महाराष्ट्र के दिग्गज नेता शरद पवार इन दिनों राजनीतिक संकट से घिरे हैं. 82 साल के पवार 50 साल से ज्यादा वक्त से राजनीति में एक्टिव हैं. उन्होंने अपने जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन इस बार मुश्किल बड़ी आई है. सालभर पहले पार्टी में फूट हुई. उसके बाद अब खुद की बनाई राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) भी हाथ से चली गई है. चुनाव आयोग ने शरद पवार के भतीजे अजित पवार के गुट को असली NCP माना है और चुनाव चिह्न 'घड़ी' देने का फैसला किया है. ECI ने यह फैसला लोकसभा चुनाव से ठीक पहले लिया है. इसलिए आम चुनाव में शरद पवार गुट की मुश्किलें बढ़ना तय हो गया है.
2 जुलाई 2023 को अजित पवार ने शरद पवार का साथ छोड़ दिया था और एनडीए में शामिल हो गए थे. अजित ने उसी समय चुनाव आयोग को भी पत्र लिखकर पार्टी पर दावा कर दिया था. अजित का कहना था कि उनके पास 40 से ज्यादा विधायक हैं. उनका खेमा ही असली एनीसीपी है. इस मामले में चुनाव आयोग ने लंबी सुनवाई की. उसके बाद मंगलवार को फैसला सुनाया. चुनाव आयोग ने अजित पवार गुट को असली एनसीपी करार दिया है. साथ ही उन्हें पार्टी का नाम और चुनाव चिह्न देने का फैसला सुनाया है. चुनाव आयोग ने शरद पवार को अपने लिए पार्टी का नया नाम सुझाने के लिए आज शाम तक का वक्त दिया है. शरद को नए नामों के तीन ऑप्शन भी दिए हैं. यानी उन तीन नामों में से किसी एक को चुनना होगा.
'चुनाव आयोग ने 10 बार सुनवाई की'
शरद पवार और अजित के बीच इस राजनीतिक लड़ाई को 7 महीने से ज्यादा हो गए हैं. चुनाव आयोग ने दोनों पक्षों को बुलाया और करीब 10 बार सुनवाई की. चुनाव आयोग ने दोनों ही पक्षों से अपने अधिकारों को लेकर सबूत मांगे थे. आयोग के सामने दोनों की खेमों ने विधायक, सांसदों और पार्टी पदाधिकारियों के शपथ पत्र भी सौंपे. उसके बाद चुनाव आयोग फैसले पर पहुंचा.
'दोनों पक्षों के प्रतिनिधियों ने सौंपे शपथ पत्र'
चुनाव आयोग ने दोनों खेमे के लोकसभा और राज्यसभा के सदस्यों का समर्थन भी जाना. आयोग ने मंगलवार को 141 पेज का फैसला दिया. इसमें कहा कि अजित पवार के साथ महाराष्ट्र में 41 विधायक हैं. पांच विधान परिषद, नगालैंड के सभी सात विधायक, झारखंड से एक विधायक, लोकसभा के दो और राज्यसभा के सदस्य ने समर्थन दिया है.
'कई ने दोनों पक्षों में रहने की इच्छा जताई'
इसी तरह, शरद पवार के समर्थन में महाराष्ट्र के 15 विधायक, पांच विधान परिषद, केरल से दो विधायक, लोकसभा के चार, राज्यसभा के तीन सदस्यों ने अपने-अपने शपथ पत्र सौंपे. हालांकि, एक लोकसभा सदस्य और महाराष्ट्र के पांच विधायक ऐसे भी थे, जिन्होंने दोनों ही पक्षों के साथ रहने का शपथ दिया था.
चुनाव आयोग कैसे तय करता है किसकी दावेदारी भारी?
राजनीतिक दलों पर दावों को लेकर विवाद चुनाव आयोग सुलझाता है. आयोग मुख्य रूप से तीन पॉइंट पर यह तय करता है कि पार्टी और चुनाव चिह्न किसका होगा. सबसे पहला- चुने हुए प्रतिनिधि के गुट के पास सबसे ज्यादा हैं. उसके बाद यह देखा जाता है कि पार्टी पदाधिकारी किस खेमे के समर्थन में सबसे ज्यादा खड़े हैं. तीसरा- पार्टी से जुड़ी संपत्तियों पर कौन काबिज है. हालांकि, पार्टी पदाधिकारियों और संपत्तियों को लेकर पारदर्शी प्रक्रिया ना होने से किस गुट को असली माना जाए, इसका फैसला आमतौर पर चुने हुए प्रतिनिधियों के बहुमत के आधार पर होता है. ये तीनों पॉइंट्स में अजित पवार खेमा भारी पड़ा और चुनाव आयोग ने उसके पक्ष में फैसला सुनाया.
पार्टी दफ्तर पर भी कब्जा लेने की तैयारी में अजित गुट
सूत्रों के मुताबिक पार्टी और चुनाव चिह्न मिलने के बाद अब अजित पवार गुट ने शरद पवार खेमे से पार्टी का दफ्तर भी लेने का मन बना लिया है. अजित ने एनसीपी के मुख्यालय पर दावा करने की तैयारी शुरू कर दी है. ये ऑफिस महाराष्ट्र सरकार द्वारा एनसीपी को आवंटित किया गया है. इसके अलावा पार्टी के फंड पर दावा करना है या नहीं, इस बारे में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से अजित पवार से सलाह मशवरा करेंगे.
'ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं शरद पवार'
दरअसल, दक्षिण मुंबई के नरीमन पॉइंट में स्थित पुराण कार्यालय को मेट्रो प्रोजेक्ट के कारण ट्रांसफर कर दिया है और बल्लार्ड एस्टेट के सरकारी बैरक में नया कार्यालय एमएमआरडीए द्वारा तैयार कर दिया गया है. राज्य में कई पार्टी कार्यालय एनसीपी वेलफेयर फंड से बने हैं, जिसका मालिकाना अधिकार एनसीपी ट्रस्ट के पास है. ट्रस्ट के अध्यक्ष शरद पवार हैं. जबकि ट्रस्ट के अन्य सदस्यों में अजित पवार, सुप्रिया सुले, हेमंत टकले शामिल हैं. इसलिए उन पार्टी कार्यालय पर दावा करने पर दिक्कत हो सकती है.