महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने 2 जनवरी को कहा था कि वह सदियों पुरानी हाजी मलंग दरगाह की 'मुक्ति' के लिए प्रतिबद्ध हैं. दक्षिणपंथी समूह इस दरगाह के मंदिर होने का दावा करते हैं. यह दरगाह समुद्र तल से 3000 फीट ऊपर माथेरान की पहाड़ियों पर मलंगगढ़ किले पास स्थित है. यहां यमन के 12वीं शताब्दी के सूफी संत हाजी अब्द-उल-रहमान की दरगाह है, जिन्हें स्थानीय लोग हाजी मलंग बाबा के नाम से जानते हैं. यहां 20 फरवरी को हाजी मलंग की जयंती के लिए विशेष तैयारियां की जा रही हैं.
कल्याण में स्थित सूफी संत के अंतिम विश्राम स्थल तक पहुंचने के लिए दो घंटे की घुमावदार चढ़ाई करनी पड़ती है. दरगाह के ट्रस्टियों में से एक चंद्रहास केतकर ने कहा, 'जो कोई भी यह दावा कर रहा है कि हाजी मलंग दरगाह एक मंदिर है, वह राजनीतिक लाभ के लिए ऐसा कर रहा है'. चंद्रहास केतकर का परिवार पिछली 14 पीढ़ियों से इस दरगाह की देखभाल कर रहा है. 1980 के दशक के मध्य में, स्थानीय शिवसेना नेता आनंद दिघे ने इस स्थान को नाथ पंथ से संबंधित एक प्राचीन हिंदू मंदिर बताकर दरगाह का विरोध शुरू किया था.
मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने दरगाह को लेकर क्या कहा?
मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने ठाणे जिले में 'मलंगगढ़ हरिनाम महोत्सव' में अपने संबोधन के दौरान कहा, 'मलंगगढ़ के प्रति आपकी भावनाएं मुझे भली-भांति ज्ञात हैं. यह आनंद दिघे ही थे जिन्होंने मलंगगढ़ के मुक्ति आंदोलन की शुरुआत की, जिससे हमने 'जय मलंग श्री मलंग' का जाप शुरू किया. हालांकि, मुझे आपको बताना होगा कि कुछ ऐसे मामले होते हैं जिनकी सार्वजनिक चर्चा नहीं की जाती. मैं मलंगगढ़ की मुक्ति के बारे में आपकी गहरी धारणाओं से अवगत हूं. मैं यह बता दूं कि एकनाथ शिंदे तब तक चुप नहीं बैठेगा, जब तक वह आपकी इच्छाएं पूरी नहीं कर देता'.
सियासी लाभ के लिए हो रही बयानबाजी- दरगाह के ट्रस्टी
चंद्रहास केतकर के मुताबिक, '1954 में, हाजी मलंग के प्रबंधन पर केतकर परिवार नियंत्रण से संबंधित एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए टिप्पणी की थी कि दरगाह एक समग्र संरचना थी, जिसे हिंदू या मुस्लिम कानून द्वारा शासित नहीं किया जा सकता है. इसे केवल अपने स्वयं के विशेष रिवाज या ट्रस्ट द्वारा निर्धारित नियमों के तहत शासित किया जा सकता है. पार्टियां और उसके नेता अब केवल अपने वोट बैंक को आकर्षित करने और राजनीतिक मुद्दा बनाने के लिए इसे उछाल रहे हैं'. हर साल हजारों भक्त अपनी 'मन्नत' लेकर दरगाह पर आते हैं'.
हाजी मलंग दरगाह का उल्लेख विभिन्न ऐतिहासिक अभिलेखों में मिलता है, जिसमें 1882 में प्रकाशित द गजेटियर्स ऑफ बॉम्बे प्रेसीडेंसी भी शामिल है. इसमें संरचना का जिक्र करते हुए, यह कहा गया है कि यह दरगाह एक अरब मिशनरी हाजी अब्द-उल-रहमान के सम्मान में बनाया गया था, जो हाजी मलंग के नाम से लोकप्रिय थे. कहा जाता है कि नल राजा के शासनकाल के दौरान सूफी संत यमन से अपने कई अनुयायियों के साथ आए थे और माथेरान की पहाड़ी के निचले हिस्से में बस गए थे.
दरगाह को लेकर प्रचलित हैं कई किवदंतियां
स्थानीय किंवदंतियों में दावा किया गया है कि नल राजा ने अपनी बेटी की शादी सूफी संत से की थी. बाबा हाजी मलंग और मां फातिमा दोनों की कब्रें दरगाह परिसर के अंदर स्थित हैं. बॉम्बे प्रेसीडेंसी के गजेटियर्स में कहा गया है कि संरचना और कब्रें 12वीं शताब्दी से अस्तित्व में हैं. गजट में कहा गया है कि 18वीं शताब्दी में तत्कालीन मराठा संघ ने कल्याण के एक ब्राह्मण काशीनाथ पंत खेतकर के नेतृत्व में दरगात में प्रसाद भेजा था. क्योंकि स्थानीय लोगों का ऐसा मानना था कि बाबा हाजी मलंग की शक्तियों के कारण अंग्रेज यहां से वापस लौटने को मजबूर हुए थे.
पहली बार 18वीं शताब्दी में शुरू हुआ विवाद
कहा जाता है कि काशीनाथ पंत ने दरगाह की मरम्मत के लिए धन दिया था और इसका प्रबंधन अपने हाथ में ले लिया था. दरगाह को लेकर पहली बार विवाद 18वीं शताब्दी में शुरू हुआ, जब स्थानीय मुसलमानों ने इसका प्रबंधन एक ब्राह्मण द्वारा किए जाने पर आपत्ति जताई. यह संघर्ष, मंदिर की धार्मिक प्रकृति के बारे में नहीं बल्कि इसके नियंत्रण के बारे में था. मुद्दा तत्कालीन स्थानीय प्रशासक के सामने आया, जिन्होंने 1817 में यह निर्णय लिया कि लॉट डालकर यह पता लगाया जाना चाहिए कि बाबा मलंग की इच्छा क्या है. द गजेटियर्स ऑफ बॉम्बे प्रेसीडेंसी में कहा गया है, 'लॉट डाले गए और तीन बार लॉटरी काशीनाथ पंत के प्रतिनिधि के पक्ष में गिरी, जिन्हें दरगाह का संरक्षक घोषित किया गया.'
1996 में शिवसेना नेताओं ने दरगाह में की पूजा
हाजी मलंग दरगाह को लेकर 1980 के दशक के मध्य में सांप्रदायिक संघर्ष सामने आया. शिवसेना नेता आनंद दिघे ने यह दावा करते हुए एक आंदोलन शुरू किया कि यह 700 साल पुराने मछिंद्रनाथ मंदिर का स्थान है. यह दरगाह नहीं बल्कि हिंदुओं का मंदिर है. वर्ष 1996 में, वह 20,000 शिवसैनिकों के साथ दरगाह पर पूजा करने के लिए निकले. उस वर्ष तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर जोशी के साथ-साथ शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे भी पूजा में शामिल हुए थे. तब से शिवसेना और दक्षिणपंथी समूह इस संरचना को 'श्री मलंगगढ़' के नाम से संबोधित करते हैं. हालांकि यह संरचना अब भी एक दरगाह है, हिंदू भी पूर्णिमा के दिन इसके परिसर में जाते हैं और आरती करते हैं. एकनाथ शिंदे ने फरवरी 2023 में इस दरगाह का दौरा किया था. उन्होंने आरती की थी और दरगाह के अंदर भगवा चादर चढ़ाई थी.