बॉम्बे हाई कोर्ट की पूर्व जज पुष्पा गनेडीवाला जिन्हें 'विवादास्पद निर्णयों' के कारण राज्य की सर्वोच्च न्यायिक अदालत में स्थायी नियुक्ति से वंचित कर दिया गया था, उन्होंने उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के लिए लागू पेंशन की मांग करते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच में याचिका दायर किया है.
गनेडीवाला ने कहा, 'मुझे फिलहाल कोई पेंशन नहीं मिल रही है.' अपनी याचिका में वह उच्च न्यायालय (मूल पक्ष) रजिस्ट्रार द्वारा 2 नवंबर, 2022 के उस कम्युनिकेशन को चुनौती दे रही हैं जिसमें कहा गया है कि वह उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की पेंशन के लिए पात्र/हकदार नहीं है. इसमें यह भी कहा गया है कि वह किसी भी अन्य लागू लाभ की हकदार नहीं है.
गनेडीवाला की याचिका में दलील दी गई कि उन्हें पेंशन मिलनी चाहिए, इस तथ्य पर ध्यान दिए बिना कि वह स्वेच्छा से रिटायर हुई हैं या एक विशिष्ट उम्र तक पहुंचने के बाद रिटायर हो गई हैं.
अधिवक्ता अक्षय नाइक के माध्यम से दायर याचिका में उच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल, रजिस्ट्रार (मूल पक्ष), कानून और न्याय मंत्रालय के माध्यम से भारत संघ और कानून और न्यायपालिका विभाग के माध्यम से महाराष्ट्र सरकार के साथ-साथ महाराष्ट्र के महालेखाकार भी प्रतिवादी हैं.
गनेडीवाला उस समय अतिरिक्त न्यायाधीश थीं, जब शीर्ष अदालत कॉलेजियम ने उन्हें स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की अपनी सिफारिश वापस ले ली थी और इसके बजाय अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में उनका कार्यकाल एक वर्ष के लिए बढ़ा दिया था. फरवरी 2022 में अपना कार्यकाल समाप्त होने से एक दिन पहले गनेडीवाला ने अपना इस्तीफा दे दिया था और इस समय एक वकील के रूप में प्रैक्टिस कर रही हैं.
गनेडीवाला को कई फैसलों पर आलोचना का सामना करना पड़ा था, जिन्हें यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम के तहत 'यौन उत्पीड़न' की व्याख्या के लिए विवादास्पद माना गया था.
वर्ष 2021 में उन्होंने फैसला सुनाया था कि POCSO अधिनियम के तहत यौन उत्पीड़न का अपराध माने जाने के लिए 'यौन इरादे से त्वचा से त्वचा का संपर्क' होना जरूरी है और 'नाबालिग लड़की का हाथ पकड़ना और' 'अपनी पैंट की ज़िप खोलना' अधिनियम के तहत 'यौन हमले' की परिभाषा में नहीं आता है. आरोपी को उसने बरी कर दिया. हालांकि, POCSO मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया जिसने गनेडीवाला के आदेश पर रोक लगा दी.
शीर्ष अदालत ने कहा था कि "स्पर्श" का अर्थ "त्वचा से त्वचा" संपर्क तक सीमित करने से "संकीर्ण और बेतुकी व्याख्या" होगी और अधिनियम का इरादा नष्ट हो जाएगा, जो बच्चों को यौन अपराधों से बचाने के लिए बनाया गया था.