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रूठों को मनाना, जातीय समीकरण को बैलेंस करना... महाराष्ट्र की राजनीति में विनोद तावड़े कर रहे ‘कोर्स करेक्शन’

बीजेपी पिछले कुछ सालों से महाराष्ट्र में प्रस्थापित मराठा नेताओं को साथ लेकर चल रही है और इसी वजह से पार्टी का कौर ओबीसी वोटर नाराज चल रहा है. यह चर्चा राजनीतिक गलियारों में काफी देर से चल रही है. इसलिए तावड़े ने अब महाराष्ट्र में पार्टी की पुरानी छवि संवारने का काम अपने हाथों में लिया है.

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महाराष्ट्र बीजेपी नेता विनोद तावड़े (फाइल फोटो)
महाराष्ट्र बीजेपी नेता विनोद तावड़े (फाइल फोटो)

महाराष्ट्र की राजनीति में टिकट बंटवारे को लेकर महायुती में भले ही ताने-बाने चल रहे हों, लेकिन दूसरी ओर दिल्ली से बीजेपी के वरिष्ठ नेता और अमित शाह के करीबी विनोद तावड़े महाराष्ट्र बीजेपी के अंदर ‘कोर्स ऑफ करेक्शन’ करते नजर आ रहे हैं. एक जमाने में बीजेपी को गांव-गांव तक पहुंचाने वाले ओबीसी नेता एकनाथ खडसे हों या फिर पिछले पांच साल से महाराष्ट्र बीजेपी में विजनवास में दिखी गोपीनाथ मुंडे की बेटी पंकजा मुंडे हों, सभी नेताओं को एक्टिव करने के लिए तावड़े काफी प्रयासरत नजर आ रहे हैं.  

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बीजेपी पिछले कुछ सालों से महाराष्ट्र में प्रस्थापित मराठा नेताओं को साथ लेकर चल रही है और इसी वजह से पार्टी का कोर ओबीसी वोटर नाराज चल रहा है. यह चर्चा राजनीतिक गलियारों में काफी देर से चल रही है. इसलिए तावड़े ने अब महाराष्ट्र में पार्टी की पुरानी छवि संवारने का काम अपने हाथों में लिया है. इसी के चलते अब चार साल बाद उत्तर महाराष्ट्र के कद्दावर नेता एकनाथ खडसे की बीजेपी में घर वापसी होने जा रही है. खुद एकनाथ खडसे ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में इसका ऐलान किया है. आने वाले 15 दिनों में खडसे कभी भी बीजेपी में शामिल हो सकते हैं.

एकनाथ खडसे को मनाया

1987 से लेकर एकनाथ खडसे ने उत्तर महाराष्ट्र और पूरे प्रदेश में बीजेपी के प्रचार-प्रसार का काम किया. लेकिन 2014 में महाराष्ट्र में बीजेपी सरकार आने के बाद एकनाथ खडसे पर एमआईडीसी के जमीन घोटाले के आरोप लगे. इसके चलते उन्हें राजस्व मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. खडसे ने आरोप लगाया कि पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने साजिश के तहत उनकी राजनीति खत्म करने की कोशिश की. 2019 में एकनाथ खडसे को पार्टी ने मुक्ताईनगर विधानसभा सीट से टिकट नहीं दिया. जहां से वो लगातार 6 बार चुनाव जीत चुके थे. अपना राजनीतिक भविष्य धुंधला होते देख खडसे अक्टूबर 2020 में शरद पवार की एनसीपी में शामिल हो गए. 

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तब शरद पवार ने उन्हें विधान परिषद भेजा. काफी सालों तक लेवा पाटिल समाज खडसे के पीछे एकजुट रहा. लेकिन पिछले कुछ सालो में यह समीकरण बदला हुआ था. खडसे पर बीजेपी नेताओं ने अन्याय किया, यह भावना लेवा पाटिल समाज में थी. अब खडसे की घर वापसी से फिर लेवा पाटिल बीजेपी के बारे में सॉफ्ट हो सकते हैं, ऐसा माना जा रहा है.

