि महाराष्ट्र पब्लिक ट्रस्ट एक्ट दोनों गुटों का दावों में बाधा उत्पन्न कर सकता है.
ट्रस्ट में इन लोगों ने नाम शामिल
वहीं महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के नेता संदीप देशपांडे द्वारा ट्वीट किए गए मुंबई शहर के सर्वेक्षण रजिस्टर के दस्तावेज के अनुसार, उद्धव ठाकरे के अलावा ट्रस्टियों में लीलाधर डाके, दिवाकर रावते, सुभाष देसाई, दक्षिण मुंबई के सांसद अरविंद सावंत और मुंबई की पूर्व मेयर विशाखा राउत शामिल हैं.
राजनीतिक संस्था नहीं कर सकती दावा- उद्धव ठाकरे गुट
राज्यसभा सांसद और उद्धव सेना गुट के अनिल देसाई ने बताया कि नगर पालिका वार्डों के अनुसार कुल 236 नवगठित मंडलों में से कई शाखाएं शिव सेना भवन के शिवई ट्रस्ट के पदाधिकारी को स्थानांतरित करने की प्रक्रिया में हैं. मुंबई के बाहर कई शाखाएं या तो हमारे शाखा प्रमुखों के स्वामित्व में हैं या ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय मंडलों, ट्रस्टों और तालमियों (पहलवानों के समूह) के पास हैं, इसलिए, इन पर किसी अन्य राजनीतिक संस्था द्वारा दावा नहीं किया जा सकता है.
'सामना' और 'मार्मिक' पर भी शिंदे गुट नहीं कर सकता दावा
इसी तरह, पार्टी के मुखपत्र 'सामना' और दिवंगत बाल ठाकरे द्वारा शुरू की गई कार्टून पत्रिका 'मार्मिक' का कार्यालय भी किसी राजनीतिक दल का नहीं है, बल्कि प्रबोधन प्रकाशन नामक ट्रस्ट का है. जिससे इन संपत्तियों पर भी कोई राजनीतिक पार्टी दावा नहीं कर सकती. यहां तक कि अन्य संगठन जैसे स्थानीय लोकाधिकार समिति और भारतीय कामगार सेना, जो विभिन्न श्रमिक वर्ग के मुद्दों से निपटते हैं, यूनियनों के दायरे में आते हैं न कि राजनीतिक संगठन के. इसलिए, इन पर भी शिंदे गुट दावा नहीं कर सकता.
क्या है शिवसेना के फंड की स्थिति
वहीं दूसरी ओर 17 फरवरी, 2022 को शिवसेना द्वारा चुनाव आयोग के साथ दायर वित्तीय वर्ष 2020-21 की वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि पार्टी ने अनुदान, डोनेश, योगदान, सदस्यता और प्रकाशनों की बिक्री के माध्यम से लगभग 13 करोड़ 84 लाख 11 हजार रुपये की आय की है. जबकि 7 करोड़ 91 लाख पचास हजार रुपये चुनाव, कर्मचारी खर्चे, प्रशासनिक और सामान्य उद्देश्यों पर खर्च किए गए हैं.
शिंदे बोले- संपत्ति और फंड का लालच नहीं
इस बीच, सीएम एकनाथ शिंदे ने स्पष्ट किया है कि वे उद्धव सेना की किसी भी संपत्ति पर दावा नहीं करेंगे. उन्होंने ठाकरे गुट पर संपत्तियों के लालच में आकर 2019 में गलत कदम उठाने और वोटरों को धोखा देने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि हमें पार्टी की संपत्ति और फंड का लालच नहीं है. हम बाला साहेब ठाकरे की विचारधारा को आगे बढ़ाना चाहते हैं. इसलिए, हमने उद्धव सेना से अलग होने का कदम उठाया.