खडसे की एन्ट्री पर फडणवीस समर्थक नाराज?

हालांकि देवेंद्र फडणवीस के समर्थक और संकटमोचक माने जाने वाले गिरीश महाजन खडसे की घर वापसी पर खुश नहीं दिखाई दिए. उन्होंने मीडिया से बात करते वक्त कहा कि दूध संघ, ग्रामपंचायत, बैंक, सबकुछ खडसे के हाथ से निकल गया है. उनकी बेटी भी 2019 के चुनाव में हार गई थी. अब उनका दिया बुझ गया है. खडसे का अब बचा ही क्या है. इससे आगे जाकर महाजन ने कहा कि खडसे का प्रवेश कब हो रहा है, मुझे पता नहीं है.

पंकजा मुंडे लोकसभा की उम्मीदवार

गोपीनाथ मुंडे की बेटी पंकजा मुंडे महाराष्ट्र की राजनीति में एक बड़े ओबीसी चेहरे के तौर पर उभरी थीं. 2009 और 2014 दोनों चुनाव में वह परली विधानसभा क्षेत्र से चुनकर भी आईं, लेकीन 2019 के लोकसभा चुनाव में उनके चचेरे भाई और राष्ट्रवादी नेता धनंजय मुंडे ने पंकजा को हरा दिया. उसके बाद महाराष्ट्र की बीजेपी की राजनीती में उनकी सक्रियता काफी कम हुई. इतना ही नहीं, किसी भी निर्णयप्रक्रिया में पंकजा को ज्यादा स्थान नहीं था. दो बार विधान परिषद के चुनाव के लिए उनके नाम की चर्चा रहीं, लेकीन इसके आगे कुछ हुआ नहीं. 

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इस पर बात करते हुए कई बार पंकजा ने देवेंद्र फडणवीस पर आरोप लगाए थे. राजनीतिक दृष्टि से पंकजा को कमजोर करने के लिए देवेंद्र ने काम किया, ऐसा उनका आरोप रहा. लेकिन लोकसभा के चुनाव में अगर पंकजा को मैदान में नहीं उतारा तो वंजारा समाज नाराज हो जाएगा, ऐसा कई लोगों का मानना था. इसीलिए पंकजा की बहन प्रीतम की जगह उन्हें लोकसभा टिकट दिया गया. पंकजा की ओबीसी नेता की इमेज का भी पार्टी को फायदा हो सकता है.

पुणे से मेधा कुलकर्णी को राज्यसभा भेजा

पुणे से सांसद गिरीश बापट और कसबा की विधायक मुक्ता टिलक का पिछले साल निधन हुआ. उसके बाद कसबा विधानसभा क्षेत्र के लिए चुनाव घोषित हुए. बीजेपी ने हेमंत रासने को टिकट दिया. यह हार्ड कोर संघ के कार्यकर्ताओं का और ब्राह्मण बहुल इलाका रहा है. दूसरी ओर कांग्रेस ने रवींद्र धंगेकर को मैदान में उतारा था. इसी सीट से 30 साल तक गिरीश बापट भी चुनाव जीतते रहे. लेकिन बीजेपी ने ब्राह्मण उम्मीदवार को ना उतारकर हेमंत रासने, जिनके बारे में काफी नकारात्मक भावना थी, उन्हे चुनाव में खड़ा किया और उसी नाराजगी के साथ वहां पर बीजेपी के हेमंत रासने हार गए. 

2019 के चुनाव में कोथरुड से विधायक रहीं मेधा कुलकर्णी का भी टिकट काटा था. इसका भी काफी असर कस्बे में दिखा. उसके कुछ दिन बाद गिरीश बापट का भी निधन हो गया और पुणे में ब्राह्मण नेतृत्व की कमी खली और उसका असर लोकसभा चुनाव में ना दिखे इसलिए मेधा कुलकर्णी को राज्यसभा भेज दिया. इसमें भी राज्य के नेतृत्व के साथ साथ विनोद तावड़े की अहम भूमिका रही.

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